एनएचआरसी अध्यक्ष ने कहा कि विचारों को थोपना नहीं, आत्मसात करना भारतीय आस्था का मूल है; एनएचआरसी-आईजीएनसीए द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का मानवता और मानव अधिकारों के भारतीय लोकाचार का प्रसार करने के लिए ऐसे संवादों की एक श्रृंखला....
एनएचआरसी अध्यक्ष ने कहा कि विचारों को थोपना नहीं, आत्मसात करना भारतीय आस्था का मूल है; एनएचआरसी-आईजीएनसीए द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का मानवता और मानव अधिकारों के भारतीय लोकाचार का प्रसार करने के लिए ऐसे संवादों की एक श्रृंखला आयोजित करने के नोट पर समापन हुआ।
नई दिल्ली, 1 जुलाई, 2022
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, आईजीएनसीए द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित भारतीय संस्कृति और दर्शन में मानव अधिकारों पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज नई दिल्ली में समापन हुआ, जिसमें इस तरह के संवादों की एक श्रृंखला की आवश्यकता अनुभव की गई। कला, संस्कृति और दर्शन की समृद्ध भारतीय विरासत का अध्ययन करने, समझने और चर्चा करने के लिए संगठित होना आवश्यक है ताकि वैश्विक सभ्यता में इसके योगदान को उजागर किया जा सके और बदलते समय की वास्तविकताओं के साथ उन प्रथाओं को बनाए रखा जा सके।
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए, एनएचआरसी के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने कहा कि भारतीय सभ्यता के लोकाचार विचारों और विश्वासों की विभिन्न धाराओं को आत्मसात करने की शक्ति से संपन्न हैं, क्योंकि हम अपनी संस्कृति को सुधारना चाहते हैं और दूसरों पर नहीं थोपना चाहते हैं, जिससे मानव अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों के सम्मान की अवधारणा को केवल यह समझकर ही कायम रखा जा सकता है कि यह सतत विकास का एक अभिन्न अंग है। विकास के लिए हम इतने कार्बन का उत्सर्जन नहीं कर सकते जो पूरी दुनिया को खतरे में डाल रहा है।
उन्होंने कहा कि आज दुनिया विनाशकारी हथियारों का सामना कर रही है, जो पर्यावरण और मानवता के लिए एक गंभीर खतरा है। विनाशकारी हथियारों के इस्तेमाल से केवल उनके निर्माताओं को फायदा होता है, आम लोगों को नहीं। भारत की परमाणु नीति का सिद्धांत उसकी पिछली विचारधारा का प्रकटीकरण है जो सामूहिक विनाश के हथियारों के उपयोग को प्रतिबंधित करता है, जो केवल मानवता को नुकसान पहुंचाते हैं। यह रामायण और महाभारत दोनों में परिलक्षित होता है जब सामूहिक विनाश के हथियारों का उपयोग निषिद्ध था।
इससे पहले, एनएचआरसी के सदस्य, डॉ. डी. एम. मुले ने कहा कि आतंकवाद के दौर में क्या हम मानवता को कायम रखने के लिए रोडमैप के बारे में नहीं सोच सकते। मानव अधिकारों के बारे में भारतीय दृष्टिकोण केवल मनुष्य के लिए नहीं बल्कि पूरे विश्व, ग्रह और ब्रह्मांड के लिए है। इसे पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के लिए एक रोडमैप बनाने के लिए एक आधार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र और कुछ नहीं बल्कि मानवाधिकारों की प्रथा है और कला, संस्कृति और दर्शन में परिलक्षित मूल्यों की अपनी लंबी परंपराओं को देखते हुए भारत मानवाधिकारों का अभ्यास करने के लिए सबसे अच्छा आधार है।
डॉ. मुले ने कहा कि मानवता को बनाए रखने के लिए उनके बारे में जागरूकता का प्रसार करने की आवश्यकता है क्योंकि अधिकांश भारतीय मानव अधिकारों के सम्मान की समृद्ध भारतीय विरासत को नहीं समझते हैं। हर जगह परेशान करने वाले रुझान हैं जिनसे लोकतांत्रिक तरीके से निपटने की जरूरत है। भारत का विचार 1.3 बिलियन कहानियों के इर्द-गिर्द घूमता है, यह संग्रह मानव अधिकारों के लिए एक आख्यान स्थापित करेगा।
आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों का अवलोकन करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति विदेशों में किसी भी भारतीय की पहचान है। हमारे ग्रंथ मानवाधिकार केंद्रित विचारों के भंडार हैं। उन मूल्यों को आज भी देखा जाता है, जब भारतीय समाज, कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, कोविड-19 महामारी के दौर में भी आगे बढ़ा।
धन्यवाद प्रस्ताव देते हुए, एनएचआरसी के महासचिव, श्री डी.के.सिंह ने कहा कि यह राष्ट्रीय संगोष्ठी एक चर्चा की शुरुआत का प्रतीक है जिसमें बीस विशिष्ट वक्ताओं ने मानव अधिकारों की स्थायी अवधारणा और वसुधैव कुटुम्बकम के विचार के लिए भारतीय कला, संस्कृति और दर्शन की समृद्ध परंपराओं को समझने, आत्मसात करने और आगे बढ़ाने के लिए एक विचार प्रक्रिया को प्रज्वलित किया।
समापन सत्र से पहले, कला और साहित्य में मानवाधिकारों पर तीसरा विषयगत सत्र आयोजित किया गया था। इसकी अध्यक्षता एनएचआरसी, सदस्य, श्री राजीव जैन और सह-अध्यक्षता जामिया मिलिया इस्लामिया की कुलपति, सुश्री नजमा अख्तर ने की। सुश्री अख्तर ने नई शिक्षा नीति के आगमन की सराहना की और आशा व्यक्त की कि मानवाधिकार एक विषय के रूप में नहीं बल्कि जीवन शैली के रूप में इसका एक समावेशी हिस्सा होगा।
*****