एनएचआरसी, भारत ने हर साल मानसून से पहले मुंबई में लगभग 2200 किमी के वर्षा जल और सीवेज ड्रेन नेटवर्क के डी-सिल्टिंग में शामिल मैनुअल स्कैवेंजिंग की रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया है।



प्रेस विज्ञप्ति

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

नई दिल्ली, 30 अगस्त, 2024

एनएचआरसी, भारत ने हर साल मानसून से पहले मुंबई में लगभग 2200 किमी के वर्षा जल और सीवेज ड्रेन नेटवर्क के डी-सिल्टिंग में शामिल मैनुअल स्कैवेंजिंग की रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया है।

आयोग ने इस काम में लगे श्रमिकों और उनके परिवारों की कथित कठिनाइयों पर चिंता व्यक्त की

महाराष्ट्र के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी

आयोग ने कहा, अधिकारियों द्वारा उन्हें ‘मौसमी सफाई कर्मचारी’ कहना उन्हें सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों तथा एनएचआरसी की परामर्शी एवं मैनुअल स्कैवेंजर के अधिकारों और उनके पुनर्वासके कानून के तहत दायित्वों से छूट नहीं देता है

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने एक मीडिया रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लिया है, रिपोर्ट के अनुसार हर साल मानसून की शुरुआत से पहले, मुंबई नगर निगम के अधिकारी लगभग 2200 किमी के वर्षा जल और सीवेज ड्रेन नेटवर्क को साफ करने के लिए ‘मौसमी सफाई कर्मचारियों’ को नियुक्त करते हैं, जो उनके द्वाराइस काम को नंगे हाथों से करना ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ के बराबर है। कथित तौर पर, मुंबई में वर्षा जल निकासी नालियों से अलग सीवर लाइन न होना मुंबई नगर निगम अधिनियम, 1888 की धारा 239 का उल्लंघन है। इसलिए, वर्षा जल निकासी नालियों की सफाई करना प्रतिबंधित मैनुअल स्कैवेंजिंग की जिम्मेदारियों से बचने के लिए केवल दिखावा है।

कथित तौर पर, नगरपालिका के अधिकारी मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध से बचने के लिए प्रवासी श्रमिकों को ‘मौसमी सफाई कर्मचारी’ कहते हैं, जो एक दंडनीय अपराध है, साथ ही जब भी मौतें होती हैं, तो सरकार उन्हें मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में कभी स्वीकार नहीं करती है और न ही नकद सहायता सहित विभिन्न प्रकार के पुनर्वास के उनके अधिकार को स्वीकार करती है।

ये श्रमिक नालियों की सफाई के लिए हर साल मार्च से मई के बीच मुंबई चले जाते हैं। मुंबई के घाटकोपर इलाके में एक अस्थायी झुग्गी बस्ती में रहते हैं, उनके नाबालिग बच्चे भी स्कूल नहीं जाने पर दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं।

कथित तौर पर, पुनर्वास अनुसंधान पहल और दक्षिण एशियाई श्रम नेटवर्क की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र राज्य में 12,562 बाल मजदूर हैं, जो भारत में सबसे अधिक संख्या है। 8-13 वर्ष की आयु के अधिकांश लड़के मैनहोल सफाई सहायक के रूप में काम करते हैं।

आयोग ने पाया है कि सफाई कर्मचारियों की दुर्दशा के बारे में समाचार रिपोर्ट की सामग्री, जो अगर सच है, तो यह मानव अधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मुद्दा है। तथाकथित ‘मौसमी सफाई कर्मचारियों’ को कथित तौर पर सुरक्षा गियर के बिना सीवर लाइनों में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें केवल 'मौसमी सफाई कर्मचारी' कहने का मतलब यह नहीं है कि ठेकेदार/नियोक्ता मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में उल्लिखित दिशानिर्देशों और एनएचआरसी द्वारा जारी परामर्शी से कानूनी स्वतंत्रता या छूट ले सकते हैं।

तदनुसार, आयोग ने महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर समाचार रिपोर्ट में उठाए गए सभी मुद्दों को शामिल करते हुए मामले में एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। रिपोर्ट में मुद्दों के समाधान के लिए उठाए गए/प्रस्तावित कदमों का भी उल्लेख होना चाहिए। आयोग महाराष्ट्र सरकार से यह भी जानना चाहेगा कि क्या मुंबई में सीवर और वर्षा जल नालों को अलग करने के लिए उनके समक्ष कोई प्रस्ताव/परियोजना विचाराधीन है। 4 सप्ताह के भीतर जवाब मांगा गया है।

आयोग लगातार पर्याप्त और उचित सुरक्षात्मक/सुरक्षा गियर या उपकरणों के बिना जोखिमभरी सफाई की गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का समर्थन करता रहा है और साथ ही काम के अनुकूल और प्रौद्योगिकी आधारित रोबोटिक मशीनों के उपयुक्त उपयोग का भी समर्थन करता रहा है, साथ ही जोखिमभरे सफाई कार्य करते समय किसी भी सफाई कर्मचारी की मृत्यु होने की स्थिति में संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करने का भी समर्थन करता है।

आयोग ने 24 सितंबर, 2021 को केंद्र, राज्य सरकारों और स्थानीय अधिकारियों को जोखिमभरे सफाई कार्य में लगे व्यक्तियों के मानव अधिकारों के संरक्षण के बारे में एक परामर्शी भी जारी की है, जिसका उद्देश्य इस तरह की प्रथा का पूर्ण उन्मूलन सुनिश्चित करना है। परामर्शी में, यह विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि किसी भी स्वच्छता कार्य या जोखिमभरे सफाई कार्य के मामले में, स्थानीय प्राधिकरण और ठेकेदार/नियोक्ता को संयुक्त रूप से और अलग-अलग जिम्मेदार और जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, भले ही सफाई कर्मचारियों की भर्ती/नियुक्ति किसी भी प्रकार से की गई हो।

सफाई कर्मचारी आंदोलन एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (डब्ल्यूपी(सी) संख्या 583/2003) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 27.3.2014 को दिए गए निर्णय में विशिष्ट आदेश दिया गया है कि स्थानीय प्राधिकरणों और अन्य एजेंसियों को सीवर आदि की सफाई के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग करना होगा।