राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का मानना है कि मानव अवशेषों को गरिमापूर्ण तरीके से निपटाने की आवश्यकता है; इसके लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर छह सप्ताह के भीतर रिपोर्ट मांगी।



नई दिल्ली: 21 फरवरी, 2023

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत ने मानव अधिकार संरक्षकों के कोर ग्रुप के सदस्य डॉ. जितेंद्र सिंह शंटी द्वारा उठाए गए दाह संस्कार और शवों के साथ अशोभनीय व्‍यवहार तथा 27 वर्षों से अधिक समय से लावारिस लाशों के मुफ्त दाह संस्कार एवं संबंधित सेवाओं के मुद्दों का स्वत: संज्ञान लिया है। आयोग ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को उनके मुख्य सचिवों के माध्यम से नोटिस जारी कर छह सप्ताह के भीतर यह जानना चाहा है वे अपने स्तर पर या प्रशासनिक आदेशों के माध्यम से नीति बनाकर मृतकों की गरिमा किस प्रकार सुनिश्चित करेंगें और निम्नलिखित बिंदुओं पर विभिन्न स्थानीय अधिकारियों को सशक्त बनाकर उसका कड़ाई से कार्यान्वयन करें :

क. शवों के दाह-संस्कार के लिए आवश्यक सामग्री जैसे लकड़ी आदि पूरे भारतवर्ष के सभी श्मशान घाटों में कम से कम गरीब और जरूरतमंद परिवारों के लिए मुफ्त उपलब्ध कराई जाए;

ख. पूरे भारत में सभी गरीब और जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए बिजली के श्मशान घाटों में सीएनजी/इलेक्ट्रिक प्रणाली द्वारा शवों का दाह संस्कार मुफ्त होना चाहिए;

ग. अधिकांश अस्पतालों में मुर्दाघर नहीं हैं जिसके परिणामस्वरूप शवों का अपघटन होता है। यह आवश्यक है कि अस्पताल में ऐसी सुविधाएं उपलब्‍ध कराई जाएं;

घ. सभी सरकारी या निजी अस्पतालों को निर्देश दिया जाए कि शवों को उनके आवास तक मुफ्त पहुंचाने की व्यवस्था की जाए।

ड़. सभी निजी अस्पतालों को आवश्यक आदेश/निर्देश जारी किए जाएं कि उनके परिजनों द्वारा चिकित्सा बिलों का भुगतान न करने या किसी अन्य कारण से, जो भी हो, शवों को बंधक नहीं बनाया जा सकता है। शवों को बंधक बनाने वाले अस्पतालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।

रिपोर्ट में यह भी शामिल होना चाहिए कि क्या राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने लावारिस शवों की स्थिति से निपटने के लिए सूचना का प्रचार-प्रसार, जागरूकता बढ़ाने, संवेदनशीलता बढ़ाने और मानवीय पहलू में शवों से निपटने वाले कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के बारे में कदम उठाए हैं। रिपोर्ट में उन कदमों को भी निर्दिष्ट किया जाना चाहिए जो मृतक के परिवार के सदस्यों द्वारा चिकित्सा बिलों का भुगतान न करने की स्थिति में निजी अस्पतालों को निर्देश जारी करने के संबंध में उठाए गए या उठाए जाने के लिए प्रस्तावित हैं।

आयोग ने कोविड-19 महामारी के दौरान अधिकारियों के लिए "मृतकों के सम्मान के अधिकार" पर आयोग द्वारा जारी परामर्शी को नोटिस के साथ संलग्न किया है।

नोटिस जारी करते हुए आयोग ने कहा है कि यह स्वयंसिद्ध है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा और उचित व्यवहार का अधिकार न केवल जीवित व्यक्ति को बल्कि उसके मृत शरीर को भी उपलब्ध है। सभ्यता, वर्षों से, धर्म, परंपरा और सांस्कृतिक प्रथाओं के साथ मिलकर युद्ध और शांति दोनों समय में शवों को प्रबंधित करने के तरीके को प्रभावित किया है। साथ ही यह भी सच है कि अलग-अलग समुदाय और समाज अपने-अपने धर्म और पारंपरिक प्रथाओं के माध्यम से मृतकों को सम्मान देते हैं और इससे भी अधिक, कानूनी ढांचे के माध्यम से, जिसमें यह सम्मान रेखांकित किया जाता है कि मृत शरीर के लिए सम्मान एवं गरिमा के अंतर्निहित मानवाधिकारों की एक बुनियादी मान्यता है, जो एक व्यक्ति को उसकी मृत्यु से पहले प्राप्त होता है। बड़े पैमाने पर समाजों द्वारा मृत शरीर के साथ अभद्र व्यवहार और लापरवाहपूर्ण अपमान अत्यधिक निंदनीय है और इसलिए, समाज में लोग मृत शरीर को जो सम्‍मान देते हैं, वह समाज के मानवीय दृष्टिकोण को उसके मूल में दिखाई पड़ता है।

आयोग ने आगे कहा है कि वह इस तथ्य से अवगत है कि चौथे जेनेवा कन्वेंशन (अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून) के अनुच्छेद 130 में कहा गया है कि शवों को सम्मानपूर्वक दफनाया/दाह संस्कार, जो कि व्यक्ति की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं, यदि यह सुनिश्चित किया सके, के अनुसार किया जाना चाहिए। 1950 में भारत द्वारा जिनेवा कन्वेंशन की पुष्टि की गई थी, जिससे मृत शरीरों के गरिमापूर्ण उपचार और निपटान से संबंधित स्पष्ट प्रावधान प्रदान करने के लिए इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बना दिया गया था।

यह एक सामान्‍य कानून बन जाता है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा शामिल या संदर्भित अधिकार, किसी व्यक्ति की मृत्यु पर भी, तब तक छूट नहीं दी जा सकती है, जब तक कि शव को गरिमापूर्ण तरीके से निपटाया नहीं जाता है। कोविड-19 के दौरान यह मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण हो गया, जब शवों को छुआ नहीं जा रहा था; यहां तक कि परिवार/रिश्तेदार भी अंतिम संस्कार/दफनाने के लिए तैयार नहीं थे; शवों को बिना दाह संस्कार के नदियों में प्रवाहित कर दिया गया था, तब आयोग ने "मृतकों के सम्मान का अधिकार" पर परामर्शी जारी की थी।

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