पूर्व भूमिका : मानव अधिकार दिवस 2021



पूर्व भूमिका : मानवाधिकार दिवस 2021

नई दिल्ली, 07 दिसंबर, 2021

मानवाधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसे 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया और घोषित किया गया था। यह मानवाधिकारों को संरक्षण और संवर्धन देने के लिए एक वैश्विक मापदंड है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत मानवाधिकार दिवस के उत्सव में दुनिया के विभिन्न हितधारकों के लिए आत्‍मविश्‍लेषण करने और अपने कार्यों और कर्तव्यों के लिए तत्पर रहने का अवसर देखता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे मानवाधिकारों के उल्लंघन का कारण न बनें।

मानवाधिकार दिवस को चिह्नित करने के लिए, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत, 10 दिसंबर, 2021 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। भारत के राष्ट्रपति, श्री रामनाथ कोविंद, एनएचआरसी के अध्‍यक्ष न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा, सदस्यों, जस्टिस श्री एम.एम. कुमार, श्रीमती ज्योतिका कालरा, डॉ. डी.एम. मुले, श्री राजीव जैन, महासचिव, श्री बिम्‍बाधर प्रधान, अन्य वरिष्ठ अधिकारी, सांविधिक आयोग के सदस्य, एसएचआरसी, राजनयिक, नागरिक समाज एवं अन्यों की उपस्‍थिति में मुख्‍य अतिथि के रूप में समारोह को संबोधित करेगें।

यूडीएचआर की अंतर्निहित भावना यह है कि सभी मनुष्य स्वतंत्र पैदा होते हैं और उन्हें जीवन, स्वतंत्रता और व्यक्ति की सुरक्षा, कानून के समक्ष समानता और कानून की समान सुरक्षा और विचार, विवेक, धर्म, राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। मानवाधिकारों के संरक्षण को महत्व देने की यह भावना भारत के संविधान में भी अंतर्निहित है जिससे मानव अ‍धिकार संरक्षण अधिनियम (PHRA), 1993 को भी बल मिलता है।

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत 12 अक्टूबर 1993 को अपनी स्थापना के बाद से, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्‍थानों के वैश्विक गठबंधन (GANHRI) और एशिया पैसिफिक फोरम (APF) सहित विभिन्न विश्व निकायों में संवादों के अनुरूप देश में मानव अधिकारों के लिए योगदान एक अच्छी तरह से सर्वविदित तथ्य है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने हाल के दिनों में COVID महामारी की पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद (UNHRC) के 48वें नियमित सत्र में की गई भावपूर्ण अपील कि पेटेंट धारक के अधिकारों पर जीवन का अधिकार प्रबल होना चाहिए, इसका ऐसा ही एक उदाहरण है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत, राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों (NHRI) के लिए संयुक्त राष्ट्र के पेरिस सिद्धांतों का अनुपालन करता है और मानवाधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के लिए GANHRI के साथ 'ए' ग्रेड मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थान बना हुआ है, तथा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राष्‍ट्रों और उनके राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों की मानवाधिकार स्थिति का आकलन करने के लिए वर्ष 2006 में शुरू हुए चार सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (यूपीआर) का हिस्सा रहा है। आयोग 1994 से राष्‍ट्रीय मानव अधिकार संस्‍थान के एशिया पैसिफिक फोरम (APF) का संस्थापक सदस्य भी है और वर्तमान में इसकी गवर्निंग काउंसिल का सदस्य भी है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत ने नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लगातार प्रयास किया है। आयोग ने सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों में मानवाधिकार-केंद्रित दृष्टिकोण को मुख्यधारा में लाने के साथ-साथ अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सार्वजनिक प्राधिकरणों और नागरिक समाज के बीच मानवाधिकार जागरूकता और संवेदनशीलता पैदा करने के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

यहां तक ​​कि कोविड-19 महामारी के दौरान भी, आयोग ने अपने आपको नागरिक समाज, गैर सरकारी संगठनों, विशेषज्ञों, सांविधिक आयोग के सदस्यों, राज्य मानव अधिकार आयोगों, सरकारी पदाधिकारियों के साथ कोविड-19 दिशानिर्देशों के अनुरूप सेप्टिक टैंक और जोखिमभरे सफाई कार्य में कार्यरत कर्मचारी, बंधुआ मजदूर, पानी और स्वच्छता, कुष्ठ प्रभावित व्यक्ति, निराश्रित विधवाओं के मुद्दे, आपराधिक न्याय सुधार, आदि से संबंधित मुद्दों पर बातचीत में शामिल रखा। कोविड-19 महामारी के दौरान आयोग की 21 परामर्शियां (एक परामर्शी के संशोधित संस्करण के अलावा) विभिन्न हितधारकों के साथ आयोग के व्यापक परामर्श का परिणाम हैं।

आयोग ने महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (सीईडीएडब्ल्यू) के सार के अनुरूप देश में कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करते हुए विभिन्न बैठकें भी आयोजित कीं। इसके अलावा, इस वर्ष के दौरान प्रवासी कामगारों के सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के अधिकार और घरेलू कामगारों की संवेदनशीलता, कानूनी सुरक्षा और काम की स्थिति पर दो महत्वपूर्ण शोध प्रस्तावों को भी मंजूरी दी गई।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग मानवाधिकार शिक्षा और जागरूकता को भी बढ़ावा दे रहा है। आयोग ने पिछले दिसंबर से अब तक की 5 प्रमुख शॉर्ट टर्म ऑनलाइन इंटर्नशिप कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिससे देश भर के विश्वविद्यालय के सैकड़ों छात्र लाभान्वित हुए हैं। इस अवधि के दौरान, आयोग ने राष्ट्रीय सेवा योजना, एनएसएस और नेहरू युवा केंद्र संगठन, एनवाईकेएस के सहयोग से 20 ऑनलाइन मानवाधिकार जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए।

आयोग द्वारा आयोजित नवोदित वकीलों के लिए अखिल भारतीय मूट कोर्ट प्रतियोगिता और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के लिए वार्षिक वाद-विवाद प्रतियोगिता, देश के नागरिकों से जुड़े मानवाधिकार मुद्दों पर जागरूकता पैदा करने के लिए मानवाधिकारों पर लघु फिल्मों प्रतियोगिताएं आदि कुछ प्रमुख गतिविधियां हैं। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने विधि के छात्रों के बीच सार्वजनिक सेवा की भावना को बढ़ावा देकर कानूनी सहायता प्रणाली के माध्यम से दिल्ली में कैदियों के लिए न्याय तक पहुंच में सुधार करने के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की है।

इसके अलावा, मामलों के त्वरित निपटान के लिए रिपोर्ट प्रस्तुत करने में तेजी लाने के लिए विभिन्न राज्य प्राधिकरणों के साथ कई ऑनलाइन सम्‍मेलन आयोजित करना, आयोग के नवीनतम प्रमुख निर्णयों में से एक COVID स्थिति में सुधार के बाद आयोग की 14 दिसम्‍बर 2021 से जन सुनवाई तंत्र को पुन: शुरू करने का निर्णय है ताकि आयोग की पहुंच का विस्‍तार किया जा सके।

1 दिसंबर 2020 से 30 नवंबर 2021 तक, आयोग ने स्वत: संज्ञान के 16 मामलों सहित 1,02,441 मामले दर्ज किए हैं और 96,804 मामलों का निपटारा किया है। 469 मामलों में मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों को राहत के रूप में 15,35,55,840/- रुपये की राशि के भुगतान के लिए सिफारिश की गई है। शिकायतों के दोहराव को कम करने और शिकायतों की स्थिति पर आसानी से नज़र रखने में मदद करने के लिए विभिन्न राज्य मानव अधिकार आयोगों को शामिल करके अपने आउटरीच का विस्तार करने और मामलों के त्वरित निपटान के अपने प्रयास के अनुरूप आयोग ने एचआरसीनेट पोर्टल का और विस्तार किया है।

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