एनएचआरसी, भारत ने 'भारत में आदिवासी शिक्षा: समस्याएं, नीतियां और परिप्रेक्ष्य' पर एक ओपन हाउस चर्चा का आयोजन किया।



प्रेस विज्ञप्ति

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

नई दिल्ली: 30 अगस्त, 2024

एनएचआरसी, भारत ने 'भारत में आदिवासी शिक्षा: समस्याएं, नीतियां और परिप्रेक्ष्य' पर एक ओपन हाउस चर्चा का आयोजन किया।

कार्यवाहक अध्यक्ष, श्रीमती विजया भारती सयानी ने एक सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील शिक्षा प्रणाली का आह्वान किया जो आदिवासी समुदायों की विविध विरासत को एकीकृत और सम्मानित करती हो।

चर्चा में अनुभवजन्य डेटा की तत्काल आवश्यकता, इन समुदायों के सामने आने वाली विशिष्ट शैक्षिक चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने और उनका समाधान करने के लिए विश्वविद्यालयों में आदिवासी-केंद्रित अनुसंधान की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने आज नई दिल्ली में आयोग के परिसर में 'भारत में आदिवासी शिक्षा: समस्याएं, नीतियां और परिप्रेक्ष्य' पर हाइब्रिड मोड में एक ओपन हाउस चर्चा का आयोजन किया। बैठक की अध्यक्षता करते हुए कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती विजया भारती सयानी ने सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील शिक्षा प्रणाली का आह्वान किया जो आदिवासी समुदायों की विविध विरासत को एकीकृत और सम्मानित करती हो। उन्होंने कहा कि शिक्षा आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाने और पर्याप्त प्रगति और विभिन्न सरकारी पहलों के बावजूद भौगोलिक अलगाव, भाषाई अंतर, गरीबी और कम उम्र में विवाह जैसी लगातार बाधाओं को दूर करते हुए सामाजिक प्रगति को आगे बढ़ाने में मदद करेगी।

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श्रीमती विजया भारती सयानी ने कहा कि आयोग सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की वकालत करने, वर्तमान कार्यक्रमों का आकलन करने और आदिवासी शिक्षा में समावेशिता और समान विकास को बढ़ावा देने के लिए कमियों को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने इस उद्देश्य के लिए सरकारी निकायों, गैर सरकारी संगठनों और आदिवासी समूहों के बीच निरंतर सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

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इससे पहले, अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में, एनएचआरसी के महासचिव, श्री भरत लाल ने आदिवासी शिक्षा में अंतराल पर प्रकाश डाला और इन समुदायों में शैक्षिक परिणामों को बढ़ाने और उत्थान के लिए लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में कम साक्षरता दर और उच्च ड्रॉपआउट दर अक्सर विशिष्ट चुनौतियों, जैसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक अपर्याप्त पहुंच, सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक पाठ्यक्रम की कमी, खराब शिक्षक-छात्र अनुपात और अपर्याप्त शैक्षणिक बुनियादी ढांचा से जुड़ी होती हैं।

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श्री लाल ने समान और समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन कमियों को दूर करने के महत्व को रेखांकित किया, ताकि प्रत्येक आदिवासी बच्चे को सफल होने का समान अवसर मिले। उन्होंने शैक्षिक विभाजन को पाटने और आदिवासी छात्रों को इन प्रतिष्ठित संस्थानों में उत्कृष्टता प्राप्त करने में मदद करने के लिए आईआईटी और आईआईएम जैसे उच्च शैक्षणिक संस्थानों में आदिवासी प्रतिनिधित्व, लक्षित छात्रवृत्ति कार्यक्रम, परामर्श और प्रारंभिक पाठ्यक्रमों में सुधार की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

इससे पहले, ओपन हाउस चर्चा का अवलोकन देते हुए, एनएचआरसी के संयुक्त सचिव, श्री देवेन्द्र कुमार निम ने आदिवासी छात्रों के बीच उच्च ड्रॉपआउट दर और घटते सकल नामांकन अनुपात पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कमियों की पहचान करने, मौजूदा नीतियों का विश्लेषण करने और अधिक समावेशी शैक्षिक प्रणाली को आकार देने और भारत में आदिवासी आबादी के लिए एक उज्जवल, न्यायसंगत भविष्य सुनिश्चित करने के लिए विविध दृष्टिकोणों का पता लगाने के लिए लक्षित हस्तक्षेप और व्यापक चर्चा का आह्वान किया।

बैठक में कई प्रमुख एजेंडे में : आदिवासी शिक्षा में अंतराल और चुनौतियों की पहचान करना, मौजूदा नीतियों और कार्यक्रमों का विश्लेषण करना, और परिप्रेक्ष्य और आगे बढ़ने के तरीकों की खोज करना शामिल थे। चर्चाएँ आदिवासी समुदायों के लिए शैक्षिक पहुंच में लगातार आने वाली बाधाओं, जैसे भौगोलिक अलगाव, भाषा अंतर और सामाजिक आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित थीं। सुधार की आवश्यकता वाले क्षेत्रों को इंगित करने के लिए आश्रम विद्यालयों और एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) जैसी मौजूदा पहलों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया गया था।

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चर्चा के दौरान उभरे कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार थे:

• अनुभवजन्य डेटा की तत्काल आवश्यकता है, इन समुदायों के सामने आने वाली विशिष्ट शैक्षिक चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने और उनका समाधान करने के लिए विश्वविद्यालयों में आदिवासी-केंद्रित अनुसंधान की आवश्यकता है;

• एक व्यापक और एकीकृत नीति दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें महिला आदिवासी बच्चों के लिए समर्पित छात्रावास सुविधाओं सहित उचित सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाए;

• नामांकन दरों में सुधार के लिए सामुदायिक भागीदारी और आउटरीच बढ़ाना महत्वपूर्ण है, जबकि पीने के पानी, स्वच्छता और पर्याप्त छात्रावास आवास जैसी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करना, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में, आवश्यक है;

• शिक्षकों को आदिवासी संस्कृतियों और भाषाओं के प्रति संवेदनशील बनाने, बेहतर संचार और समझ की सुविधा प्रदान करने के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आवश्यक हैं;

• आदिवासी छात्रों के लिए समझ को आसान बनाने और समग्र सीखने के अनुभव को बढ़ाने के लिए प्राथमिक स्तर पर स्थानीय भाषाओं को शामिल करना महत्वपूर्ण है।

प्रतिभागियों में एनएचआरसी के महानिदेशक (अन्वेाषण) श्री अजय भटनागर, रजिस्ट्रार (विधि), श्री जोगिंदर सिंह, श्रीमती अर्चना शर्मा अवस्थी, संयुक्त सचिव, स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय; श्री सुनील कुमार बरनवाल, अपर सचिव, उच्च शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय; श्री सूरत सिंह, निदेशक, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग; श्री अजीत कुमार श्रीवास्तव, आयुक्त, नेशनल एजुकेशन सोसाइटी फॉर ट्राइबल स्टूडेंट्स; श्री कृपानंद झा, सचिव, अनुसूचित जनजाति विभाग, झारखंड; श्री विजेसिंग वासवे, संयुक्त सचिव, आदिवासी विकास विभाग, महाराष्ट्र; श्री योगेश टी. केएएस, निदेशक, अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग; श्री नरेंद्र कुमार दुग्गा, आयुक्त, आदिम जाति एवं अनुसूचित जाति विकास विभाग, छत्तीसगढ़; प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल, कुलपति, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, कोनी, बिलासपुर; प्रो. (डॉ.) मधुकरभाई एस. पाडवी, कुलपति, बिरसा मुंडा आदिवासी विश्वविद्यालय, गुजरात; प्रो. टी.वी. कट्टीमनी, कुलपति, आंध्र प्रदेश केंद्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय; प्रो. रवीन्द्र रमेश पाटिल, प्रोफेसर, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली; डॉ. गौरी शंकर महापात्र, एसोसिएट प्रोफेसर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय, अमरकंटक; डॉ. सत्यकाम जोशी, कार्यवाहक निदेशक और प्रोफेसर, वीर नर्मदा दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय; श्री अपूर्व ओझा, निदेशक, आगा खान ग्रामीण सहायता कार्यक्रम, भारत; श्री महेश शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता, संस्थापक शिवगंगा झाबुआ आदि शामिल हुए।

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