राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने पानी के अधिकार पर आयोजित बैठक में पानी का अधिकार और भूजल के उपयोग हेतु कानून बनाने को सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु महत्‍त्‍वपूर्ण कुंजी माना



नई दिल्ली, 27 जुलाई, 2021

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत ने आज विभिन्न हितधारकों के साथ पानी के अधिकार पर एक ऑनलाइन बैठक की। इसकी अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति ए.के. मिश्रा, अध्यक्ष एनएचआरसी ने कहा कि पानी जीवन का एक महत्वपूर्ण घटक है। पीने योग्य पानी की आपूर्ति करना स्थानीय निकायों का दायित्व है। हालाँकि, जल का संरक्षण, परिरक्षण और वितरण न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बल्कि क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर भी एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि भारी खर्च करके कई प्रयास करने के बावजूद भूजल और सतही जल निकायों का दूषित होना एक गंभीर समस्या है। उन्होंने कहा कि आयोग जल जीवन मिशन, 2024 के लिए तत्पर है, जिसके तहत हर गांव के घरों में पीने योग्य पानी के नल उपलब्ध कराने की मांग की जा रही है।

बैठक की सह-अध्यक्षता करते हुए एनएचआरसी के सदस्य न्यायमूर्ति श्री एम. एम. कुमार ने कहा कि पीने के पानी की कमी को देखते हुए इसके विवेकपूर्ण उपयोग और परिशोधन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। नदियों में सीवेज का प्रवाह बंद होना चाहिए। उन्होंने जीवन के अधिकार के दायरे में पानी के अधिकार का विस्तार करने के लिए कई अदालती फैसलों और संविधान के अनुच्छेद 21 के बारे में बात की।

एनएचआरसी के सदस्य श्री राजीव जैन ने कहा कि सिंचाई के लिए भूजल संसाधनों के अत्यधिक उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए फसल चक्र को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भोजन के अधिकार की तर्ज पर पीने योग्य पानी के अधिकार का संहिताकरण सुनिश्चित करने की जरूरत है।

इससे पहले, एनएचआरसी के महासचिव, श्री बिंबाधर प्रधान ने चर्चाओं को गति देते हुए कहा कि सतत विकास लक्ष्य 6.1 को प्राप्त करने के लिए बड़े पुरजोर तरीके से जल सुधार किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने जल संसाधनों से संबंधित अतिदोहन, असमान वितरण और तटवर्ती मुद्दों सहित कई मुद्दों को रेखांकित किया।

जल शक्ति मंत्रालय के अपर सचिव श्री भरत लाल ने 2024 तक हर घर में पीने योग्य पानी के नल सुनिश्चित करने की दिशा में केंद्र सरकार के प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार का ध्यान केवल भूमिगत और सतही जल निकायों सहित जल निकायों के रासायनिक संदूषण की समस्‍या पर नहीं है बल्कि भूगर्भीय संदूषण पर भी है।

अन्य प्रमुख वक्ताओं में श्री मनीष वासुजा, वॉश विशेषज्ञ, यूनिसेफ, श्री वीके माधवन, मुख्य कार्यकारी, वाटरएड इंडिया, श्री सुरजीत डे, रजिस्ट्रार (विधि), श्रीमती अनीता सिन्हा, संयुक्‍त सचिव (पी एंड टी) ने भी बैठक को संबोधित किया। .

चर्चा के दौरान सामने आए कुछ अन्य महत्वपूर्ण सुझाव इस प्रकार थे:

• जल के अधिकार की आवश्यकता को पहचानने के अलावा, भूजल के उपयोग पर भी एक कानून की आवश्यकता है;

• भूजल और सतही जल के उपयोग के संदर्भ में जल के अधिकार को स्पष्ट रूप से परिभाषित करें;

• पारंपरिक जल निकायों के पुनरुद्धार को बढ़ावा देना;

• फसल चक्र और कम पानी की खपत वाली फसलों को बढ़ावा देना;

• सूक्ष्म सिंचाई प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना;

• सिंचाई के प्रयोजनों के लिए पीने योग्य पानी के उपयोग को हतोत्साहित करना;

• रासायनिक संदूषण के अलावा, सूक्ष्मजीवविज्ञानी संदूषण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है;

• केवल बारिश और ग्‍लेशियर के पिघले पानी के बजाय झरनों जैसी मरती हुई वाटरशेड सेवाओं के संरक्षण की ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है, जो नदियों को पानी की आपूर्ति का एक बारहमासी स्रोत रहा है;

• जल के उपयोग और उसके प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका को प्रोत्साहित करना;

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