श्रम के लिए बाल तस्करी पर राजस्थान से विरोधाभासी रिपोर्टों पर एनएचआरसी गंभीरता से विचार किया; इस संकट को समाप्त करने के लिए की गई कार्रवाई पर सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से रिपोर्ट मांगी गई।
नई दिल्ली, 24 अगस्त, 2021
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत ने राजस्थान में अधिकारियों से एक शिकायत के संबंध में बाल तस्करी के बारे में विरोधाभासी रिपोर्टों पर गंभीरता से विचार किया। आयोग ने पाया है कि देश की आजादी के सात दशकों के बाद भी बच्चों के अधिकारों, उनके बंधुआ मजदूरी और तस्करी से रक्षा के लिए विभिन्न कानूनों और योजनाओं के बावजूद बाल श्रम की मौजूदगी बाल श्रम के खतरे को नियंत्रित करने के लिए राज्य मशीनरी की प्रभावशीलता पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा करती है।
आयोग ने पाया कि 1992 में भारत ने बाल अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की पुष्टि की थी, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से वर्ष 2021 को बाल श्रम उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया जिसके लिए सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से रिपोर्ट मांगना आवश्यक है।
तदनुसार, आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को उनके क्षेत्राधिकार में बाल अधिकार और बाल और किशोर श्रम (संशोधन) अधिनियम, 2016 , विशेष रूप से बाल श्रमिकों की स्थिति के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के प्रावधानों और अनुच्छेदों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा गया है।
सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के श्रम मंत्रालय के सचिव को उन कम्पनियों और उनके प्रबंधन के खिलाफ की गई कानूनी कार्रवाई के बारे में 8 सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है, जो अपने कारखाने के परिसर में बाल श्रमिकों को नियोजित करते हैं/नियोजित किया गया था या बाल अधिकार और बाल और किशोर श्रम (संशोधन) अधिनियम, 2016 के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की विचारधारा और भावना के खिलाफ किसी भी प्रकार की उत्पादन गतिविधियों के लिए उनका उपयोग करते हैं।
तत्काल मामला 22.12.2019 को आयोग में प्राप्त एक शिकायत का उल्लेख करता है जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि राजस्थान के उदयपुर, बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों में 08 से 15 वर्ष के बीच के बच्चों की बड़े पैमाने पर तस्करी चल रही है। उन्हें ₹500 से ₹3000 तक बेचा जाता है। यहां तक कि हर सौदे पर ₹50 दलाली भी ली जाती थी। शिकायतकर्ता ने इस मुद्दे पर 22.12.2019 को एक प्रमुख समाचार-पत्र द्वारा प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर भी अपने आरोपों का समर्थन किया। इन आरोपों के मद्देनजर, आयोग ने राजस्थान के पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर रिपोर्ट मांगी थी। जवाब में पुलिस अधीक्षक (एचआर), सीआईडी (सीबी), जयपुर, राजस्थान ने बताया कि प्रकाशित समाचार पुरानी घटनाओं का था, जिसके संबंध में कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी लड़के और लड़कियां अपने परिवार के साथ मजदूरी करने गए थे। इसमें कहा गया है कि राजस्थान के बच्चों के संबंध में गुजरात से आने के बाद जिले से छूटे/लापता या विकलांग होने का कोई मामला सामने नहीं आया है। अधिकांश बच्चे बाल श्रम के लिए गुजरात जाते रहते हैं और इसे रोकने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में पुलिस थानों और मानव तस्करी विरोधी ईकाइयों द्वारा समय पर कार्रवाई की गई थी।
पुलिस अधीक्षक, डूंगरपुर ने बताया कि डूंगरपुर में मानव तस्करी के लिए कोई संगठित गिरोह सक्रिय नहीं है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए मानव तस्करी रोधी इकाई पहले से ही जिले में काम कर रही है। इसके साथ ही जिले की एक विशेष टीम का भी गठन किया गया था और इसकी रोकथाम के लिए गुजरात राज्य की सीमा से लगे थाना क्षेत्रों में लगातार नाकाबंदी और चेकिंग की जा रही है। आयोग को आगे प्रभारी अधिकारी, मानव तस्करी रोधी इकाई, जिला बांसवाड़ा, राजस्थान से एक पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें यह प्रस्तुत किया गया कि मानव तस्करी रोधी पुलिस ने राजस्थान के बच्चों की गुजरात में तस्करी को रोका और 16 नाबालिग बच्चों को छुड़ाया और उन्हें बाल कल्याण समिति को सौंप दिया।
आयोग ने पाया कि पुलिस रिपोर्ट में स्वयं स्वीकार किया गया है कि ऐसे मामले हैं, जहां राज्यों के भीतर और अंतरराज्यीय दोनों स्थिति में बच्चों की तस्करी विभिन्न कारणों से की गई थी और दलालों द्वारा सुविधा प्रदान की गई थी।
वर्तमान मामलों की उत्पत्ति राजस्थान के दक्षिणी भाग के अनुसूचित जनजाति समुदाय के माता-पिता की गरीबी में हो सकती है। तस्करी किए गए बच्चों को, कुछ मामलों में जाहिर तौर पर विभिन्न कारखानों में काम करने के लिए गुजरात ले जाया जाता है और उनका शोषण किया जाता है। ऐसी भी आशंकाएं हैं कि तस्करी की गई नाबालिग बच्चियों का यौन शोषण भी किया जा सकता है और उन्हें वेश्यावृति में भी धकेला जा सकता है।
आयोग ने यह भी ध्यान दिया कि 1998 में, केन्द्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने देश के 12 बाल श्रम स्थानिक जिलों में कामकाजी बच्चों के पुनर्वास के लिए राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजनाओं (एनसीएसपी योजना) की शुरूआत की थी। इस योजना का उद्देश्य खतरनाक व्यवसायों में बाल श्रम का सर्वेक्षण करना, पहचान करना और विशिष्ट स्कूलों में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं, व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करके उनका पुनर्वास करना है और इस प्रकार सभी प्रकार के बाल श्रम का उन्मूलन करना है।
तब से, इस परियोजना का विस्तार देश के 21 राज्यों के 312 जिलों को कवर करने के लिए किया गया है। श्रम और रोजगार मंत्रालय के 2019 के आंकड़ों के अनुसार, सबसे अधिक 52 उत्तर प्रदेश से, 30 तेलंगाना से, 27 राजस्थान से, 21 पश्चिम बंगाल से, 24 ओडिशा से, 23 बिहार से, 21 मध्य प्रदेश से, 18 तमिलनाडु से, 16-16 महाराष्ट्र और कर्नाटक से हैं। हालांकि, देश में बाल तस्करी और बाल श्रम के रूप में बाल अधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन अभी भी जारी है।