राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग के मानव अधिकार दिवस समारोह में कहा कि मानव गरिमा के पूर्ण सम्मान के लिए गैर-भेदभाव पहली शर्त है।



राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष श्री न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा का कहना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सबसे अधिक पोषित किया जाता है, लेकिन साइबर स्पेस में इसकी सीमा पर इसके दुरुपयोग की आशंका के संदर्भ में बहस करने की आवश्यकता है।


नई दिल्ली, 10 दिसंबर, 2021

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत ने आज 10 दिसंबर, 2021 को मानव अधिकार दिवस मनाने के लिए नई दिल्ली में एक समारोह का आयोजन किया। इसे मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए, भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविंद ने कहा कि जहां गैर-भेदभाव मानव गरिमा के लिए पूर्ण सम्मान की पहली शर्त है, वहीं दुनिया अनगिनत पूर्वाग्रहों से घिरी हुई है।

उन्होंने कहा कि मानव अधिकार दिवस सामूहिक रूप से विचार करने और ऐसे पूर्वाग्रहों को दूर करने के तरीके खोजने का आदर्श अवसर है, जो व्यक्तियों की क्षमता के पूर्ण अहसास में बाधा डालते हैं, और इस प्रकार समग्र रूप से समाज के हित में नहीं हैं।



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भारत के राष्ट्रपति ने कहा कि इस दिन दुनिया को भी 'स्वस्थ पर्यावरण और जलवायु न्याय के अधिकार' पर बहस और चर्चा करनी चाहिए। भारत द्वारा घरेलू स्तर पर और हाल ही में आयोजित वैश्विक जलवायु सम्मेलन में की गई पहलों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि ये ग्रह के स्वास्थ्य को बहाल करने में एक लंबा रास्ता तय करेंगे।

श्री कोविंद ने कहा कि मानव अधिकारों का विमर्श न्यायोचित रूप से अधिकारों पर केंद्रित है, लेकिन भारत में हमने हमेशा यह समझा है, जैसा कि गांधीजी अक्सर दोहराते थे कि अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसके अलावा, व्यक्तियों के अधिकारों को निरपेक्ष नहीं माना जाता है बल्कि उन्हें सामाजिक संदर्भ के साथ जोड़ा जाना चाहिए।



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कोविड -19 महामारी से प्रभावित लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग के काम की सराहना करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि आयोग द्वारा जारी कई परामर्शियों ने प्रतिक्रिया में सुधार करने में मदद की। उन्होंने इतिहास की सबसे भीषण महामारी के दौरान लोगों के जीवन के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा करने में कोरोना योद्धाओं को उनके साहसिक प्रयासों के लिए बधाई दी, तथा उन्होंने कहा कि ये अभी खत्म नहीं हुआ है।

इससे पहले, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा, अध्यक्ष, राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत ने कहा था कि 'राज्य' स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक अवसरों के न्यूनतम मानकों तक पहुंचने के लिए सुविधा प्रदान करने के लिए बाध्य है। सामंजस्यपूर्ण समाज को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के शक्ति, सामग्री, संसाधनों और अवसरों को साझा करना चाहिए। सहिष्णुता और समावेशन गैर-परक्राम्य मानव अधिकार हैं।



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उन्होंने कहा कि अनुचित आर्थिक ढांचे और व्यापार संबंधी मानव अधिकारों के उल्लंघन के पीड़ितों को उपचार मुहैया कराना जरूरी है। इसके अलावा, सभी व्यक्तियों को एक सुरक्षित, स्वच्छ स्वस्थ वातावरण का न्यूनतम अधिकार है। उन्होंने कहा कि हमारी 'राष्ट्रीय जलवायु नीति' को मजबूत करने के लिए पर्यावरण, वन, वनस्पतियों और जीवों को सक्रिय रूप से बचाना हमारा मौलिक कर्तव्य है।

राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे मूल्यवान मूल्य और संरक्षित होने का मौलिक अधिकार है। हालाँकि, ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से साइबर स्पेस की स्वतंत्रता की सीमा बहस का विषय है, क्योंकि इसने इसके दुरुपयोग, देश की संप्रभुता, अखंडता, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता का उल्लंघन करने की गंभीर आशंका को हवा दी है।

कोविड-19 महामारी के दौरान मानवता के लिए भारत के योगदान को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि सस्ती कीमत पर सभी को स्वास्थ्य कवरेज जीवन के अधिकार का एक पहलू है। विश्व समुदाय को यह सुनिश्चित करने के लिए एक त्वरित सामूहिक कार्रवाई करने की आवश्यकता है कि पेटेंट धारक के अधिकारों पर जीवन का अधिकार प्रबल होना चाहिए।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि महामारी से उबरना अधिक समावेशी समाज सुनिश्चित करने का एक अवसर है, जिसमें छोटे विक्रेता भी भूखे न रहें और डिजिटल विभाजन को दूर किया जाए।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि कानून के शासन के लिए त्वरित न्याय की आवश्यकता है। हमें बिना मुकदमे के किसी संदिग्ध को कारावास से बचना चाहिए। फर्जी मुठभेड़ों के लिए कोई जगह नहीं है। सरकार अपने लोगों के प्रति जवाबदेह है। आयोग का कार्य कमियों को पाटना, कमियों को दूर करना और गति प्रदान करके सुशासन में मदद करना है।

भारत में संयुक्त राष्ट्र के स्‍थानीय समन्‍वयक श्री शोम्बी शार्प ने कहा कि भारत मानवाधिकारों का एक मजबूत चैंपियन है, जो मजबूत लोकतांत्रिक संस्थानों सहित कई मायनों में परिलक्षित होता है, जिसे उसने स्थापित किया है। उन्होंने मानवाधिकार दिवस पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस का संदेश भी पढ़ा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने अपने संदेश में कहा कि संयुक्त राष्ट्र "सभी के लिए न्याय, समानता, सम्मान और मानवाधिकारों के लिए काम करना जारी रखेगा।"

धन्यवाद ज्ञापन देते हुए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के महासचिव श्री बिम्बाधर प्रधान ने कहा कि आयोग अपने काम के माध्यम से उन लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करेगा, जिनके साथ मानवाधिकारों के मुद्दों में अन्याय हुआ है। उन्होंने राष्ट्रपति की पुस्तक 'द रिपब्लिकन एथिक' खंड- II से उद्धृत किया, "हम गांधीजी के बच्चे हैं, हम अकेले चलने पर भी पूरी मानवता के लिए सपने देखते हैं। ...", और उनके भाषणों के संग्रह को मानवीय मूल्यों के लिए प्रेरणादायक दर्शन के एक महत्‍वपूर्ण स्रोत के रूप में वर्णित किया।



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इस अवसर पर, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने 03 प्रकाशनों का भी लोकार्पण किया। इनमें हिंदी और अंग्रेजी पत्रिकाएं जिनमें विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न मानवाधिकार मुद्दों पर लेख और 'भारत में महिलाओं के अधिकार' पर प्रकाशित एक रिपोर्ट शामिल थीं।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग सदस्य, न्यायमूर्ति श्री एम. एम. कुमार, श्रीमती ज्योतिका कालरा, डॉ. डी. एम. मुले और श्री राजीव जैन, आयोग के पूर्व अध्यक्ष और सदस्य, राज्य मानव अधिकार आयोगों के अध्यक्ष और सदस्य, वरिष्ठ अधिकारी, राजनयिक, नागरिक समाज के प्रतिनिधि, मीडियाकर्मी सहित अन्य इस अवसर पर उपस्थित थे।

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