डॉ ज्ञानेश्वर मनोहर मुले का जीवनवृत्त
डॉ मुले ने भारतीय विदेश सेवा (1983-2019) में राजनयिक के रूप में अपनी सेवाएं दीं। वे एक प्रसिद्ध लेखक, प्रेरक एवं भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं।
1. अद्भुत क्षमताः
राष्ट्रीय, स्थानीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक अनुभव एवं विशेषज्ञता।
विभिन्न मंत्रालयों जैसे वित्त, वाणिज्य, विदेश मामले मंत्रालयों तथा कैबिनेट सचिवालय में काम किया है।
इन्हें कई भाषाओं का ज्ञान है जिनमें हिंदी, मराठी, अंग्रेजी, संस्कृत, कन्नड़, जापानी, रसियन, पंजाबी शामिल हैं।
वे राष्ट्रीय स्तर पर लेखक, स्तंभकार एवं राजनयिक के रूप में प्रसिद्ध हैं।
पूरे विश्व में इनके साथ लोगों का एक व्यापक नेटवर्क है।
2. वर्तमान कार्यः
डॉ ज्ञानेश्वर मनोहर मुले ने 25 अप्रैल, 2019 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य के रूप में कार्यभार ग्रहण किया।
वे विदेश मंत्रालय में सचिव के पद पर फरवरी, 2016 से जनवरी, 2019 तक रहे।
उनकी अगुवाई में 410 नए पासपोर्ट कार्यालयों का खोला जाना उल्लेखनीय है, जिससे प्रत्येक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पासपोर्ट कार्यालय खुल गया है। पहले देश में केवल 77 पासपोर्ट केन्द्र थे जिनकी संख्या 2019 में बढ़कर 510 हो गई है।
इन्होंने विदेशों में फंसे भारतीय लोगों की मदद करने तथा यह सुनिश्चित करने कि विदेश में किसी भी स्थान पर किसी भी भारतीय को कठिनाई का सामना न करना पड़े, के लिए एक सुदृढ़ ढांचा तैयार किया।
3. सेवाकाल की विशेषताएंः
वे भारतीय राजनयिक के रूप में सेवारत रहे तथा साथ ही प्रसिद्ध लेखक एवं स्तम्भकार हैं। वे भारतीय विदेश सेवा के 1983 बैच से हैं तथा इन्होंने विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दी हैं, जिनमें न्यूयॉर्क में काउंसेल जरनल ऑफ़ इंडिया तथा माले में भारतीय उच्चायुक्त के पद शामिल हैं।
इन्होंने 15 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है जिनका अनुवाद अरबी, धिवेही, उर्दू, कन्नड़ एवं हिंदी में किया गया।
इनकी प्रसिद्ध रचना मराठी भाषा में लिखी गई ’माटी पंख अनि आकाश’ को बेहद लोकप्रियता प्राप्त हुई तथा उसको उत्तरी महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव में कला पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया।
उन्होंने अनेक समाज-शैक्षिक प्रोजेक्ट जिनमें उनके पैतृक गांव में एक अनाथालय ’बालोदयन’ भी शामिल है, के लिए प्रेरणा दी।
डॉ ज्ञानेश्वर मुले के जीवन एवं कार्य पर प्रकाश डालने वाली एक डॉक्यूमेंट्री ’जिप्सी’, जिसका निर्माण एवं निर्देशन धनंजय भावालेकर द्वारा किया गया, को दिल्ली लघु फिल्म डॉक्यूमेंट्री उत्सव में ’स्पेशल जूरी’ पुरस्कार प्रदान किया गया।
प्रसिद्ध लेखक दीपा देशमुख ने इन पर ’डॉ ज्ञानेश्वर मुले-पासपोर्ट मैन ऑफ़ इंडिया’ शीर्षक से पुस्तक लिखी है।
वर्ष 2017 में डी.वाई.पाटिल विश्वविद्यालय, मुम्बई ने इन्हें ’समाज के प्रति अनुकरणीय योगदान’ हेतु डीलिट् (मानार्थ) उपाधि से सम्मानित किया।
4. भारत का काउंसेल जनरल, न्यूयौर्क, यू.एस.ए. (अप्रैल, 2013-फरवरी, 2016):
वाणिज्य दूतावास के भारतीय प्रवासियों को बढ़ावा देने के साथ-साथ अमेरिकी समाज की मुख्य धारा में लाने की पहल सहित उल्लेखनीय योगदान सितम्बर, 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मेडिसन स्क्वायर गार्डन समारोह में मुख्य समन्वयकत्र्ता रहे।
भारत-यू.एस. संबंधों पर यू.एस. नीति-निर्माताओं के साथ गहरी समझ तथा पासपोर्ट, वीज़ा एवं अन्य मामलों पर समुदाय की चिंताओं का समाधान करने के लक्ष्य सहित अनोखे आउटरीच कार्यक्रम “काउंसलेट एट योर डोरस्टेप” का शुभारम्भ किया।
’मीडिया इंडिया 2014’ शीर्षक से एक मासिक लेक्चर की श्रृंखला प्रारम्भ की, जिसे अत्यधिक लोकप्रियता मिली। साथ ही, भारत पर नई बातचीत करने में भी सहायता मिली। इसी प्रकार ’इंडिया-स्टेटबाय स्टेट’ नाम से भारतीय राज्यों पर केन्द्रिय लेक्चर श्रृंखला प्रारम्भ की।
कॉउंसेल जरनल के रूप में 2014 में भारत के चुनावों पर आधारित कॉमेडी सेंट्रल के ’दि डेली शो विद् जॉन स्टीवर्ट’ के एक एपिसोड में भी दिखाई दिए।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा घोषित स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत की। इस समग्र सफाई अभियान ने विदेशों में अन्य भारतीय मिशन हेतु स्वच्छ काउंसलेट अभियान का एक मॉडल प्रस्तुत किया।
5. माले (मालदीव) में भारत के उच्चायुक्त (अप्रैल, 2009 से मार्च, 2013):
भारत-मालदीव के रिश्तों को नए स्तर पर ले जाने में मार्गदर्शन किया तथा फरवरी, 2012 में सत्ता के कठिन हस्तांतरण के माध्यम से दूतावास की सफलतापूर्वक अगुवाई की।
भारत एवं मालदीव के बीच सैन्य संबंधों को मज़बूत करने में सहायक रहे, समुद्री क्षेत्र में भारत-मालदीव-श्रीलंका सहयोग विशेष रूप से प्राप्त किया।
फरवरी, 2013 में माले में भारतीय उच्च आयोग में राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद के दो सप्ताह तक चली शरण के दौरान कठिन परिस्थितियों को संभाला।
मालदीव में भारतीय संस्कृति केन्द्र स्थापित किया।
6. प्रारम्भिक सेवाकाल:
पुणे के उप-समाहर्ता के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। बाद में वर्ष, 1983 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए।
थर्ड सेक्रेटरी के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने आर्थिक संबंधों पर कार्य किया तथा अनेक जापानी निदेशों को भारत में करने के लिए मार्ग प्रशस्त किया जिनमें टोयोटा मोटर्स, एनटीटी-आईटोकू, होण्डा मोटर्स तथा वाईकेके शामिल हैं।
वर्ष 1988 में जापान के 20 से अधिक शहरों में ’फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया’ के महत्त्वाकांक्षी सांस्कृतिक समारोह का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया।
मॉस्को, रूस में बिजनेस एसोसिएशन की स्थापना की तथा दो वर्षों तक इसके संस्थापक अध्यक्ष रहे। एसोसिएशन ने वर्ष 2017 में अपनी 25वीं सालगिरह मनाई।
रूस, मॉरीशस में विभिन्न क्षमताओं में सेवाएं दीं तथा भारतीय दूतावास में मंत्री के रूप में सीरिया में सेवाएं दी।
भारत एवं रूस के बीच व्यापारिक रिश्तों, विशेष रूप से राज्य नियंत्रित व्यापार (रुपये-रूबल) से प्रत्यक्ष व्यापार के परिवर्तन, संभालने में सहायक रहे।
सीरिया में, अरब राइटर्स एसोसिएशन के साथ भारत के बाहर साहित्य अकादमी के पहले समझौता ज्ञापन को सुविधाजनक बनाया।
मॉरीशस में भारतीय सहयोग के साथ साइबर टॉवर प्रोजेक्ट एवं राजीव गांधी साइंस सेंटर को सुव्यवस्थित एवं त्वरित रूप से किया।
7. प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा एवं संघर्ष:
इनका जन्म 1958 में महाराष्ट्र के सांगली जिले में अराग गांव में हुआ था।
उनके पिता मनोहर कृष्ण मुले एक किसान थे जबकि माता अक्का ताई मुले, गृहणी थीं।
उन्होंने दस वर्ष की आयु में गांव छोड़कर जिला परिषद् द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के हुनर को विकसित करने के लिए संचालित स्कूल राजश्री साहू क्षत्रपति विद्यानिकेतन, कोल्हापुर में दाखिला लिया। वर्ष 1975 में एस.एस.सी. परीक्षा में संस्कृत में सर्वोत्कृष्ट अंक प्राप्त करने पर उन्हें जगन्नाथशंकरसेठ पुरस्कार जीतने वाले वे ग्रामीण क्षेत्र से पहले छात्र थे।
उन्होंने शाहजी क्षत्रपति कॉलेज, कोल्हापुर से स्नातक (अंग्रजी साहित्य) की डिग्री प्राप्त की तथा वे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान पर रहे जिसके लिए उन्हें प्रतिष्ठित धनन्जय कीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सिविल सेवा में शामिल होने के लिए तथा इस बात को समझते हुए कि कोल्हापुर में अध्ययन के संसाधन एवं मार्गदर्शन की कमी है, वे मुम्बई चले गए।
उन्होंने मुम्बई विश्वविद्यालय से कार्मिक प्रबंधन की पढ़ाई की तथा विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान पर आने के लिए उन्होंने पीटर एल्वरेज़ मेडल जीता। इसके बाद वे महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग परीक्षा में वर्ष 1981 में प्रथम स्थान पर रहे तथा 1983 में भारतीय विदेश सेवा में चयनित होने से पहले उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा भी उत्तीर्ण की।