एनएचआरसी, भारत द्वारा हिदायतुल्ला राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, रायपुर के संयुक्त तत्वाधान में डिजिटल युग में मानव दुर्व्यापार से निपटने विषय पर केंद्रित एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजन
प्रेस विज्ञप्ति
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
रायपुर: 10 फरवरी, 2025
एनएचआरसी, भारत द्वारा हिदायतुल्ला राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, रायपुर के संयुक्त तत्वाधान में डिजिटल युग में मानव दुर्व्यापार से निपटने विषय पर केंद्रित एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजन
इस दौरान उद्घाटन भाषण में, एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री वी रामासुब्रमण्यन ने लोगों में डिजिटल स्पेस से जुड़ने के दौरान होने वाले नुकसानों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके
उन्होंने डिजिटल स्पेस के दुरुपयोग को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए नियामक और संस्थागत ढांचे के साथ-साथ तकनीकी समाधानों को मजबूत करने पर प्रकाश डाला
सम्मेलन में विभिन्न सुझावों के बीच, आईटीपी अधिनियम में संशोधन करने पर जोर दिया गया ताकि बच्चों और वयस्कों के दुर्व्यापार के बीच स्पष्ट अंतर प्रदान किया जा सके और साइबर दुर्व्यापार को इसके दायरे में शामिल करने के लिए विशिष्ट प्रावधान किए जा सकें
आईटीपीए और आईटी अधिनियम के बीच औपचारिक संबंध ने मौजूदा कानूनी अंतराल को पाटने और डिजिटल क्षेत्र में दुर्व्यापार को संबोधित करने पर भी जोर दिया
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री वी रामासुब्रमण्यन ने 7 फरवरी, 2025 को ‘डिजिटल युग में मानव दुर्व्यापार से निपटने’ पर केंद्रित एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। यह सम्मेलन आयोग द्वारा रायपुर, छत्तीसगढ़ में हिदायतुल्ला राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में से आयोजित किया गया था। मानव दुर्व्यापार के लिए डिजिटल तकनीकों का तेजी से दोहन किया जा रहा है, इस सम्मेलन में मानव दुर्व्यापार अपराधों को बढ़ावा देने में इंटरनेट, सोशल मीडिया, क्रिप्टोकरेंसी और विभिन्न ऑनलाइन टूल की भूमिका और उन्हें रोकने में तकनीक, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और समुदाय की भूमिका की जांच की गई।
साइबर-सक्षम दुर्व्यापार के बढ़ते खतरे पर विचार-विमर्श करने के लिए एकत्रित हुए विशेषज्ञों, कानून प्रवर्तन अधिकारियों, शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं को वर्चुअली संबोधित करते हुए, न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यन ने यौन शोषण, श्रम शोषण, अंग दुर्व्यापार और जबरन विवाह जैसे डिजिटल दुर्व्यापार के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला। उन्होंने "एक्टिव रिक्रूटमेंट" जिसे हुक फिशिंग के रूप में जाना जाता है, और "पैसिव रिक्रूटमेंट" जिसे नेट फिशिंग के रूप में जाना जाता है, पर भी बात की, जिसमें भोले-भाले लोगों को प्रलोभित करने के लिए डिजिटल तकनीक का उपयोग किया जाता है।
एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष ने डिजिटल स्पेस के दुरुपयोग को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए नियामक और संस्थागत ढांचे के साथ-साथ तकनीकी समाधानों को मजबूत करने के अलावा, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल स्पेस से जुड़ने के दौरान होने वाले नुकसानों के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता पर बल दिया।
सम्मेलन को दो विषयगत सत्रों में विभाजित किया गया था। पहला सत्र मानव दुर्व्यापार और प्रवासी दुर्व्यापार को सुविधाजनक बनाने में इंटरनेट की भूमिका: एक विधिक, प्रशासनिक और नियामक परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित था। इसकी अध्यक्षता श्रीमती भामती बालासुब्रमण्यम, आईएएस (सेवानिवृत्त) ने की, तथा सह-अध्यक्षता डॉ. संजीव शुक्ला, पुलिस महानिरीक्षक, बिलासपुर द्वारा की गयी। अन्य संसाधन व्यक्तियों में डॉ. के. वी. के. संथी, विधि के प्रोफेसर, नालसार हैदराबाद; श्री कीर्तन राठौर, अतिरिक्त एसपी, रायपुर; और श्रीमती प्रतिभा तिवारी, अपर एसपी, महासमुंद शामिल थे।
इस सत्र में मानव दुर्व्यापार में योगदान देने वाले विभिन्न कारकों पर व्यापक चर्चा की गई, जिसमें इसके लैंगिक आयामों और ऐसे अपराधों को सुविधाजनक बनाने में डिजिटल गुमनामी की बढ़ती भूमिका पर विशेष जोर दिया गया। चर्चा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रवासी दुर्व्यापार के मुद्दों, विशेष रूप से भर्ती रणनीतियों, समन्वय नेटवर्क और पीड़ितों की दुर्व्यापार की जांच करने पर केंद्रित था।
विशेषज्ञों ने छत्तीसगढ़ में दुर्व्यापार के मामलों पर प्रकाश डाला, गैर-रिपोर्टिंग की लगातार समस्या पर बात की और इन चुनौतियों से निपटने में मानव दुर्व्यापा रविरोधी इकाइयों (AHTU) द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। सत्र में दुर्व्यापार से निपटने के लिए मौजूद नियामक तंत्रों की भी खोज की गई, जिसमें क्षमता निर्माण की आवश्यकता और डिजिटल युग के अनुरूप एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के विकास पर जोर दिया गया। इसके अतिरिक्त, वक्ताओं ने दुर्व्यापार के मामलों, विशेष रूप से सोशल मीडिया और गुमशुदा बच्चों से जुड़े मामलों को ट्रैक करने और रोकने में इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल फोरेंसिक की भूमिका पर प्रकाश डाला।
दूसरा सत्र "मानव दुर्व्यापार के खिलाफ निवारक रणनीति: प्रौद्योगिकी की भूमिका, कानून प्रवर्तन एजेंसियां, पीड़ित सहायता और सामुदायिक सहभागिता" विषय पर केंद्रित था। इसकी अध्यक्षता छत्तीसगढ़ मानव अधिकार आयोग के संयुक्त निदेशक डॉ मनीष मिश्रा और सह-अध्यक्षता बाल कल्याण समिति (रायपुर) के सदस्य डॉ पुरुषोत्तम चंद्राकर ने की। पैनलिस्टों में इम्पैक्ट एंड डायलॉग फाउंडेशन (कोलकाता) की संस्थापक और निदेशक सुश्री पल्लबी घोष, सुश्री चेतना देसाई, यूनिसेफ, छत्तीसगढ़ के बाल संरक्षण अधिकारी श्री रितेश कुमार और एचएनएलयू में विधि के प्रोफेसर (डॉ) विष्णु कोनूरायर भी शामिल थे।
श्री जोगिंदर सिंह, रजिस्ट्रार (विधि), एनएचआरसी, भारत ने अपने समापन भाषण में कहा कि मानव दुर्व्यापार से निपटना एक वैश्विक प्रयास है जिसके लिए सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, प्रौद्योगिकी कंपनियों और व्यक्तियों के बीच सहयोग की आवश्यकता है।
सम्मेलन में मानव दुर्व्यापार की बढ़ती चुनौती से निपटने के लिए कई प्रमुख सुझाव सामने रखे गए, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
• बाल और वयस्क दुर्व्यापार के बीच स्पष्ट अंतर करने के लिए अनैतिक दुर्व्यापार (रोकथाम) अधिनियम (आईटीपीए) में संशोधन करना, इसके दायरे में साइबर दुर्व्यापार को शामिल करने के लिए विशिष्ट प्रावधान करना;
• मौजूदा कानूनी अंतराल को पाटने और डिजिटल क्षेत्र में दुर्व्यापार का समाधान करने के लिए आईटीपीए और आईटी अधिनियम के बीच औपचारिक संबंध की आवश्यकता;
• महिलाओं और बच्चों की केंद्रीकृत शिकायत और रोकथाम (सीसीपीडब्ल्यूसी) जैसे स्व-रिपोर्टिंग पोर्टलों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, जो दुर्व्यापार के मामलों की रिपोर्टिंग में सार्वजनिक भागीदारी के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में काम कर सकते हैं;
• डिजिटल युग में दुर्व्यापार से निपटने के लिए मानव दुर्व्यापार विरोधी इकाइयों (एएचटीयू) को व्यवस्थित और प्रशिक्षित करना;
• नीतियों और हस्तक्षेपों को बेहतर ढंग से सूचित करने के लिए विभिन्न श्रेणियों में मानव दुर्व्यापार पर प्रामाणिक डेटा को व्यवस्थित रूप से एकत्र करने की आवश्यकता;
• स्थानीय समुदायों को ऐसे अपराधों को रोकने और रिपोर्ट करने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करके सभी प्रकार की दुर्व्यापार से निपटने में एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में सामुदायिक जुड़ाव की आवश्यकता;
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