राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने मानव अधिकारों पर पर्यावरण प्रदूषण और इसमें गिरावट के प्रभावों को रोकने, कम करने और धीमा करने के लिए केंद्र, राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और उच्च न्यायालयों को परामर्शी जारी की



नई दिल्ली, 18 मई, 2022

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत, न्यायमूर्ति श्री अरुण कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में, मानव अधिकारों पर पर्यावरण प्रदूषण और इसमें गिरावट के प्रभावों को रोकने, कम करने और धीमा करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को एक परामर्शी जारी की है। आयोग ने बुनियादी मानव अधिकारों के उपभोग पर वायु और जल प्रदूषण और पारिस्थितिक क्षरण के प्रभावों की जांच करके डोमेन विशेषज्ञों के परामर्श से परामर्शी को अंतिम रूप दिया है।

परामर्शी जारी करते हुए, आयोग ने पाया है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए दुनिया के सबसे अच्छे वैधानिक और नीतिगत ढांचे में से एक होने के बावजूद, भारत वायु और जल प्रदूषण और पारिस्थितिक क्षरण की एक गंभीर समस्या का सामना कर रहा है जिससे बुनियादी मानव अधिकारों के उपभोग में बाधा उत्पन्न हो रही है।

आयोग ने अपने महासचिव, श्री देवेंद्र कुमार सिंह के माध्यम से एक पत्र के द्वारा संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के सचिवों, राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों और सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार को परामर्शी में जारी की गई सिफारिशों को लागू करने के लिए कहा है और तीन महीने के भीतर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है।

परामर्शी में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई के लिए पांच प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है। इनमें शामिल हैं: प्रदूषण फैलाने वालों और पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वालों को सजा; वाहनों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम और न्यूनीकरण; एक सूचित, पारदर्शी और गैर-पक्षपातपूर्ण तरीके से विभिन्न पर्यावरण कानूनों द्वारा अनिवार्य मंजूरी/अनुमोदन मांगने वाले प्रस्तावों का प्रसंस्करण; पर्यावरण प्रदूषण और इसमें गिरावट को रोकने, कम करने और धीमा करने और स्थानीय निकायों के सुदृढ़ीकरण और क्षमता निर्माण के लिए लागत प्रभावी अभिनव उपायों के विकास, प्रचार, प्रसार और प्रतिकृति के लिए आवश्यक उपाय।

कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें इस प्रकार हैं:

• केंद्र और राज्य सरकारों को प्रदूषण फैलाने वालों और पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करने वालों के लिए प्रभावी और शीघ्र दंड सुनिश्चित करने के प्रयास करने चाहिए। इन प्रयासों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) और अन्य नियामक प्राधिकरणों को मजबूत करना शामिल होना चाहिए;

• प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में अलग जांच और अभियोजन विंग का निर्माण और कर्मचारियों का नियमित प्रशिक्षण;

• प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के लिए यह अनिवार्य करना कि वे अपनी वार्षिक रिपोर्ट में मामलों की जांच के विवरण वाले एक अध्याय को शामिल करें;

• राज्य सरकारों को स्वतंत्र विशेषज्ञ लेखापरीक्षकों द्वारा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की वार्षिक निष्पादन लेखापरीक्षा करनी चाहिए;

• प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से राज्य न्यायिक अकादमियों, राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरणों को पर्यावरण कानूनों के विभिन्न प्रावधानों और सभी हितधारकों के लिए प्रदूषण और पर्यावरण क्षरण के हानिकारक प्रभावों पर कार्यशालाओं, सेमिनारों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए;

• उच्च न्यायालयों को विशेष पर्यावरण न्यायालयों की स्थापना करनी चाहिए और पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करनी चाहिए;

• प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में अलग जांच और अभियोजन विंग का सृजन और कर्मचारियों का नियमित प्रशिक्षण;

• केंद्र और राज्य सरकार को प्रदूषण नियंत्रण (पीयूसी) प्रमाण पत्र जारी करने के लिए सौंपी गई एजेंसियों के प्रदर्शन की निगरानी करनी चाहिए और झूठे, फर्जी या नकली प्रमाण पत्र के मामले में उचित दंडात्मक उपाय करना चाहिए;

• केंद्र को स्थापना/संचालन की सहमति देने के लिए विचार किए गए प्रत्येक पैरामीटर पर अद्यतन स्‍तर वाली भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) आधारित निर्णय समर्थन प्रणाली (डीएसएस) स्थापित करने के लिए चल रही परियोजना को यथाशीघ्र पूरा करने और पर्यावरण / वन / वन्यजीव / तटीय विनियमन क्षेत्र मंजूरी; का प्रयास करना चाहिए।

• पूर्व सहमति/मंजूरी प्राप्त करने वाले आवेदनों के प्रसंस्करण के लिए डीएसएस में पर्यावरण प्रबंधन ज्ञान पर एक खंड होना चाहिए, जिसमें पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट की रोकथाम, न्यूनीकरण और शमन पर सभी उपलब्ध सर्वोत्तम प्रथाओं का विवरण हो;

• पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट की रोकथाम, न्यूनीकरण और शमन पर सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में केंद्र और राज्य सरकारों को प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के माध्यम से जन जागरूकता पैदा करनी चाहिए;

• प्रत्येक स्थानीय निकाय को पर्यावरण प्रदूषण/गिरावट को रोकने, कम करने और न्यूनकरण करने और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए विभिन्न गतिविधियों की योजना, पर्यवेक्षण और निगरानी के लिए एक पर्यावरण प्रकोष्ठ की स्थापना करनी चाहिए;

• राज्य वित्त आयोग स्थानीय निकायों द्वारा निधियों की आवश्यकता का आकलन कर सकते हैं।

(परामर्शी के बारे में अधिक जानकारी हेतु यहां क्लिक करें )

इससे पहले, 23 मार्च, 2022 को पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार पर आयोग की पहली कोर सलाहकार समूह की बैठक की अध्यक्षता करते हुए, एनएचआरसी के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने बिगड़ते पर्यावरण पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि नियमों और कानूनों के बावजूद जमीनी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है।

बैठक का संचालन श्री एच. सी. चौधरी, संयुक्त सचिव, एनएचआरसी ने किया , एनएचआरसी के सदस्यों न्यायमूर्ति श्री एम. एम. कुमार, श्रीमती ज्योतिका कालरा, डॉ. डी. एम. मुले, के साथ-साथ तत्कालीन महासचिव श्री बी. प्रधान, रजिस्ट्रार (विधि), श्री सुरजीत डे, संयुक्त सचिव श्रीमती अनिता सिन्हा, कोर ग्रुप के सदस्य, डॉ. एम. सी. मेहता, श्री आर. आर. शमी, आईएएस (सेवानिवृत्त), श्री निरंजन देव भारद्वाज, सहायक प्रोफेसर, डॉ. प्रमोद कांत आईएफएस (सेवानिवृत्त), प्रोफेसर एन एच रवींद्रनाथ, श्रीमती पेट्रीसिया मुखीम और श्री सुंदरम वर्मा ने भाग लिया।

श्री नीलेश कुमार, संयुक्त सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, डॉ. प्रशांत गर्गव, सदस्य सचिव, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, श्रीमती पद्म एस. राव, मुख्य वैज्ञानिक, सीएसआईआर-नीरी, नागपुर, श्री बी. रथ, तकनीकी विशेषज्ञ, राष्ट्रीय रेनफेड एरिया अथॉरिटी और श्री आर. के. डोगरा, उप निदेशक, आईसीएफआरई ने भी हाइब्रिड मोड में आयोजित बैठक में अपने विचार साझा किए।