श्री राजीव चंद्रशेखर, राज्य मंत्री, केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्रालय ने कहा कि सरकार, अवैध, आपराधिक और बाल यौन शोषण सामग्री के इंटरनेट समर्थित प्रसार को रोकने के लिए एक डिजिटल इंडिया अधिनियम पर काम कर रही है।



श्री राजीव चंद्रशेखर, राज्य मंत्री, केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रोद्योगिकी मंत्रालय ने कहा कि सरकार, अवैध, आपराधिक और बाल यौन शोषण सामग्री के इंटरनेट समर्थित प्रसार को रोकने के लिए एक डिजिटल इंडिया अधिनियम पर काम कर रही है।

एनएचआरसी के अध्यक्ष श्री न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने जोर दिया कि बिचौलियों को अलग-अलग देशों के अनुपालन के अलग-अलग मानकों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

नई दिल्ली, 3 मार्च, 2023

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत द्वारा विज्ञान भवन, नई दिल्ली में आयोजित बाल यौन शोषण सामग्री, सीसैम पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन आज संपन्न हुआ। समापन भाषण देते हुए केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी, कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री श्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार एक डिजिटल इंडिया अधिनियम, जिसमें अवैध, आपराधिक और बाल यौन शोषण सामग्री (सीएसएएम) के इंटरनेट-समर्थित प्रसार को रोकने के लिए नए नियम, जिसमें ऑनलाइन गेमिंग भी शामिल है, पर काम कर रही है। यह इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (आईएसपी) और अन्य बिचौलियों को आपत्तिजनक सामग्री की मेजबानी के लिए अधिक जवाबदेह बना देगा।

उन्होंने कहा कि मौजूदा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम वर्तमान समय की चुनौतियों का समाधान नहीं करता है। इसलिए, सरकार ने बिचौलियों को उत्तरदायी बनाने के लिए आईटी नियम, 2021 का गठन किया और 2022 में संशोधन किया और यह डिजिटल प्रौद्योगिकी कानून लाने का भी प्रस्ताव कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार लोगों को उनके सशक्तिकरण के लिए एक उपकरण के रूप में इंटरनेट के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन सरकार यह भी चाहती है कि यह सुरक्षित और विश्वसनीय भी हो। उन्होंने कहा कि अवैध और आपराधिक सामग्री को हटाने के लिए सेवा प्रदाता होने के नाते बिचौलियों की ओर से यह अनिवार्य है।

श्री चंद्रशेखर ने कहा कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति और निजता का भार आपराधिकता का कारण नहीं हो सकता। भले ही कोई व्यक्ति गुमनाम हो, बिचौलियों को ऐसी सामग्री के प्रवर्तक का खुलासा करना होगा। इंटरनेट जिसे लोगों के सशक्तिकरण के लिए एक उपकरण के रूप में देखा जाता था, एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र में बदल गया है जो आपराधिकता और अवैधता पर पनपता है, जो अब यह सबसे अधिक है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि सीसैम इंटरनेट के बाहर हो रही गतिविधियों का परिणाम है, जिसे कानून के अलग प्रावधानों के तहत संबोधित करने की जरूरत है।

इससे पहले, न्‍यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा, अध्यक्ष, एनएचआरसी ने समापन सत्र में कहा कि सीसैम की समस्या को रोकने और उसका समाधान करने के लिए कार्रवाई की आवश्यकता है। पॉक्‍सो और आईटी अधिनियम सीसैम के सभी रूपों जैसे कि एनिमेटेड और गेमिंग सामग्री को कवर नहीं करते हैं। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और बिचौलियों के असहयोग को कड़े विधायी प्रावधानों, न्यायपालिका और अन्य निकायों द्वारा प्रभावी ढंग से निपटाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि बिचौलियों को अलग-अलग देशों के लिए अनुपालन के अलग मानक की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, और सभी हितधारकों द्वारा इसकी निगरानी की जानी चाहिए। बिचौलियों को गोपनीयता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में आपत्तिजनक सामग्री के प्रसार को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। हम अपने कर्तव्य से चूक रहे हैं। हर तकनीक लोगों के फायदे के लिए है; इसका उपयोग हमारे नैतिक मूल्यों, संस्कृति और दर्शन को प्रभावित करने वाले विनाशकारी उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्‍होंने आह्वान किया कि आजादी के अमृत काल में भारत को सीसैम को संबोधित करने में दुनिया पथ प्रदर्शक बनाएं।

बिचौलियों की जिम्मेदारी अनुबंध और कानून दोनों में तय की जानी चाहिए। सामग्री को फ़िल्टर करना उनका कर्तव्य है। जब वे दुनिया भर में आपत्तिजनक सामग्री प्रसारित करते हैं तो यह सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है कि उनके द्वारा प्रदान की गई सेवाओं का उपयोग करके कोई अपराध नहीं किया जाता है। जब सामग्री को सार्वजनिक किया जाए, तो यह सुनिश्चित करने के लिए उन पर उत्तरदायित्व तय किया जाना चाहिए कि बच्चों के प्रति अपराध और लाइव स्ट्रीमिंग को रोका जा सके। बच्चों के खिलाफ इस तरह के अपराधों को रोकने का एकमात्र तरीका यह है कि सीसैम को बिल्कुल भी स्ट्रीम नहीं किया जाना चाहिए और इसे सार्वजनिक रूप से देखने के लिए अपलोड करने से पहले ब्लॉक कर दिया जाना चाहिए। कानून ऐसे सेवा प्रदाताओं को जघन्य अपराध करने के लिए साइबरस्पेस सेवाओं का एक मंच प्रदान करने की पूर्ण स्वतंत्रता नहीं दे सकता है।

उन्होंने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच जागरूकता फैलाने, उन्हें डिजिटल फोरेंसिक लैब, वित्त और प्रशिक्षित जनशक्ति सहित पर्याप्त बुनियादी ढांचा प्रदान करने और सीसैम के खतरे से निपटने के लिए सहयोगी और सहकारी रणनीति की आवश्यकता पर भी जोर दिया। पीड़ित को दुर्व्यवहार के आघात से उबरने के लिए पर्याप्त सुरक्षा और पुनर्वास और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के अलावा हेल्पलाइन को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। ऐसे अपराधों का स्पीडी ट्रायल जरूरी है।

दो दिवसीय सम्मेलन में सीसैम से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई। इसका उद्घाटन केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने किया था। पांच तकनीकी सत्रों के विषयों में 'प्रकृति, विस्तार और उभरते मुद्दों को समझना', 'सीसैम से संबंधित कानूनी प्रावधान', 'रोकथाम में प्रौद्योगिकी और मध्यस्थों की भूमिका', 'सीसैम का पता लगाना और जांच करना, सीसैम से लड़ने में अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण' और 'सीसैम का पता लगाने, जांच और निगरानी करने में प्रवर्तन एजेंसियों और साइबर फोरेंसिक की भूमिका' शामिल थे। इनकी अध्यक्षता एनएचआरसी के अध्यक्ष, न्‍यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा, एनएचआरसी के सदस्य, डॉ ज्ञानेश्वर एम मुले, श्री राजीव जैन और यूएन रेजिडेंट कोऑर्डिनेटर, यूएन इंडिया, श्री शोम्बी शार्प और सुश्री सुंदरी ननदा, विशेष सचिव, आंतरिक सुरक्षा, गृह मंत्रालय ने की। पैनलिस्टों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विषय विशेषज्ञ, नागरिक समाज के सदस्य, अधिवक्ता और विभिन्न प्रमुख मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल थे।