राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के हस्तक्षेप से दो लाख से अधिक स्नातक/स्नातकोत्तर उच्च प्राथमिक स्तर के शिक्षकों की नौकरी को संरक्षित किया
नई दिल्ली, 28 सितम्बर, 2022
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत के हस्तक्षेप से देश भर के सरकारी / सरकारी सहायता प्राप्त और निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों में दो लाख से अधिक स्नातक / स्नातकोत्तर उच्च प्राथमिक स्तर के शिक्षकों की नौकरी संरक्षित की गई है क्योंकि उनके पास 12 वीं में मानक 50% अंक नहीं थे। आयोग की सिफारिशों पर विचार करते हुए, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने वैधानिक प्रावधानों तथा जीवन और आजीविका के अधिकार के बीच संतुलन बनाते हुए, उन सभी उम्मीदवारों को इस मानदंड से एक बार के लिए छूट दी है, जिन्होंने राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान, एनआईओएस से प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा उत्तीर्ण किया हो।
नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) अधिनियम में वर्ष 2017 में हुए संशोधन के अनुसार सेवा में सभी अप्रशिक्षित शिक्षकों के लिए यह प्रशिक्षण आवश्यक था।
राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद, एनसीटीई के दिशा-निर्देशों के अनुसार, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने एनआईओएस को इन शिक्षकों को 31 मार्च, 2019 तक प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी सौंपी। कई शिक्षकों ने प्रारंभिक शिक्षा में अपना डिप्लोमा पूरा किया, लेकिन एनआईओएस ने उन लोगों का डिप्लोमा सह प्रमाण पत्र जारी नहीं किया, जिनके पास 12वीं कक्षा में 50% अंक नहीं थे, जिससे उनकी नौकरी चली गई।
इस मामले में एक शिकायत प्राप्त होने पर, आयोग ने पाया कि एनआईओएस ने अपने विवरणिका में यह निर्दिष्ट नहीं किया था कि प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा करने के लिए सेवा स्नातक/स्नातकोत्तर शिक्षकों के लिए पात्रता मानदंड 10+2 में 50% अंक होने चाहिए।
इसके अलावा, आयोग ने शिक्षा मंत्रालय को इस पूरे मुद्दे पर एक बार फिर से विचार करने के लिए कहा, क्योंकि यह उन शिक्षकों के आजीविका के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है जो अन्यथा स्नातक या स्नातकोत्तर हैं और सेवा में हैं तथा यहां तक कि आरटीई अधिनियम और उनके तहत बनाए गए नियमों की वैधानिक आवश्यकता के अनुसार प्रारंभिक शिक्षा में अपेक्षित डिप्लोमा भी पास कर लिया था।
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