राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत ने 'उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की पुनः जाँच: जागरूकता, जवाबदेही और कार्रवाई के माध्यम से सुरक्षित परिसरों का निर्माण' विषय पर एक ओपन हाउस चर्चा का आयोजन किया।
प्रेस विज्ञप्ति
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
नई दिल्ली: 28 अगस्त, 2025
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत ने 'उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की पुनः जाँच: जागरूकता, जवाबदेही और कार्रवाई के माध्यम से सुरक्षित परिसरों का निर्माण' विषय पर एक ओपन हाउस चर्चा का आयोजन किया।
अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री वी. रामासुब्रमण्यन ने रैगिंग के विभिन्न रूपों को रोकने के लिए निगरानी तंत्र में सुधार का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि कानूनों, विधानों, समितियों और विनियमों की प्रचुरता के बावजूद, इनका प्रवर्तन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने नई दिल्ली स्थित मानव अधिकार भवन में 'उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की पुनः जाँच: जागरूकता, जवाबदेही और कार्रवाई के माध्यम से सुरक्षित परिसरों का निर्माण' विषय पर एक ओपन हाउस चर्चा का आयोजन किया। बैठक की अध्यक्षता एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री वी. रामासुब्रमण्यन ने की। इसमें एनएचआरसी के सदस्य, न्यायमूर्ति (डॉ.) विद्युत रंजन षडंगी और श्रीमती विजया भारती सयानी; महासचिव श्री भरत लाल; संयुक्त सचिव श्री समीर कुमार और श्रीमती सैड़िगपुई छकछुआक, आयोग के अन्य अधिकारी, साथ ही प्रख्यात क्षेत्र विशेषज्ञ, प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों और शैक्षणिक निकायों के प्रमुख, कानूनी विशेषज्ञ और नागरिक समाज के सदस्य, तथा अन्य हितधारकों ने भी भाग लिया।
चर्चा तीन प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित रही:
i.) भारतीय परिसरों में रैगिंग की चुनौतियों और प्रभाव को समझना
ii.) मौजूदा कानूनी और संस्थागत रैगिंग विरोधी ढाँचों की समीक्षा करना और
iii.) जागरूकता, कार्रवाई और समावेशन के माध्यम से रोकथाम को मज़बूत करने के तरीके तलाशना।
चर्चा की अध्यक्षता करते हुए, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री वी. रामासुब्रमण्यन ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की प्रचलित प्रथा पर चिंता व्यक्त की। 2001 के दिशानिर्देश, आर. के. राघवन समिति और 2009 के यूजीसी विनियम जैसे कानूनों, विधानों, समितियों और विनियमों की प्रचुरता के बावजूद, उन्होंने कहा कि इनका प्रवर्तन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
उन्होंने रैगिंग के विभिन्न रूपों को रोकने के लिए मज़बूत निगरानी तंत्र का आह्वान किया। उन्होंने पीड़ितों की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने के लिए कानूनों को लागू करने, शिकायतों के निपटारे में अधिक संवेदनशीलता और शिकायतकर्ताओं की गोपनीयता बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
इससे पहले, अपने उद्घाटन भाषण में, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के महासचिव श्री भरत लाल ने कहा कि रैगिंग से छात्र के आत्मसम्मान, गरिमा और कुछ मामलों में, उसके पूरे करियर को नुकसान पहुँचता है। उन्होंने उन आंकड़ों की ओर ध्यान आकर्षित किया जो बताते हैं कि चिकित्सा संस्थान रैगिंग के केंद्र हैं, जहाँ देश की कुल छात्र संख्या का केवल 1.1% होने के बावजूद 38.6% घटनाएँ होती हैं। उन्होंने आर. के. राघवन समिति के गठन का स्मरण किया और इस बुराई से निपटने के लिए रोकथाम, निषेध और दंड के तीन मूलभूत सिद्धांतों को रूपरेखा के रूप में दोहराया। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल देते हुए, उन्होंने आग्रह किया कि चर्चा सार्थक परिणामों और ठोस कार्रवाइयों की ओर ले जाए।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य डॉ. न्यायमूर्ति विद्युत रंजन षडंगी ने मूल कारणों की पहचान करने की आवश्यकता पर बल दिया और प्रतिभागियों से इस संकट को नियंत्रित करने के लिए व्यावहारिक निवारक उपायों की सिफारिश करने का आग्रह किया। एनएचआरसी की सदस्य श्रीमती विजया भारती सयानी ने देश के कुछ हिस्सों में जाति-आधारित रैगिंग की व्यापकता पर प्रकाश डाला और समावेशी, लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता पर बल दिया।
आरंभ में, प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए, एनएचआरसी के संयुक्त सचिव श्री समीर कुमार ने उच्च शिक्षण संस्थानों को विकास, रचनात्मकता और समान अवसर के केंद्र बनाए रखने के लिए सामूहिक रूप से आगे का मार्ग तैयार करने के उद्देश्य से एजेंडे की रूपरेखा प्रस्तुत की।
ओपन हाउस चर्चा में श्रीमती रीना सोनोवाल कौली, संयुक्त सचिव (उच्च शिक्षा), शिक्षा मंत्रालय; प्रो. मनीष आर. जोशी सचिव, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी); एन.एच. सिद्धलिंग स्वामी, एआईसीटीई; प्रो. मानस के. मंडल, मनोविज्ञान के प्रोफेसर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर; श्री भरत पाराशर, सदस्य सचिव, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए); डॉ. राकेश लोढ़ा एसोसिएट डीन, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली; डॉ. गुरुराज गोपीनाथ पामिडी, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, आईआईएम, इंदौर; डॉ. अरविंद कुमार द्रेव, सलाहकार, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी), नई दिल्ली; प्रो. सम्पा साहा, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली; प्रो. रोयाना सिंह, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय; प्रो. राजेंद्र काचरू, संस्थापक, अमन मूवमेंट; श्रीमती अलका तोमर, अध्यक्ष, सेंटर फॉर यूथ; डॉ. मीत घोनिया, राष्ट्रीय सचिव, द फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA); श्री गौरव सिंघल, उपाध्यक्ष और श्रीमती मीरा कौर पटेल, कानूनी प्रमुख, सोसाइटी अगेंस्ट वायलेंस इन एजुकेशन (SAVE), व अन्य ने भाग लिया।
चर्चा में सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ, निम्नलिखित प्रमुख सुझाव सामने आए:
• रैगिंग रोकने के लिए लोगों की मानसिकता में अवचेतन परिवर्तन लाने हेतु रिचर्ड थेलर की 'नज तकनीक' पर ज़ोर देकर निर्णय प्रक्रिया में बदलाव लाना होगा।
• प्रत्येक संस्थान की वेबसाइट पर यूजीसी की 24x7 एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन प्रदर्शित की जाए।
• पुलिस को तत्काल अनिवार्य सूचना दी जाए।
• रैगिंग की गुमनाम शिकायतों को प्रोत्साहित किया जाए।
• एंटी-रैगिंग समितियों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व हो।
• रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पीड़ितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
• नियमित ऑडिट, औचक निरीक्षण, सीसीटीवी निगरानी और परिसरों में पुलिस का दौरा।
• प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ वेलनेस और समावेशन केंद्र स्थापित किए जाएँ।
• जिला प्रशासन की स्वीकृति के बिना शिकायतों को बंद न किया जाए।
• संस्थानों से साक्ष्य और जवाबदेही के उपायों के साथ वार्षिक एंटी-रैगिंग रिपोर्ट।
• रैगिंग-मुक्त परिसरों को सर्वोत्तम अभ्यास के रूप में मान्यता।
• शिकायत मामलों में अभिभावकों की भागीदारी।
• एनएचआरसी, नालसा और यूजीसी के बीच सहयोग।