एनएचआरसी, भारत द्वारा अपनी मानव अधिकार लघु फिल्म प्रतियोगिता 2023 में सात विजेताओं को पुरस्‍कृत किया गया



प्रेस विज्ञप्ति

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

नई दिल्ली, 21 मार्च 2024

एनएचआरसी, भारत द्वारा अपनी मानव अधिकार लघु फिल्म प्रतियोगिता 2023 में सात विजेताओं को पुरस्‍कृत किया गया

एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने फिल्मों को समाज में बदलाव लाने का एक बहुत ही शक्तिशाली और प्रभावी साधन बताया

सीमित समय में प्रभावशाली संदेशों को संक्षेप में प्रस्तुत करने में लघु फिल्में एक बहुत प्रभावी उपकरण/साधन हैं

2015 के बाद से एनएचआरसी लघु फिल्म प्रतियोगिता में प्रविष्टियों की बढ़ती संख्या मानव अधिकारों के प्रति बढ़ती जागरूकता को दर्शाती है

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने आज यह बात कही कि हमें पीड़ितों के साथ सहानुभूति रखनी चाहिए तथा फिल्में मानवता के सामने आने वाली भावनाओं को प्रदर्शित करने और समाज में वांछित बदलाव लाने हेतु लोगों के जीवन में दर्द को महसूस कराने का बहुत शक्तिशाली और प्रभावी साधन हैं। आजकल लोगों के पास ज्यादा समय नहीं है, इसलिए लघु फिल्में सीमित समय में प्रभावशाली संदेशों को संक्षिप्त रूप से पहुंचाने का एक बहुत प्रभावी साधन बन जाती हैं, जो चुनौतीपूर्ण है। समाज में एक विमर्श शुरू करके सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य को पूरा करने हेतु एक गहरा/प्रभावशाली संदेश जितना छोटा होगा, उतना ही कारगर होगा। उन्होंने कहा कि लघु फिल्मों की इस क्षमता को महसूस करते हुए और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए, आयोग ने 2015 में मानव अधिकारों पर लघु फिल्मों के लिए एक प्रतियोगिता के माध्यम से एक मंच खोला।


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न्यायमूर्ति मिश्रा आयोग की लघु फिल्म प्रतियोगिता के सात विजेताओं को पुरस्‍कृत करने हेतु आयोजित एक समारोह को सदस्यों, डॉ. ज्ञानेश्वर एम. मुले, श्री राजीव जैन और श्रीमती विजया भारती सयानी, महासचिव श्री भरत लाल, महानिदेशक (अन्‍वेषण), श्री अजय भटनागर, रजिस्ट्रार (विधि), श्री सुरजीत डे, संयुक्त सचिव, श्रीमती अनिता सिन्हा, श्री देवेन्द्र कुमार निम और बाहरी जूरी सदस्य, श्रीमती रचना शर्मा की उपस्थिति में संबोधित कर रहे थे। विजेताओं को बधाई देते हुए, उन्होंने कहा कि उनकी फिल्में समाज में सामाजिक-आर्थिक विकास में बाधाओं को दूर करने के लिए आवश्यक मानसिकता को बदलने के उनके इरादे को उजागर करती हैं। पुरस्कृत फिल्मों ने ट्रांसजेंडर, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की प्राप्ति में चुनौतियों सहित विभिन्न विषयों को छुआ है।


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इससे पहले, एनएचआरसी, भारत के सदस्य, डॉ. ज्ञानेश्वर एम. मुले ने विजेताओं के नामों की घोषणा करते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों में एनएचआरसी लघु फिल्म प्रतियोगिता को बहुत महत्व मिला है क्योंकि हर साल फिल्म की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है। यह इस तथ्य को भी रेखांकित करता है कि मानव अधिकारों के बारे में लोगों की जागरूकता और उनके बारे में दूसरों को संवेदनशील बनाने की जरूरत बढ़ रही है। यह प्रतियोगिता मानव जीवन और गरिमा को प्रभावित करने वाले विभिन्न पहलुओं के बारे में बहुत प्रभावी फिल्में बनाकर मानव अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए एनएचआरसी और देश के युवाओं के बीच एक सेतु का काम करती है।


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एनएचआरसी, भारत के महासचिव, श्री भरत लाल ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में एनएचआरसी की लघु फिल्म प्रतियोगिता का अवलोकन दिया, जो 2015 में शुरू हुई थी और पिछले कुछ वर्षों में प्रतियोगिता में फिल्मों की संख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि 2023 प्रतियोगिता में 139 प्रविष्टियाँ प्राप्त हुई थीं। प्रारंभिक समीक्षा के बाद, 118 लघु फिल्‍में पुरस्कारों हेतु प्रतियोगिता में शामिल की गई, जिनका निर्णय एनएचआरसी अध्यक्ष की अध्यक्षता वाली जूरी द्वारा किया गया, जिसमें सदस्य, वरिष्ठ अधिकारी और बाहरी विशेषज्ञ शामिल थे।

प्रत्येक फिल्म में मानव अधिकारों से संबंधित कुछ अर्थ निहित था और पुरस्कारों के लिए उनमें से सर्वश्रेष्ठ को चुनना चुनौतीपूर्ण था। उन्होंने कहा कि ये फिल्में जनता तक पहुंचनी चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में गुणवत्तापूर्ण फिल्मों की संख्या और बढ़ेगी।

श्री भूषण अरुण महरे की फिल्म, 'किरण-ए रे ऑफ होप' को प्रथम पुरस्कार 2 लाख रुपये, एक ट्रॉफी और एक प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया। यह फिल्म एलजीबीटीक्यूआई+ अधिकारों पर प्रकाश डालती है और चिंताओं को उठाती है, जिसमें आजीविका कमाने के लिए सम्मान के साथ समान अवसर का अधिकार भी शामिल है। यह फिल्‍म हिंदी और अंग्रेजी भाषा के साथ अंग्रेजी उपशीर्षक में है।


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द्वितीय पुरस्कार 1.5 लाख रुपये, एक ट्रॉफी और एक प्रमाण पत्र श्री बिभुजल राज कश्यप को उनकी असमिया भाषा में फिल्म 'मुखाग्नि- द क्रिमेशन' के लिए दिया गया। एक सच्ची कहानी से प्रेरित यह फिल्म अस्पृश्यता, जातिगत भेदभाव, सामाजिक हठधर्मिता, जाति पंचायत के दबंग फरमान और मृतकों की गरिमा के अधिकार सहित विभिन्न मुद्दों को उठाती है।


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तीसरा पुरस्कार 1 लाख रुपये, एक ट्रॉफी और एक प्रमाण पत्र श्री नितिन सोनकर को उनकी हिंदी भाषा में फिल्म 'राइट टू फ्रीडम' के लिए दिया गया। फिल्म प्रतीकात्मक रूप से झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए समान अवसरों की वकालत करती है और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले एक युवा लड़के की कहानी के माध्यम से इस बात पर प्रकाश डालती है कि सपने देखने और जीवन में बड़ा हासिल करने पर कोई सीमा नहीं होनी चाहिए।


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चारों फिल्मों को 50,000 रुपये के साथ 'सर्टिफिकेट ऑफ स्पेशल मेंशन' से सम्मानित किया गया। इनमें सुश्री अब्दुल्ला अल्फाज़ीना की 'ग्लास ऑफ ह्यूमैनिटी', श्रीमती सुप्रीति घोष की 'हैरेसमेंट ऑफ दीपशिखा', श्री एम भास्कर की 'नारागम - हेल' और श्री राशिद उस्मान निंबालकर की 'रहस' शामिल हैं। पुरस्कार विजेता फिल्में एनएचआरसी वेबसाइट पर अपलोड की जाएगी, ताकि इन्हें मानव अधिकारों और संवेदनाओं के बारे में जागरूकता हेतु एक खुले स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।

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