एनएचआरसी का 30वां स्थापना दिवस



प्रेस विज्ञप्ति

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

नई दिल्ली, 12 अक्टूबर, 2023

एनएचआरसी का 30वां स्थापना दिवस

भारत के पूर्व राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने 30 वर्षों के दौरान मानव अधिकारों के समर्थन में एनएचआरसी की भूमिका की सराहना की

आतंकवाद और हिंसा के कृत्य मानव अधिकारों के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ हैं: श्री राम नाथ कोविन्द

एनएचआरसी अध्यक्ष, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने छात्र आत्महत्याओं पर चिंता व्यक्त की; स्नातक तक अनिवार्य शिक्षा का आह्वान किया

भिखारियों, ट्रांसजेंडर, यौनकर्मियों, अनाथों और तस्करी के शिकार नाबालिगों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सुनिश्चित करने के लिए दस्तावेज और आधार कार्ड उपलब्ध कराने के लिए अधिकारियों से अपील की

मानव अधिकारों में वोट देने और सरकार चुनने का अधिकार शामिल है और राज्य को हिंसा मुक्त चुनाव सुनिश्चित करना चाहिए ताकि नागरिक मौलिक लोकतांत्रिक अधिकारों का उपभोग कर सकें: न्यायमूर्ति मिश्रा

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राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत ने आज डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में अपना 30वां स्थापना दिवस मनाने के लिए एक समारोह का आयोजन किया। आयोग की स्थापना आज ही के दिन 1993 में की गई थी। मुख्य अतिथि के रूप में समारोह को संबोधित करते हुए, भारत के पूर्व राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविंद ने इन 30 वर्षों में मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण और समाज के वंचित और कमजोर वर्गों के अधिकारों का समर्थन करने के लिए एनएचआरसी की भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि आयोग मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के लिए भारत की चिंता का प्रतीक है।

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श्री कोविन्द ने कहा कि भारत की समृद्ध प्राचीन परंपरा रही है, जो मानवता के प्रति करुणा और अहिंसा के लिए इसके विभिन्न ग्रंथों में परिलक्षित होती है। इन शिक्षाओं की मूल भावना यह है कि प्रत्येक मनुष्यि स्वतंत्र और समान पैदा होते है, जिसके पास तर्क और विवेक होता है। आतंकवाद और हिंसा के कृत्य मानव अधिकारों के बुनियादी सिद्धांतों के विरुद्ध हैं। भारत ने लगातार मानव अधिकारों को बरकरार रखा है और कभी भी कोई युद्ध शुरू करने के बजाय शांति में विश्वास रखता है। भारत सभी रूपों और अभिव्यक्तियों में हिंसा और आतंकवाद की निंदा करता है। यह प्रतिबद्धता विशेष रूप से जरूरतमंद लोगों के प्रति सहानुभूति और करुणा के हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का प्रमाण है, जो मानव अधिकारों के सिद्धांतों के प्रति हमारे समर्पण को रेखांकित करती है।

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किसी भी समाज के लिए उसके मानव अधिकारों को सुनिश्चित करके समाज के वंचित/हाशिए के लोगों के सामाजिक सशक्तिकरण से बड़ी कोई मांग नहीं है। यह महान आकांक्षा अब सरकार की अटूट प्रतिबद्धता के माध्यम से वास्तविकता बन गई है तथा इसे सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास किए जा रहे है ताकि कमजोर लोग वास्तव में सशक्त हों। सरकार केवल प्रशासनिक उपायों पर निर्भर नहीं रही; सरकार ने हाशिए पर मौजूद लोगों के उत्थान के लिए कानून का रास्ता चुना। यह विधायी प्रयास देश के सबसे प्रतिष्ठित कानून निर्माताओं के बीच एक सामूहिक सहमति को दर्शाता है, जो समाज के हाशिये पर पड़े और कमजोर वर्गों को ऊपर उठाने के सरकार के दृढ़ संकल्प को रेखांकित करता है। भारत सरकार 'किसी को भी पीछे न छोड़ने' के विचार के प्रति प्रतिबद्ध है। इसका मतलब यह सुनिश्चित करना है कि सभी को, विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों और दिव्यां गजनों जैसे कमजोर समूहों को शामिल किया जाए और उनकी देखभाल की जाए।

श्री कोविन्द ने लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने वाली बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाली विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि भारत में स्वच्छ पेयजल तक पहुंच का संवैधानिक अधिकार भोजन के अधिकार, स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार से लिया जा सकता है, जो सभी जीवन के अधिकार के व्यापक शीर्षक के तहत संरक्षित किए गए है जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत है। इस दिशा में, भारत ने प्रत्येक नागरिक के लिए सम्मान सुनिश्चित करने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए कदम उठाए हैं। गरिमा का सबसे महत्वपूर्ण संकेत स्वच्छता सुविधाओं, विशेषकर शौचालयों का प्रावधान है।

उन्होंने कहा कि हाल ही में भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के दौरान विश्व मंच पर अपनी उपस्थिति और अपने प्रभाव को और बढ़ाया है। भारत ने मानव अधिकारों के हित में, जलवायु संबंधी चुनौतियों का समाधान करने, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ाने के उद्देश्य से चर्चा और पहल की सुविधा प्रदान की। अफ्रीकी संघ को पूर्ण सदस्य के रूप में जी20 में शामिल कराने का हमारा प्रयास दर्शाता है कि हम 'वसुधैव कुटुंबकम' यानी पूरी दुनिया एक परिवार है, के सिद्धांत पर विश्वास करते हैं और उस पर कार्य करते हैं।

इससे पहले, एनएचआरसी अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने कहा कि स्थापना दिवस मनाने का उद्देश्य हमें अपने कर्तव्य की याद दिलाना और मानवता के सामने आने वाली नई चुनौतियों पर विचार करना है। उन्होंने कहा कि लगातार बदलती दुनिया में, मानव अधिकारों के स्थायी प्राचीन भारतीय मूल्य, करुणा और नैतिक आचरण के लोकाचार उनके संरक्षण के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता और कार्रवाई के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं। हिंसक उग्रवाद मानव अधिकारों, अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा और सतत विकास के लिए खतरा है। इस बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना महत्वपूर्ण है। मानव अधिकार संस्थानों, नागरिक समाज संगठनों, मानव अधिकार संरक्षकों और अन्य हितधारकों को इसमें शामिल होना चाहिए।

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छात्रों द्वारा आत्महत्या की बढ़ती संख्या की खबरों का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि कोचिंग की आवश्यकता गंभीर चिंता का विषय है। नई शिक्षा नीति हमारी सदियों पुरानी प्रणाली की कई चिंताजनक विशेषताओं को संबोधित करने का प्रयास करती है। साथ ही, इस बात पर विचार करने की तत्काल आवश्यकता है कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और प्रतियोगी परीक्षाओं का चयन करने वाले छात्रों पर कितना बोझ डाला जाना चाहिए। शिक्षा प्रणाली अत्यधिक यांत्रिक और बोझिल हो गई है जिससे छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति की उपलब्धि को देखते हुए, शिक्षा नीति में किसी भी तरह का भेदभाव समाप्त होना चाहिए और कम से कम स्नातक स्तर तक शिक्षा अनिवार्य कर दी जानी चाहिए।

न्याियमूर्ति मिश्रा ने कहा कि हमारा जोर आविष्कार के लिए जरूरी मौलिक चिंतन क्षमता विकसित करने पर होना चाहिए। भारत में भाषाओं की विविधता है। हमारी शिक्षा विभिन्न भारतीय भाषाओं में साहित्य को बढ़ावा देने और हमारी संस्कृति को समृद्ध करने की दिशा में केंद्रित होनी चाहिए।

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एनएचआरसी अध्यक्ष ने तस्करी और गुलाम बनाई गई लड़कियों और महिलाओं के सामने शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक-आर्थिक कल्याण योजनाओं के लाभ तक पहुंच हेतु आने वाली समस्याओं पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि उनके बच्चे सबसे अधिक पीड़ित हैं, जो अधिकारों और सामाजिक सम्मान की सुरक्षा के समान रूप से हकदार हैं। इसी तरह, उन्होंने कहा कि एलजीबीटीक्यूसआईए+ समुदायों के अधिकारों और चुनौतियों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। इसे ध्यान में रखते हुए आयोग ने उनके कल्याणकारी उपायों के लिए पिछले महीने एक परामर्शी जारी की थी। इनमें अन्य बातों के अलावा, पेंशन और अन्य लाभ प्राप्त करने के लिए अपने बच्चों को अविवाहित बेटियों के समान मानना, कृषि भूमि में विरासत और शिक्षा और रोजगार में सुरक्षा शामिल है।

इसके अलावा, एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष ने समाज के विभिन्न वर्गों के अधिकारों के संरक्षण के लिए हाल ही में आयोग द्वारा जारी की गई कई नई परामर्शियों पर भी ध्यान आकर्षित किया जिनमें ड्राइवरों के कल्याण से संबंधित, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना, सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई से श्रमिकों की रक्षा करना, नेत्र आघात के पीड़ितों का कल्याण, कैदियों की आत्महत्या को रोकना और हाल ही में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार पर जारी परामर्शी शामिल हैं। उन्होंने यह भी कहा कि शारीरिक और मानसिक कल्याण के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं हर इंसान का अधिकार है। हालाँकि, बिना सहमति के चिकित्सा उपचार और प्रयोग के लिए कोई नियम नहीं है।

न्या यमूर्ति मिश्रा ने कहा कि मानव अधिकार में वोट देने और सरकार चुनने का अधिकार भी शामिल है। राज्य को हिंसा-मुक्त चुनाव सुनिश्चित करना चाहिए ताकि नागरिक मौलिक लोकतांत्रिक अधिकारों का आनंद उठा सकें। मीडिया के माध्यम से जानकारी और विचार खोजना, प्राप्त करना और प्रदान करना, राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। फेसबुक, ट्विटर और टीवी बहसों में अक्सर मानव अधिकारों का उल्लंघन होता है। व्यक्तियों की गरिमा और प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है। मीडिया बहसों का गिरता स्तर चिंता का कारण है। सभी संबंधित पक्षों की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि युवा पीढ़ी पर असभ्य बहस और संवाद का बुरा प्रभाव न पड़े।

हालाँकि, न्यायमूर्ति मिश्रा ने डिजिटल प्रौद्योगिकी और नवाचार में प्रगति को स्वीकार करते हुए कहा कि डेटा गोपनीयता, ई-कॉमर्स, बैंकिंग धोखाधड़ी, व्यापार और अंतरराष्ट्रीय अपराध सिंडिकेट से संबंधित साइबरस्पेस में लोगों के अधिकारों के उल्लंघन की रक्षा के लिए कानूनी ढांचा गति नहीं पकड़ पाया है। आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने के लिए बिचौलियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष ने कहा कि ऊर्जा परिवर्तन के कारण प्रभावित श्रमिकों के लिए वैकल्पिक रोजगार के अवसर सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, जिसे बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए। आयोग व्यवसाय और मानव अधिकारों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है ताकि दक्षता, उत्पादकता और मानव अधिकार, सभी साथ-साथ चलें और कोई भी पीछे न छूटे। न्या यमूर्ति मिश्रा ने कहा कि पलायन में आंतरिक विस्थापन, शिक्षा और स्वास्थ्य तक पहुंच की समस्या है। समाज में कुछ वर्गों के मानव अधिकारों से समझौता किया जाता है, जिनमें भिखारी, ट्रांसजेंडर, यौनकर्मी, अनाथ और तस्करी किए गए नाबालिग शामिल हैं। हमें विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने हेतु उनके लिए दस्तावेजों की उपलब्धल कराने की आवश्यकता पर ध्यान देना चाहिए। मैं अधिकारियों से मिशन मोड में इन लोगों को 'आधार कार्ड' उपलब्ध कराने की अपील करता हूं।

एनएचआरसी के महासचिव, श्री भरत लाल ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि आयोग के स्थापना दिवस के जश्न के साथ, यह हमें आयोग के अस्तित्व के 30 वर्षों के दौरान मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण में निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका की याद दिलाता है। आयोग ने 22 लाख से अधिक मामलों का समाधान किया था और इस अवधि के दौरान मानव अधिकार उल्लंघन के पीड़ितों को 230 करोड़ रुपये की मौद्रिक राहत के भुगतान की सिफारिश की थी।

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उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रमों, शिविर बैठकों, विशेष प्रतिवेदकों और विशेष मॉनिटरों के दौरों, विभिन्न सेमिनारों और परामर्शों, मानव अधिकारों के लिए हस्तक्षेप सहित आयोग की विभिन्न गतिविधियों पर भी प्रकाश डाला।

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एनएचआरसी के सदस्य डॉ. ज्ञानेश्वर एम मुले और श्री राजीव जैन, राज्य मानव अधिकार आयोगों के अध्यक्ष और सदस्य, न्यायपालिका के सदस्य, राजनयिक, एनएचआरसी के विशेष प्रतिवेदक और विशेष मॉनिटर, वरिष्ठ अधिकारी, नागरिक समाज के प्रतिनिधि, मानव अधिकार संरक्षक, अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय गणमान्य लोग समारोह में शामिल हुए।

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