एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति मिश्रा ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयार्क में सीओएसपी16 में कहा कि यूएनसीआरपीडी को उचित अवसर की अवधारणा को ठीक से परिभाषित करने की आवश्यकता है क्योंकि यह दिव्‍यांगजनों के अधिकारों को समझने में मदद करने की...



एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति मिश्रा ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयार्क में सीओएसपी16 में कहा कि यूएनसीआरपीडी को उचित अवसर की अवधारणा को ठीक से परिभाषित करने की आवश्यकता है क्योंकि यह दिव्‍यांगजनों के अधिकारों को समझने में मदद करने की प्रकृति के लिए प्रतिबंधात्मक है।

नई दिल्ली, 16 जून, 2023

न्‍यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा, अध्यक्ष, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत ने कहा है कि दिव्‍यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (सीआरपीडी) उचित अवसर की अवधारणा प्रदान करता है। हालाँकि, इसे ठीक से परिभाषित करने की आवश्यकता है क्योंकि यह आनुपातिक अवसर में परिणत हो रहा है, जो प्रकृति में प्रतिबंधात्मक है। किसी प्रकार की निःशक्तता को आधार बताकर रोजगार के अवसरों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए; आवश्यकता-आधारित वितरणात्मक न्याय सुनिश्चित करने के लिए पूर्ण अवसर प्रदान किये जाने चाहिए।

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न्‍यायमूर्ति मिश्रा, एनएचआरसी के सदस्य श्री राजीव जैन के साथ, दिव्‍यांगजनों के अधिकारों पर सम्मेलन (सीओएसपी16) के राज्य दलों के सम्मेलन के 16वें सत्र के हिस्से के रूप में सीआरपीडी के कार्यान्वयन पर तीसरे गोलमेज सम्मेलन में सहभागिता दे रहे थे, जिसका आयोजन संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयार्क, यूएसए में 13 से 15 जून, 2023 तक किया गया।

एनएचआरसी के अध्यक्ष ने कहा कि गोद लेने में भेदभाव समाप्त होना चाहिए। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्थिरता को परिभाषित करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि इसके दुरुपयोग से बचने के लिए सर्जरी के लिए अभिभावकों आदि की सहमति लेने की परिस्थितियों के साथ-साथ गंभीर दिव्‍यांगता की अवधारणा को ठीक से परिभाषित किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने दिव्‍यांगजनों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए भारत में कानूनी प्रावधानों तक पहुंच के मानकों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि भारत के दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में परिभाषित किया गया है। अब चुनौती इसके बारे में जागरूकता का प्रचार-प्रसार करने की है। दिव्‍यांगों के लिए विशेष रूप से सक्षम शब्‍द का प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें गरिमा प्रदान की जा सके और उनकी मानसिकता में सुधार किया जा सके। प्राथमिक से माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए सांकेतिक भाषा, श्रव्य-दृश्य माध्यम, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में शिक्षा और अन्य सामग्री तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

उन्होंने यह भी कहा कि दृश्य, भाषण और श्रवण, बौद्धिकता, बहु-दिव्‍यांगता, चलने-फिरने की अक्षमता, पुनर्वास और प्रशिक्षण, मानसिक स्वास्थ्य और मंदता के लिए अलग-अलग राष्ट्रीय स्तर के संस्थान स्थापित किए गए हैं। वे संस्‍थान विशिष्ट स्नातकोत्तर डिग्री पाठ्यक्रम और डिप्लोमा प्रदान कर रहे हैं, व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं, नैदानिक ​​सेवाएं दे रहे हैं, इनडोर अस्पताल चला रहे हैं और ओपीडी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। क्षेत्रीय केंद्र कार्यरत हैं।

दिव्‍यांगजनों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एनएचआरसी, भारत की हाल की कुछ पहलों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने खिलौनों, पटाखों और रसायनों द्वारा बच्चों की दृष्टि दोष की रोकथाम के संबंध में आयोग द्वारा जारी की गई परामर्शी की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय कार्य योजना 2022 के मसौदे में, आयोग ने बहुप्रतीक्षित लैंगिक न्याय की ओर बढ़ने के लिए महिलाओं के लिए विशेष बरताव की सिफारिश की है।

सुगम्य भारत अभियान डिजिटल मदद साक्षरता के लिए प्रचलन में है। इसके अलावा, दिव्‍यांगजनों के कौशल के विकास के लिए राष्ट्रीय कौशल विकास निगम और क्षेत्रीय केंद्र स्थापित किए गए हैं। जेलों, भिखारियों के घरों और मानसिक अस्पतालों सहित पहुंच के लिए भवनों की लेखापरीक्षा सुनिश्चित करने के अलावा अधिनियम के सक्षम प्रावधानों के अनुसरण में उन्हें व्यापक बनाने के लिए बुनियादी ढांचे की जरूरतों पर ध्यान दिया जा रहा है।

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