न्यायमूर्ति श्री प्रफुल्ल चन्द्र पंत का जीवनवृत्त

Justice Shri Prafulla Chandra Pant
न्यायमूर्ति श्री प्रफुल्ल चन्द्र पंत
सदस्य, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
91-11-24663252 (कार्या.)

न्यायमूर्ति श्री प्रफुल्ल चन्द्र पंत ने 22 अप्रैल, 2019 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। एन.एच.आर.सी. में सदस्य के रूप में नियुक्ति से पहले वे 13 अगस्त, 2014 से 29 अगस्त, 2017 तक भारत के उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश थे।

इनका जन्म 30 अगस्त, 1952 को उत्तराखण्ड राज्य (तत्समय उत्तर प्रदेश राज्य का भाग) में हुआ। अपनी प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की तथा इसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की।

न्यायमूर्ति पंत का पंजीकरण 1973 में यू.पी. बार काउसिंल में हुआ तथा इलाहाबाद के उच्च न्यायालय में इन्होंने वकालत की। फरवरी, 1976 से नवम्बर, 1976 तक इन्होंने मध्यप्रदेश के सागर में केन्द्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क विभाग में निरीक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दी। इसके पश्चात, वे उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा में वर्ष 1976 में उत्तर प्रदेश सिविल सर्विसेज (न्यायिक) परीक्षा, 1973 के माध्यम से आए। वे उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद, पीलीभीत, रानीखेत, बरेली एवं मेरठ जिलों में न्यायिक सेवा में विभिन्न पदों पर रहे। तत्पश्चात वर्ष, 1990 में इनकी पदोन्नति उत्तर प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा में हुई तथा बहराइच जिले के अपर जिला न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में संयुक्त रजिस्ट्रार के पद पर भी रहे।

उत्तराखण्ड के रूप में नया राज्य बनने के बाद उन्होंने राज्य के प्रथम सचिव, कानून एवं न्याय के रूप में सेवाएं दी। वे नैनीताल में उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के रूप में नियुक्त होने से पहले नैनीताल में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद पर थे। उन्होंने 29 जून, 2004 को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के अपर न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। जिसके बाद 19 फरवरी, 2008 को उन्होंने उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के स्थाई न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। उन्होंने 20 सितम्बर, 2013 को शिलांग में मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण किया तथा 12 अगस्त, 2014 तक वे इस पद पर रहे। इसके बाद पदोन्नति होने पर 13.10.2014 को उन्होंने भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली तथा भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 3 साल की सेवा के बाद, 29 अगस्त, 2017 को वे पदमुक्त हो गए।

इन्होंने कानून के विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखीं जिनमें ’मैरिज़, डिवोर्स एण्ड अदर मैट्रिमोनियल डिस्प्यूट्स’, ’कमेन्ट्री ऑन कोड़ ऑफ़ सिविल प्रौसिज़र’ ’रिलीफ ऑफ़ इनजक्शन्स’ तथा ’सुन्दर निर्णय कैसे लिखें (हिंदी)’ शामिल है।