एनएचआरसी, भारत द्वारा ‘मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल : कक्षा से कार्यस्थल तक तनाव को नियंत्रित करना’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन विभिन्न सुझावों के साथ संपन्न हुआ



प्रेस विज्ञप्ति

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

नई दिल्ली: 13 दिसम्ब र, 2024

एनएचआरसी, भारत द्वारा ‘एनएचआरसी, भारत द्वारा ‘मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल : कक्षा से कार्यस्थल तक तनाव को नियंत्रित करना’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन विभिन्न सुझावों के साथ संपन्न हुआ

एनएचआरसी की कार्यवाहक अध्यक्ष, श्रीमती विजया भारती सयानी ने एक ऐसी दुनिया बनाने का आह्वान किया, जहां मानसिक स्वास्थ्य काम करने के बाद विचार करने का विषय नहीं है, बल्कि हम कैसे रहते हैं, काम करते हैं और कैसे फलते-फूलते हैं, इसका एक बुनियादी पहलू है।

सम्मेलन में कक्षाओं से लेकर कार्यस्थलों तक तनाव के कारणों की पहचान करने, जीवन और कार्य नैतिकता को सुव्यवस्थित करने और समाज में अधिक सार्थक योगदान देने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण का आह्वान किया गया

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने मानव अधिकार दिवस के अवसर पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में 'मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल: कक्षा से कार्यस्थल तक तनाव को नियंत्रित करना' विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन के द्वारा मानसिक स्वास्थ्य, तनाव और स्वास्थ्य देखभाल के बीच संबंधों पर चर्चा करने के लिए विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और हितधारकों को एक साथ लाने का अवसर मिला।

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उद्घाटन सत्र में मुख्य भाषण देते हुए, एनएचआरसी, भारत की कार्यवाहक अध्यक्ष, श्रीमती विजया भारती सयानी ने एक ऐसी दुनिया बनाने का आह्वान किया, जहां मानसिक स्वास्थ्य काम करने के बाद विचार करने का विषय नहीं है, बल्कि हम कैसे रहते हैं, काम करते हैं और कैसे बढ़ते हैं, इसका एक बुनियादी पहलू है। शिक्षकों और प्रशासकों को भी संकट के संकेतों/लक्षणों को पहचानने और छात्रों को समय पर सहायता प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। जबकि डिजिटल उपकरणों ने शिक्षा में क्रांति ला दी है, वे सोशल मीडिया के माध्यलम से ध्यान भटकाने, साइबर-अपराध तथा सूचना के अत्यधिक प्रसार जैसी चुनौतियाँ भी लाते हैं। हमेशा ऑनलाइन रहने वाली संस्कृति अक्सर चिंतन या मानसिक आराम के लिए बहुत कम जगह छोड़ती है, जिससे तनाव और बढ़ जाता है।

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कार्यस्थल पर तनाव का जिक्र करते हुए, एनएचआरसी, भारत के कार्यवाहक अध्यक्ष ने कहा कि संगठनों को स्वा्स्य्गर देखभाल कार्यक्रमों से आगे बढ़ाना चाहिए और सहानुभूति और देखभाल की वास्तविक संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि काम का दबाव करियर की शुरुआत में कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पेशेवर पदानुक्रम के सभी स्तरों पर है। परिवारों और समुदायों की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता। पारिवारिक रिश्ते मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल की आधारशिला हैं। यह स्वीकार करके कि मानसिक स्वास्थ्य एक साझा जिम्मेदारी है, हम सामूहिक रूप से एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जो कल्याजण को उतना ही महत्व दे, जितना उपलब्धि को। उन्होंने शांति प्राप्त करने में मानसिक अनुशासन और आत्म-जागरूकता के सिद्धांतों की प्रासंगिकता के बारे में भारतीय ग्रंथों के महत्व को भी रेखांकित किया।

नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी. के. पॉल ने कहा कि मानसिक तनाव और सेहत को गहराई से समझने की जरूरत है। हमारे समाज के विभिन्न वर्गों को प्रभावित करने वाली इस गंभीर समस्या का समाधान खोजने के लिए विभिन्न हितधारकों के बीच बातचीत महत्वपूर्ण है।

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इससे पहले, एनएचआरसी, भारत के महासचिव, श्री भरत लाल ने कहा कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियाँ गंभीर हैं। सिर्फ 2022 में 1.7 लाख से अधिक आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, जिनमें से 41 प्रतिशत पीड़ितों की उम्र 30 वर्ष से कम थी। यह डेटा संकट से निपटने के लिए प्रणालीगत परिवर्तन और बहु-क्षेत्रीय सहयोग की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। भारत में 15 से 24 वर्ष की आयु के लोगों में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है, जो युवा आत्महत्या में अंतरराष्ट्रीय रुझानों के अनुरूप है। भारत में दर्ज आत्महत्याओं में से 35 प्रतिशत इसी आयु वर्ग में होती हैं।

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श्री लाल ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य का प्रतिकूल प्रभाव युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों पर पड़ रहा है। देश में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार के लिए एनएचआरसी के सक्रिय उपायों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने इसकी विभिन्न सांद्रता और इस संबंध में कार्रवाई के लिए आयोग द्वारा जारी परामर्शी में सात प्रमुख क्षेत्रों का भी उल्लेख किया।

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इससे पहले, एनएचआरसी, भारत के संयुक्त सचिव, श्री देवेन्द्र कुमार निम ने राष्ट्रीय सम्मेलन का विवरण दिया। उन्होंने कहा कि तीन सत्र: 'बच्चों और किशोरों में तनाव,' 'उच्च शिक्षा संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां' और 'कार्यस्थल पर तनाव और बर्न आउट’ होंगे। इसका उद्देश्य जीवन के विभिन्न चरणों में तनाव के मनोवैज्ञानिक प्रभावों का पता लगाना, शिक्षा से लेकर रोजगार तक विभिन्न क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल को बढ़ावा देने के लिए सिफारिशें प्रस्तावित करना है।

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'बच्चों और किशोरों में तनाव' विषय पर पहले सत्र की अध्यक्षता करते हुए, नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी. के. पॉल ने कहा कि स्वास्थ्य एक मानव अधिकार है, और विस्तार से इसमें मानसिक स्वास्थ्य भी शामिल है। उन्होंने कहा कि आज बच्चों और किशोरों को विनाशकारी मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने 4 लाख छात्रों के बीच एनसीईआरटी के सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि उनमें से 81 प्रतिशत परीक्षा को लेकर चिंता से प्रभावित थे। उनमें से 43 प्रतिशत को प्रौद्योगिकी-संचालित संचार उपकरणों और मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग की आदत के कारण मूड स्विंग की समस्या थी, और 60 प्रतिशत कार्यस्थल पेशेवरों ने अत्यधिक या उच्च तनाव महसूस किया। समस्या का आकार बहुत बड़ा है, जिसके लिए सामाजिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है। बदमाशी, रैगिंग, नशीली दवाओं के उपयोग, अधिकारियों के व्यवहार आदि के कारण परेशानी पैदा करने वाले मुद्दों को इंगित करने के लिए एक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली बनाने के तरीके ढूंढना आवश्यक है।

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सत्र की सह-अध्यक्षता एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश सागर ने की। विशेषज्ञ वक्ताओं में श्री राहुल सिंह, अध्यक्ष, सीबीएसई, श्री सुबोध कुमार सिंह, पूर्व महानिदेशक – एनटीए, डॉ. गीता मल्होत्रा, कंट्री डायरेक्टर, रीड इंडिया, डॉ. नंद कुमार, मनोरोग विभाग के प्रोफेसर, एम्स, नई दिल्ली, डॉ. चारू शर्मा, प्राचार्य, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विद्यालय, प्रेसिडेंट्स स्टेट, नई दिल्ली, सुश्री विजयलक्ष्मी अरोड़ा, बाल संरक्षण विशेषज्ञ, यूनिसेफ और श्री आनंद राव पाटिल, अपर सचिव, पीएमपीवाई और डिजिटल शिक्षा शामिल थे।

'उच्च शिक्षा संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियां' विषय पर दूसरे सत्र की अध्यक्षता संघ लोक सेवा आयोग की अध्यक्ष श्रीमती प्रीति सूदन और सह-अध्यक्षता विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर अभय करंदीकर ने की। वक्ताओं ने राज्य के चल रहे प्रयासों को मान्यता देते हुए बेहतर परामर्श सेवाओं, मानसिक स्वास्थ्य पाठ्यक्रम, जागरूकता अभियान और अन्य समान कदमों की आवश्यकता पर जोर दिया जो युवाओं के समग्र मानसिक स्वांस्य्गर देखभाल को बढ़ावा देने में मदद करेंगे। वक्ताओं में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के अध्यक्ष डॉ. बी.एन. गंगाधर, डॉ. एम. सी. मिश्रा, एमेरिटस प्रोफेसर, पूर्व निदेशक, एम्स, डॉ. रणदीप गुलेरिया, चेयरमैन, इंटरनल मेडिसिन, मेदांता, गुरुग्राम, प्रोफेसर मनिन्द्र अग्रवाल, निदेशक, आईआईटी कानपुर और डॉ. मीत घोनिया, राष्ट्रीय सचिव, फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन शामिल थे।

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'कार्यस्थलों पर तनाव और बर्न आउट' पर तीसरे सत्र की अध्यक्षता नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष श्री राजीव कुमार ने की और सह-अध्यक्षता इन्वेस्ट इंडिया के पूर्व सीईओ और एमडी श्री दीपक बागला ने की। वक्ताओं ने विशेष रूप से युवा कर्मचारियों के बीच कार्य-जीवन संतुलन पर जोर दिया। उन्होंने तनाव प्रबंधन नीतियों के व्यावहारिक कार्यान्वयन की आवश्यकता को रेखांकित किया, नेताओं से उन रणनीतियों को सक्रिय रूप से लागू करने का आग्रह किया जो तनाव को कम करती हैं और मानसिक स्वास्थ्य का समर्थन करती हैं। वक्ताओं में श्री मनोज यादव, महानिदेशक, रेलवे सुरक्षा बल; पूर्व महानिदेशक, एनएचआरसी, डॉ. आर.के. धमीजा, निदेशक, इहबास, दिल्ली, सुश्री गोपिका पंत, प्रमुख, इंडियन लॉ पार्टनर्स, नई दिल्ली, श्री मुकेश बुटानी, संस्थापक और मैनेजिंग पार्टनर, बीएमआर लीगल एडवोकेट्स और श्री डी. पी. नांबियार, वीपी - एचआर, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज शामिल थे।

आयोग देश में लोगों की मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल में सुधार के लिए सरकार को अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने के लिए विभिन्न सुझावों पर विचार-विमर्श करेगा।

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