केंद्रीय विद्युत मंत्री श्री. आर. के. सिंह ने एनएचआरसी –आईजीऍनसीए संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा- मानवाधिकारों का सम्मान करना भारतीयों के डीएनए में है: एनएचआरसी अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने कहा कि जब इंसानों में कोई अंतर नहीं है,



केंद्रीय विद्युत मंत्री श्री. आर. के. सिंह ने एनएचआरसी –आईजीऍनसीए संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा- मानवाधिकारों का सम्मान करना भारतीयों के डीएनए में है: एनएचआरसी अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने कहा कि जब इंसानों में कोई अंतर नहीं है, तो धर्म के नाम पर क्यों भेदभाव किया जाना चाहिए?

नई दिल्ली, 30 जून, 2022

केंद्रीय विद्युत, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री श्री आर. के. सिंह ने कहा है कि मानव अधिकारों का सम्मान करना प्राचीन काल से भारतीय जीवन शैली में निहित रहा है, और बहुत पहले इन्हें पश्चिम सभ्यता द्वारा परिभाषित किया गया था। उन्होंने कहा कि भारतीय लोग अलग हैं क्योंकि उन्होंने स्वयं को हमेशा अपने जीन में मानवाधिकारों के प्रति सम्मान रखने वाले इंसान के रूप में प्रस्तुत किया है। फिर भी, लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए, मनुष्यों के खिलाफ जघन्य अपराधों में लिप्त लोगों से निपटने के लिए, कभी-कभी सख्त कानूनों की भी आवश्यकता पड़ जाती है, जैसे गैरकानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम।

श्री सिंह ने आज 30 जून, 2022 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, आईजीऍनसीए द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय 'भारतीय संस्कृति और दर्शन में मानवाधिकारों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी' के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया

उन्होंने कहा कि महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करना भारतीय समाज की बहुत पुरानी परंपरा रही है, जब से पश्चिमी सभ्यता ने इन्हें साठ के दशक में महसूस किया था। हम एक ऐसी संस्कृति से आते हैं जहां एक आम आदमी राजा से सवाल कर सकता है। भारतीय इतिहास और संस्कृति बहुत विशाल है, और भारतीय दृष्टिकोण से इसका और अधिक अध्ययन करने की आवश्यकता है। इनका अध्ययन और शोध पश्चिमी शिक्षाविदों द्वारा भारतीय इतिहास की अपने परिप्रेक्ष्य से व्याख्या करते हुए किया गया है। यह एक ऐसा पहलू है जिसके लिए उपचार की आवश्यकता है और इस तरह के एक महत्वपूर्ण सम्मेलन के शोध पत्रों को एक पुस्तक में संकलित करना उपयोगी होगा।

श्री सिंह ने कहा कि सिद्धांतों के साथ जीवन जीने के मूल्य भारतीयों के स्वभाव में हैं, जो उन्हें सिखाया नहीं जाता है। तथापि, हमारे पास अधिकारों की रक्षा के लिए सक्षम कानून भी हैं। उन्होंने कहा कि यह हमारा देश है जिसने सभी के लिए घर, पाइप से पानी का कनेक्शन, बिजली, गैस कनेक्शन सुनिश्चित करके मानवाधिकार की अवधारणा का विस्तार किया है; गरीबी रेखा से नीचे के प्रत्येक परिवार को 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर और 80 करोड़ लोगों को मुफ्त भोजन सुनिश्चित करने वाले भोजन का अधिकार: यही हमारे मानवाधिकारों की अवधारणा है और कोई भी हमें धर्म सम्बन्धी शिक्षा न दें। भारत के पास नालंदा के पुस्तकालय में किताबों का खजाना था जो देश के साक्षरता स्तर को दर्शाता था।

उन्होंने 'स्ट्रीट स्टूडेंट' के लिए श्री संदीप अकुला को ₹2 लाख, 'कर्फ्यू' के लिए श्री रोमी मैतेई को ₹1.5 लाख और 'मुंघ्यार' के लिए श्री नीलेश अंबेडकर को ₹1 लाख के एनएचआरसी लघु फिल्म पुरस्कार के साथ प्रमाण पत्र और ट्रॉफी भी प्रदान कीं।

इससे पहले, सभा को संबोधित करते हुए, एनएचआरसी, अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने कहा कि भारत ने दुनिया को एक नया दर्शन दिया है। उन्होंने कहा कि भारत में धर्म को जीवन जीने के एक तरीके के रूप में मान्यता दी गई है, न कि धर्म की संकीर्ण समझ के रूप में। इसलिए, आचरण, जीवन के एक निर्धारित सिद्धांत के रूप में, मानवाधिकारों के सम्मान के लिए एक मजबूत स्तंभ बन गया है।

उन्होंने कहा कि अब जिस वैश्विक गांव की बात की जा रही है, वह बहुत प्राचीन दर्शन है जो वसुधैव कुटुम्बकम के लोकाचार में परिलक्षित होता है। विभिन्न धर्मों के अनेक धर्मग्रंथों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में कभी भी किसी धार्मिक आस्था या विचारधारा का एकाधिकार नहीं रहा क्योंकि सभी मान्यताओं को स्वीकार किया गया, और यही कारण है कि धर्मांतरण की अवधारणा को कभी भी स्वीकृति नहीं मिली, क्योंकि इसकी आवश्यकता कभी महसूस नहीं की गई।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि पुरानी भारतीय जीवन शैली और मान्यताओं के अनुरूप, सम्राट अकबर ने सभी धर्मों के लोगों को एक साथ लाने के लिए दीन-ए-इलाही की शुरुआत भी की थी। उन्‍होंने कहा कि यह समझ से परे है कि क्यों और किस कारण से विभिन्न धर्मों को विभाजित करने का प्रयास किया जा रहा है: जब मनुष्य में कोई अंतर नहीं है, तो उन्हें धर्म के नाम पर अलग क्यों जाए। उन्होंने जोर देकर कहा कि दीन-ए-इलाही की अवधारणा को फिर से लागू करने की आवश्यकता है। न्‍यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि भारतीय मानवीय मूल्यों को महत्व देते हैं और सभी का सम्मान करते हैं क्योंकि भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों के लिए समान सम्मान है और किसी को भी इसे हमारी कमजोरी नहीं समझना चाहिए।

श्री राम बहादुर राय, आईजीएनसीए के न्यासी बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा कि यह संस्कृति और दर्शन के मामले में दुनिया में भारत के योगदान पर एक बहुत ही आवश्यक चर्चा करने के लिए एक नई पहल है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और दर्शन कोई बौद्धिक प्रक्रिया नहीं है; दिल की धड़कन की तरह उनमें मानवता अंतर्निहित है।

राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य डॉ. डी. एम. मुले ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव के 75 वर्षों में, वैश्विक सभ्यता में भारत के योगदान को आगे बढ़ाने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हेतु गांधीजी के अहिंसावादी सिद्धांत और इतिहास में बहुत पहले, सम्राट अशोक द्वारा शांति फैलाने के लिए जीत के बाद युद्ध की निंदा करना, ऐसे कार्य हैं जिनके आधार पर मानव अधिकारों के सम्मान की अवधारणा है।

उन्होंने कहा कि विश्व कल्याण में मानव अधिकारों की भारतीय अवधारणा में मानव की भलाई निहित है। यह अपनी प्राचीन परंपराओं, शास्त्रों, कवि संतों और समाज सुधारकों के शब्दों में परिलक्षित होता है, जो जीवन के अथाह मूल्यों का एक संग्रह है जो मानव अधिकारों के सम्मान में जीवन जीने के बुनियादी सिद्धांतों के रूप में व्‍याख्‍या करता है।

इससे पहले, दिन के दौरान, राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा और सदस्य, न्यायमूर्ति श्री एम. एम. कुमार की अध्यक्षता में, इस उद्घाटन सत्र की परिणति से पहले, दो विषयगत सत्रों में, मानव अधिकारों के मूल्यों में अंतर्निहित प्राचीन भारतीय संस्कृति और दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर प्रमुख शिक्षाविदों द्वारा कई विचारोत्‍तेजक हस्‍तक्षेप किए गए क्‍योंकि इन्‍हें आज समझा और परिभाषित किया जा रहा है।

दो दिवसीय संगोष्‍ठी का समापन 1 जुलाई, 2022 को होगा।