राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि देश के सभी 46 सरकारी मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों की स्थिति विभिन्‍न हितधारकों द्वारा उपेक्षित एवं अमानवीय व्‍यवहार को दर्शाती है।



दिनांक 25.01.2023

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत ने आज कहा कि देश भर में सभी 46 सरकारी मानसिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थान दयनीय स्थिति में हैं तथा विभिन्न हितधारकों द्वारा किए जा रहे बहुत ही उपेक्षित व्यवहार को दर्शाते हैं। आयोग द्वारा देश भर में रिकॉर्ड की गई मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों की अमानवीय एवं दयनीय स्थिति तथा मानसिक रूप से बीमार रोगियों के मानव अधिकारों का उल्लंघन खेदजनक है। अस्पतालों में ठीक हो चुके मरीजों को अवैध रूप से रखा जा रहा है। डॉक्टरों और स्टाफ की अत्‍यंत कमी है।

आयोग ने यह टिप्पणी पूर्ण आयोग द्वारा ग्वालियर, आगरा, रांची के चार सरकारी अस्पतालों के दौरे और देश के विभिन्न 42 हिस्सों में आयोग के विशेष प्रतिवेदकों द्वारा हाल ही में जमीनी स्थिति और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के कार्यान्वयन की स्थिति का आकलन करने के आधार पर की है।

इन दौरों की रिपोर्टों ने आयोग को मामले में स्वत: संज्ञान लेने के लिए प्रेरित किया और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक, मुख्य और प्रधान सचिवों, स्वास्थ्य, पुलिस महानिदेशक और पुलिस आयुक्त को सभी राज्य सरकारों के महानगरीय शहरों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेशों के निदेशकों को नोटिस जारी कर, देश भर के 46 मानसिक संस्थानों से निम्नलिखित पर छह सप्ताह के भीतर की गई व्‍यापक कार्रवाई की विशिष्ट रिपोर्ट मांगी:

राज्य के मुख्य सचिवों, स्वास्थ्य सचिवों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों को निम्नलिखित पर की गई कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी:

(i) ठीक हुए मरीजों की इच्‍छा के विपरीत कैसे अवैध रूप से मानसिक अस्पतालों में रखा जा रहा है। ऐसे सभी रोगियों को उनके घरों/अस्थिर निवास स्‍थानों में वापस भेज दिया जाना चाहिए और अधिनियम, 2017 की धारा 19 के प्रावधानों के उल्लंघन के अनुसार निपटाया जाना चाहिए;

(ii) मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण, राज्य मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड, राज्य मानसिक स्वास्थ्य देखभाल नियम और राज्य मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विनियमन के गठन की स्थिति;

(iii) मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों के संबंध में बजटीय आवंटन और जारी की गई धनराशि;

(iv) संस्थानों के बुनियादी ढांचे की स्थिति, भवनों के सुधार की योजना जिसमें विभिन्न सुविधाएं शामिल हों;

(v) अस्पताल के कर्मचारियों सहित स्वास्थ्य पेशेवरों की भर्ती प्रक्रिया की स्थिति; उसके लिए समय सीमा;

(vi) मानसिक अस्पतालों/संस्थानों में भीड़ कम करना सुनिश्चित करने के लिए किए गए उपाय और उचित स्वच्छता सहित रहने के लिए अनुकूल वातावरण बनाना;

(vii) जहां भी आवश्यक हो पर्याप्त संख्या में शिक्षण कर्मचारियों के साथ एम.फिल के पाठ्यक्रम के लिए प्रोफेसरों की नियुक्ति;

(viii) आपातकालीन सेवाओं की स्थिति, इलेक्ट्रॉनिक डेटा और मेडिकल रिकॉर्ड का रखरखाव, ठीक हो चुके रोगियों के पुनर्एकीकरण और पुनर्वास के लिए उपाय और की गईं पहल;

(ix) विगत पांच वर्षों के डिस्चार्ज रोगियों और उनके पुनर्वास, परिवार या समुदाय के साथ पुनर्मिलन, उनमें से कितने फिर से नए बंदी बन गए हैं, और अस्पताल में रहने वाले ऐसे व्यक्तियों की संख्या की स्थिति और उनके कारणों के बारे में आंकड़े प्रदान किए जाएं;

(x) भोजन और वास्तविक भुगतान के लिए सरकार द्वारा स्वीकृत राशि;

(xi) पिछले तीन वर्षों की वित्तीय या सामाजिक लेखापरीक्षा रिपोर्ट।

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सचिव और स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक को अधिनियम, 2017 की धारा 121 के तहत अधिनियम, 2017 के तहत नियम बनाने की स्थिति के साथ ही अधिनियम 2017 की धारा 33 के तहत अपेक्षित केंद्रीय प्राधिकरण की स्थापना, और केंद्रीय प्राधिकरण की रिक्तियों को भरना और केंद्र सरकार द्वारा अधिनियम 2017 के विभिन्न प्रावधानों के निष्पादन की स्थिति पर रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।

46 मानसिक संस्थानों के निदेशकों की प्रतिक्रिया रिपोर्ट में प्रोफेसरों और अन्य स्टाफ सदस्यों की रिक्तियों को भरने के लिए उठाए गए या उठाए जाने वाले कदमों; मानसिक बीमारी से ठीक हो चुके डिस्चार्ज मरीजों का रिकॉर्ड, आपातकालीन वार्ड की वर्तमान स्थिति और बुनियादी ढांचे के संबंध में आयोग और/या आयोग के विशेष प्रतिवेदकों के दौरों के बाद किए गए अन्य समग्र सुधार, कैदियों के लिए व्यावसायिक अवसर, रिहा किए गए व्यक्तियों और उन्‍हें उनके परिवारों के साथ फिर से मिलाने की संख्या से जुड़े विशिष्ट आंकड़ों को शामिल किया जाना चाहिए।

सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के महानगरों में क्रमशः पुलिस महानिदेशक और पुलिस आयुक्त को मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों से संबंधित प्राप्त या पंजीकृत शिकायतों की स्थिति के संबंध में, परिवार के साथ गैर-पुनर्वास या गैर-एकीकरण के संबंध में और यह सुनिश्चित करने के लिए किए गए या किए जाने वाले उपाय कि मानसिक बीमारी से ठीक हुए व्यक्ति परिवार और समुदाय के अन्य सदस्यों के साथ रह रहे हों के संबंध में रिपोर्ट प्रस्‍तुत करनी होगी। रिपोर्ट में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जैसा भी मामला हो, से सहायता या अन्य उपाय भी शामिल होने चाहिए।

एनएचआरसी के दौरे की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि किसी भी संस्थान ने यह सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी और दीर्घकालिक उपाय नहीं किए हैं कि एक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति बिना किसी बाधा के समुदाय में रहने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकता है।

नोटिस जारी करते हुए आयोग ने कहा है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम की धारा 19 के तहत यह स्पष्ट रूप से अनिवार्य है कि जहां मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के लिए अपने परिवार या रिश्तेदारों के साथ रहना संभव नहीं है, या जहां एक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को उसके परिवार और रिश्तेदारों द्वारा त्‍याग दिया गया है, उपयुक्त सरकार उसे कानूनी सहायता सहित उचित सहायता प्रदान करेगी और परिवार के साथ घर में रहने के उसके अधिकार का प्रयोग करने की सुविधा प्रदान करेगी।

आयोग ने आगे कहा है कि यह एक उपहास है कि क़ानून के प्रावधान ऐसे कमजोर व्यक्तियों जो मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं, को पर्याप्त सहायता प्रदान करने के लिए उपयुक्त सरकारों की चेतना को जागृत करने में विफल रहे हैं। अधिक विकराल कारक यह है कि मानसिक बीमारी से ठीक होने के बाद भी उन्हें सामुदायिक जीवन के उद्देश्य से समाज, परिवार के साथ पुनर्मिलन या पुनर्समूहन की अनुमति नहीं दी जा रही है जो संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार न केवल असंवैधानिक है बल्कि यह दिव्‍यांगजनों के अधिकारों से संबंधित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों के तहत दायित्वों का निर्वहन करने में राज्य सरकार (सरकारों) की विफलता भी है, जिसे भारत द्वारा अनुमोदित किया गया है। इसके अलावा, अधिनियम 2017 राज्य को निम्नानुसार स्थापित और विनियमित करने की शक्ति प्रदान करता है: -

धारा 45, राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण - इस अधिनियम को राष्ट्रपति की सहमति मिलने की तारीख से नौ महीने की अवधि के भीतर।

धारा 73, एक राज्य मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड

धारा 121 (2), राज्य सरकार मानसिक स्वास्थ्य देखभाल नियम, अधिनियम के प्रावधानों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के साथ।

और धारा 123, राज्य मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विनियम, इस अधिनियम के प्रावधान और उसके तहत बनाए गए नियमों के अनुरूप है।

लेकिन यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिकांश राज्य प्राधिकरणों द्वारा इन पहलुओं की अनदेखी की गई है।

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