केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने 'संस्‍थानों से परे मानसिक स्वास्थ्य की परिकल्‍पना' विषय पर एनएचआरसी के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया



प्रेस विज्ञप्ति

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

26 जुलाई, 2023, नई दिल्ली

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने 'संस्‍थानों से परे मानसिक स्वास्थ्य की परिकल्‍पना' विषय पर एनएचआरसी के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया।

मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक को दूर करना महत्वपूर्ण है जो व्यक्तियों को वह मदद लेने से रोकता है, जिसकी उन्हें ज़रूरत है: डॉ. भारती प्रवीण पवार।

हमें खुली बातचीत को प्रोत्साहित करना चाहिए जो मानसिक स्वास्थ्य कलंक को खत्म करने के लिए समझ और करुणा को बढ़ावा दे। हमें मानसिक बीमारी के प्रति समवेदना की आवश्यकता है, न कि केवल सहानुभूति की: न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल स्वास्थ्य देखभाल का एक अभिन्न अंग है। उन्होंने कहा कि मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक को दूर करना महत्वपूर्ण है जो व्यक्तियों को वह मदद लेने से रोकता है जिसकी उन्हें ज़रूरत है।

National Conference on Moving Mental Health beyond Institutions

डॉ. पवार ने मुख्य अतिथि के रूप में नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत द्वारा आयोजित 'संस्‍थानों से परे मानसिक स्वास्थ्य की परिकल्‍पना’ पर राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर एनएचआरसी के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा, सदस्य, डॉ. डी एम मुले और श्री राजीव जैन, पूर्व सदस्य, न्यायमूर्ति श्री एम एम कुमार, महासचिव एनएचआरसी, श्री भरत लाल, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, भारत और राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। सम्मेलन का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के कार्यान्वयन में चुनौतियों पर चर्चा करना और मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के समाधान हेतु भविष्‍य के लिए योजनाओं पर विचार-विमर्श करना था।

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मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों की चुनौतियों और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 के समाधान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. पवार ने कहा कि "केंद्र सरकार सामान्य मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों हेतु किफायती प्रभावी उपचार की उपलब्धता और पहुंच को बढ़ावा दे रही है"। उन्होंने साझा किया कि मानसिक स्वास्थ्य को प्रमुख आयुष्मान भारत योजना में शामिल किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि "राष्ट्रीय टेली-मानसिक स्वास्थ्य सेवा के शुभारंभ के बाद से, 42 टेली-मानस सेल स्थापित किए गए हैं, जो पहले ही 2 लाख से अधिक कॉल रिकॉर्ड कर चुके हैं"।

केंद्रीय मंत्री ने एक नए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रतिमान की आवश्यकता को रेखांकित किया जो संस्थानों की सीमाओं से परे है और समुदाय-आधारित समर्थन पर केंद्रित है। उन्होंने छात्रों के मानसिक कल्याण के लिए स्कूलों में योग प्रथाओं का सुझाव दिया, जो हमारी संस्कृति में अंतर्निहित है और अब इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। उन्होंने आगे इस बात पर जोर दिया कि भारत के लिए योग और ध्यान की अपनी प्राचीन प्रथाओं के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में आगे बढ़ने का यह सही समय है।

उन्होंने विशेषज्ञों से भारत में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार-विमर्श करने और ऐसे भविष्य की दिशा में काम करने का आग्रह किया, जहां मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सुलभ, सस्ती, समावेशी और दयालु हो।

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इससे पहले, एनएचआरसी के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने अपने आधार व्‍याख्‍यान में कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में, प्रत्येक मानव को चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करना राज्य का दायित्व है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 147 के तहत अनिवार्य है। अस्पताल उत्तम मानकों के अनुरूप चलने चाहिए जिसमें डिजिटल और आत्महत्या की रोकथाम सहित गुणवत्तापूर्ण अधिकारों के साथ गुणवत्तापूर्ण देखभाल को बढ़ावा देना, मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना और हस्तक्षेप करना शामिल हो। उन्होंने कहा कि अवसाद विकलांगता का प्रमुख कारण है और बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और कार्यस्थल पर तनाव पर ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने सरकारों की पहल और नीतियों की सराहना की और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 को एक अद्वितीय कानूनी प्रावधान बताया। उन्होंने यह भी कहा कि मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के लिए कानूनी ढांचे, सुविधाओं और कल्याण नीतियों के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए देश में बहुत कुछ करने की जरूरत है। उन्होंने सवाल किया कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में सुधार के लिए केंद्र द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे धन का पूरा उपयोग क्यों नहीं किया जाता है।

एनएचआरसी अध्यक्ष ने कहा कि अस्पताल कोई ऐसी जगह नहीं है जहां ठीक हो चुके मरीजों को एक भी अतिरिक्त दिन रुकने की अनुमति दी जानी चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में लगभग 2,000 ठीक हो चुके मरीज़ पड़े हुए हैं जो उनके अधिकारों का उल्लंघन है। यह समस्या उन नए रोगियों की ज़रूरतों को पूरा करने की अस्पताल की क्षमता को भी प्रतिबंधित करती है जिन्हें तत्काल इलाज की आवश्यकता होती है। जुलाई, 2022 से जनवरी, 2023 तक 47 मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अस्पतालों और संस्थानों में आयोग और उसके विशेष प्रतिवेदक के दौरों का जिक्र करते हुए, उन्होंने कहा कि ठीक हो चुके मरीजों को हाफ वे होम या उनके परिवारों के पास वापिस भेजने की सुविधा प्रदान करने के लिए जिला प्रशासन, पुलिस और मानसिक स्वास्थ्य केंद्र अधिकारियों जैसी विभिन्न एजेंसियों के बीच गहन समन्वय की कमी दिखाई दे रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और इस स्थिति में सुधार करने के लिए अधिकारियों के बीच बेहतर समन्वय स्‍थापित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कुछ मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में उचित बुनियादी ढांचे की कमी के कारण उनकी स्थिति कैद जैसी है। मरीजों और ठीक हो चुके व्यक्तियों को भी आराम के लिए बाहर ले जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि हमें मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को अपने स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों में एकीकृत करना चाहिए। सोशल मीडिया के साथ स्वस्थ सीमाएँ स्थापित करना भी आवश्यक है।

डॉ. वी के पॉल, सदस्य (स्वास्थ्य), नीति आयोग ने आगे के सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों के बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों में मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों और समस्याओं वाले व्यक्तियों की इष्टतम उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल सुनिश्चित करने से संबंधित एक महत्वपूर्ण पहलू शामिल है। उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से निपटने के लिए मनोचिकित्सकों, बिस्तरों और प्रशिक्षित मानव संसाधनों की कमी को दूर करने के लिए कुछ उत्कृष्ट सुझाव दिए। श्रीमती प्रीति सूडान, सदस्य, यूपीएससी और पूर्व स्वास्थ्य सचिव, भारत सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को मजबूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और देश में बेहतर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए ढांचागत पहलुओं, मानव संसाधनों, जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में भागीदारी और संवेदनशीलता के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया।

इससे पहले, एनएचआरसी के महासचिव श्री भरत लाल ने सम्मेलन का विहंगावलोकन देते हुए कहा कि मानसिक स्वास्थ्य स्वास्थ्य का एक अभिन्न अंग है। संस्थानों से आगे बढ़ने से शीघ्र हस्तक्षेप और रोकथाम रणनीतियों को प्रोत्साहन मिलता है। सुलभ और सक्रिय समुदाय-आधारित देखभाल प्रदान करके, हम मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं की शीघ्र पहचान कर सकते हैं और उनके बढ़ने से पहले उपचार कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आयोग देश में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को और बेहतर बनाने के लिए विशेषज्ञों और विभिन्न हितधारकों के परामर्श से मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।

इस अवसर पर एनएचआरसी के दो प्रकाशन भी जारी किये गये। इनमें 'मानसिक स्वास्थ्य: सभी के लिए चिंता - मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के संदर्भ में' और 'मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के कार्यान्वयन की स्थिति' पर एक रिपोर्ट शामिल है।

मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान, IHBAS के निदेशक डॉ. आर के धमीजा ने कहा कि विशेष रूप से बच्चों के मानसिक कल्याण के लिए मोबाइल मानसिक स्वास्थ्य इकाइयों और स्कूल मानसिक स्वास्थ्य पहल जैसे मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के नवीन रूपों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान, निम्‍हंस (एनआईएमएचएएनएस) की निदेशक डॉ. प्रतिमा मूर्ति ने मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के मानव अधिकारों के संर्वधन और संरक्षण हेतु एनएचआरसी के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि आयोग द्वारा निरंतर निरीक्षण और निगरानी से मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों के लिए बजट और वित्तीय संसाधनों में वृद्धि हुई है, भोजन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, मरीजों की भीड़-भाड़ में कमी आई है और पुनर्वास सुविधाएं बेहतर हुई हैं।

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'संस्‍थानों से परे मानसिक स्वास्थ्य की परिकल्‍पना’ पर राष्ट्रीय सम्मेलन को उद्घाटन और समापन सत्रों के अलावा चार विषयगत सत्रों में विभाजित किया गया है। इनमें 'मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के कार्यान्वयन में चुनौतियां', 'मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों का बुनियादी ढांचा और मानव संसाधन – भविष्‍य हेतु योजनाएं', 'मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के अधिकार, जिसमें पुनर्एकीकरण, पुनर्वास और सशक्तिकरण शामिल हैं' तथा 'मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर देखभाल में नवीनतम रुझान, अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य और भविष्‍य हेतु योजनाएं' शामिल हैं। पैनलिस्टों में राज्य मानव अधिकार आयोगों के अध्यक्ष और सदस्य, एनएचआरसी के विशेष प्रतिवेदक, वरिष्ठ अधिकारी, विषय वस्तु विशेषज्ञ, नागरिक समाज के सदस्य, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर और विभिन्न राज्य मानसिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों के प्रतिनिधि तथा केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारी शामिल हैं।

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