एनएचआरसी द्वारा बाल विवाह की कथित बढ़ती घटनाओं पर महाराष्ट्र के मुख्य सचिव और मराठवाड़ा क्षेत्र के आठ जिला कलेक्टरों को नोटिस जारी।



नई दिल्ली, 23 दिसंबर,2022

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत ने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में प्रचलित बाल विवाह के कदाचार, जिसके कारण बड़ी संख्या में महिलाएं दयनीय जीवन जीने को मजबूर हैं, को उजागर करने वाले अखबार के लेख का स्वत: संज्ञान लिया है। लेख में इस क्षेत्र में कुछ बाल विवाह पीड़ितों की दुर्दशा के विषय में बताया गया है।

आयोग ने पाया है कि बाल विवाह के पीड़ितों की दुर्दशा के बारे में लेख की सामग्री, यदि सत्य है, तो यह मराठवाड़ा क्षेत्र में गरीब लोगों, विशेष रूप से महिलाओं के जीवन, स्वतंत्रता, गरिमा और समानता से संबंधित मानव अधिकारों का उल्लंघन है।

तदनुसार, आयोग ने महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव और राज्य में जालना, औरंगाबाद, परभणी, हिंगोली, नांदेड़, लातूर, उस्मानाबाद और बीड के जिला कलेक्टरों को नोटिस जारी कर समाचार रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दे के समाधान के लिए उठाए गए/प्रस्तावित कदमों सहित मामले में एक विस्तृत रिपोर्ट की मांग की है। अधिकारियों से जल्द से जल्द इन आदेशों के जारी होने के 6 सप्‍ताह के भीतर जवाब अपेक्षित है।

आयोग ने अपने विशेष प्रतिवेदक श्री. पीएन दीक्षित को मराठवाड़ा क्षेत्र का दौरा करने; डेटा एकत्र करने, बाल विवाह की समस्या का गहन अध्ययन करने और प्रभावी कानून के बेहतर कार्यान्वयन के लिए 3 महीने के भीतर उपाय सुझाने के लिए कहा है।

उल्‍लेखनीय है कि 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष और 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह के मामले में 2 साल तक के सश्रम कारावास और 1 लाख रुपये तक के जुर्माने के प्रावधानों के बावजूद, देश के कई हिस्सों में बाल विवाह की घटनाएं कथित तौर पर हो रही हैं। आयोग ने यह भी कहा है कि इस सामाजिक बुराई से लड़ने के लिए प्रभावी कदम उठाने के लिए सरकारी एजेंसियों को अधिक सतर्क और सक्रिय होना होगा। लेख में वर्णित सरकारी एजेंसियों की उदासीनता और बुनियादी ढांचे की कमी का शिकार हो रही युवा लड़कियों/महिलाओं की दुर्दशा वास्तव में चिंता का विषय है।

सामाजिक अस्थिरता, आर्थिक तंगी, शिक्षा की कमी, कठोर धार्मिक और जाति-आधारित अनुष्ठानों/परंपराओं, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, सूखे की स्थिति और सरकारी एजेंसियों के लापरवाह रवैये के बीच 21 दिसंबर, 2022 को छपे लेख के अनुसार, क्षेत्र में बाल विवाह की संख्या बढ़ रही है। यह भी उल्लेख किया गया है कि अधिकांश बच्चे साल में केवल छह महीने ही स्कूल जाते हैं और शेष अवधि के लिए वे अपनी आजीविका के लिए गन्ने के खेतों में काम करते रहते हैं।

लेख में दावा किया गया है कि आंकड़ों के अनुसार, कोविड महामारी के बाद बाल विवाह के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है। इससे यह आवश्‍यक हो जाता है कि सरकारी एजेंसियों की ओर से डेयरी फार्मिंग, पोल्ट्री, फैशन डिजाइनिंग, कृषि-व्यवसाय और अन्य यांत्रिक प्रशिक्षण जैसे कौशल-आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए तत्काल कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है, ताकि समाज से बाल विवाह जैसी कुरीति को जड़ से खत्म किया जा सके।

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