'स्थानीय स्वशासन के माध्यम से मानव अधिकारों को आगे बढ़ाना' विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन



प्रेस विज्ञप्ति

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

नई दिल्ली, 17 नवम्बमर, 2023

'स्थानीय स्वशासन के माध्यम से मानव अधिकारों को आगे बढ़ाना' विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन

एनएचआरसी ने गुवाहाटी, असम में 'स्थानीय स्वशासन के माध्यम से मानव अधिकारों को आगे बढ़ाना' विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, एनएचआरसी, भारत ने मानव अधिकारों के विभिन्न पहलुओं पर स्थानीय स्व-सरकारों को संवेदनशील बनाने हेतु 16 नवंबर, 2023 को प्रशासनिक स्टाफ कॉलेज, गुवाहाटी, असम में 'स्थानीय स्वशासन के माध्यम से मानव अधिकारों को आगे बढ़ाना' विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।

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आयोग की टीम, जिसमें एनएचआरसी, भारत के माननीय अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा; सदस्य डॉ. ज्ञानेश्वर एम. मुले और श्री राजीव जैन; और महासचिव, श्री भरत लाल, रजिस्ट्रार (विधि) श्री सुरजीत डे; संयुक्त सचिव, श्री डी.के. निम शामिल हैं, ने गुवाहाटी में सम्मेलन में भाग लिया। असम के मुख्य सचिव, श्री पबन कुमार बोरठाकुर, मंच पर एनएचआरसी टीम के साथ शामिल हुए और दर्शकों को संबोधित किया। राष्ट्रीय सम्मेलन में असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के राज्य मानव अधिकार आयोगों के अध्यक्षों के अलावा, केंद्र एवं पूर्वोत्तर राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी, एनएचआरसी के विशेष प्रतिवेदक और विशेष मॉनिटर, विभिन्न राज्यों के स्वायत्त जिला परिषदों, गैर सरकारी संगठनों और नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों, पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों, एनआईआरडी महानिदेशक आदि ने भी भाग लिया। इनके अलावा, विभिन्न पूर्वोत्तर राज्यों के विभिन्न संगठनों के कई प्रतिनिधियों ने भी सम्मेलन में भाग लिया।

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एनएचआरसी, भारत जमीनी स्तर पर मानव अधिकार पहलुओं के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य मानव अधिकारों और इससे संबंधित पहलुओं को आगे बढ़ाने में स्थानीय स्वशासन की भूमिका के बारे में जागरूकता पैदा करना था। स्थानीय समुदाय-आधारित संस्थानों और स्थानीय स्वशासन की भागीदारी मानव अधिकारों के संवर्धन और उनके संरक्षण में बड़े पैमाने पर मदद करती है। स्थानीय स्व-सरकारें और समुदाय-आधारित संगठन, जमीनी स्तर पर काम करने वाले मानव अधिकार संरक्षक 'भाईचारे' की अवधारणा को बढ़ावा देकर मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन में तथा नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने और बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने के साथ-साथ कमजोर समूहों के साथ संवेदनशीलता और करुणा के साथ व्यवहार करने में बहुत मदद करती हैं। चूँकि स्थानीय स्वशासन ज़मीन पर काम कर रहे हैं और 15वें वित्त आयोग द्वारा इन्हेंज कई विषयों के साथ-साथ धन भी हस्तांतरित किया गया है, जिसका लक्ष्यक मानव अधिकारों के संरक्षण और संवर्धन के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता, पानी, स्वच्छता, सार्वजनिक स्वास्थ्य आदि में सुधार तथा स्थानीय स्वशासी संस्थानों के माध्यम से जनता के लिए सम्मान और समानता सुनिश्चित करना था।

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उद्घाटन सत्र के दौरान, अपने बीज भाषण में, एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 के महत्व पर जोर दिया, क्योंकि इस अधिनियम द्वारा ग्राम पंचायतों की स्थापना और कुशल कामकाज पर जोर देकर शासन संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं, जैसा कि राज्य नीति निदेशक सिद्धांत के अनुच्छेद 40 में उल्लिखित है। उन्होंने मणिपुर में जातीय संघर्ष पर भी अपनी चिंता साझा की, जिसने क्षेत्र में सामाजिक और राजनीतिक तनाव बढ़ाया है।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने यह भी उल्लेख किया कि कैसे स्थानीय स्वशासी संस्थाएं लोगों के सामाजिक और आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभाती हैं और जमीनी स्तर पर मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्र में चल रहे जातीय संघर्षों, विशेष रूप से महिलाओं और अन्य कमजोर समूहों के खिलाफ हिंसा के संबंध में भी चिंता व्यक्त की।

पूर्वोत्तर भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और सुविधाओं के पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए, न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करता है तथा मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों को संबोधित करते हुए, उन्होंने उल्लेख किया कि यह आवश्यसक है कि मानव अधिकारों के आयामों की पहचान की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि भौगोलिक परिस्थितियों की परवाह किए बिना सभी व्यक्तियों को मौलिक मानव अधिकार के रूप में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुंच प्राप्त हो। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा जारी परामर्शियों का ईमानदारी से पालन किया जाना चाहिए और दिए गए प्रावधान को हितधारकों द्वारा लागू किया जाना चाहिए।

असम के मुख्य सचिव, श्री पबन कुमार बोरठाकुर ने सुचारु लोकतांत्रिक मूल्यों के संदर्भ में मानव अधिकारों के महत्व पर प्रकाश डाला। कानूनों के अलावा, यह समुदाय ही है जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने साझा किया कि असम में, ग्राम परिषदें नामघरों (सामुदायिक प्रार्थना कक्ष) से काम करती हैं, जहां लोग न केवल प्रार्थना करने आते हैं बल्कि महत्वपूर्ण सामुदायिक चर्चाओं और निर्णयों के लिए इकट्ठा होते हैं। उन्होंने कहा कि मिशन बसुंधरा और मिशन भूमिपुत्र, ग्रामीण क्षेत्र के कल्याण के लिए असम सरकार की कुछ पहल हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में, असम सरकार ने राज्य के सभी 332 पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी लगाने का काम किया है। उन्होंने यह भी बताया कि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड असम ने प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चो माध्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम में मानव अधिकार शिक्षा और एनएचआरसी की सर्वोत्तम प्रथाओं को शामिल किया है।

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अपने संबोधन में, एनएचआरसी, भारत के महासचिव श्री भरत लाल ने स्वीकार किया कि सम्मेलन में पूरे सदन ने इस बात का संकेत दिया कि मानव अधिकारों का विषय और चिंता एनएचआरसी या एसएचआरसी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सभी के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने साझा किया कि जमीनी स्तर पर, विशेषकर असम में काम करते हुए, पूर्वोत्तर राज्यों की सर्वोत्तम प्रथाओं को समझना महत्वपूर्ण है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन, स्वायत्त जिला परिषदों और अधिक महत्वपूर्ण रूप से आदिवासी समुदायों की परंपराओं, प्रथाओं और रीति-रिवाजों को सामने लाने और उनसे सीखने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संविधान के 73वें और 74वें संविधान संशोधन में दिए गए कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को ईमानदारी से ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्होंने दोहराया कि सम्मेलन उन सभी अच्छे कामों के बारे में है जो हम कर रहे हैं और इस क्षेत्र में सुधारों के बारे में भी है कि और क्या किया जा सकता है। सार्वजनिक सेवा वितरण, सुशासन, भ्रष्टाचार उन्मूलन के बीच मजबूत संबंध हैं और यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि सुचारू सार्वजनिक सेवा वितरण हो।

अपने स्वागत भाषण में श्री डी. के. निम, संयुक्त सचिव, एनएचआरसी ने वैचारिक स्पष्टता हासिल करने, मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन में स्थानीय स्वशासन की भूमिका और जिम्मेदारियों कों सुनिश्चित करने और पूर्वोत्तर राज्यों में स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान के माध्यम से मानव अधिकार जागरूकता को बढ़ावा देने पर जोर दिया।

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सम्मेलन दो तकनीकी सत्रों में आयोजित किया गया था, अर्थात्, 'स्थानीय स्वशासन के माध्यम से मानव अधिकारों को आगे बढ़ाना' और 'पूर्वोत्तर राज्यों की स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम प्रथाएँ'। प्रथम सत्र की सह-अध्यक्षता करते हुए, न्यायमूर्ति श्री अरूब कुमार गोस्वामी, माननीय अध्यक्ष, असम एसएचआरसी ने पूर्वोत्तर राज्यों में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन के महत्व पर जोर दिया और देश के इस हिस्से में स्थानीय स्वशासन के महत्व के बारे में बताया।

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डॉ. न्यायमूर्ति इंदिरा शाह, माननीय अध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश एसएचआरसी ने ग्राम परिषदों और स्थानीय स्वशासन के माध्यम से आदिवासी लोगों के प्रबंधन के पारंपरिक तरीकों की ओर सभी का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इसे प्रभावी बनाने के लिए मानव अधिकारों को क्रियान्वित किया जाना चाहिए, अर्थात सार्वजनिक जीवन के सभी स्तरों और सभी क्षेत्रों में समझा और लागू किया जाना चाहिए। भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के संयुक्त सचिव (शासन) श्री आलोक प्रेम नागर ने कहा कि स्थाानीय स्वनशासन ग्रामीण भारत में मानव अधिकारों की समानता और न्याशय संगतता का आधार है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य वित्त आयोगों को ग्रामीण विकास के प्रति अधिक जिम्मेदार होना चाहिए। उन्होंने संवाद और समाधान के लिए समावेशी मंच के रूप में ग्राम सभाओं या लोगों के मंच को मजबूत करने पर जोर दिया। उन्होंने प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण के मिश्रण का उपयोग करके पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के महत्व पर भी बल दिया।

सत्र के दौरान अन्य वक्ताओं, जिनमें असम सरकार के सचिव, श्री मुनींद्र शर्मा, पीआर एवं आरडी विभाग; श्री जलाश पर्टिन, संयुक्त सचिव, अरुणाचल प्रदेश एसएचआरसी; श्री अमृत संगमा, अंधुनिक इंडिया फाउंडेशन, असम शामिल थे, ने विकास प्रक्रिया में ग्रामीण आबादी की भागीदारी के महत्व को बताया, जिससे सहभागी कार्यान्वयन की दिशा में एक रास्ता तैयार हो। उन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों में स्थाजनीय स्वयशासन के विकास और विशिष्ट राज्यों से संबंधित मुद्दों के बारे में बात की, जिसमें मानव अधिकारों के उल्लंघन, कानूनों की अज्ञानता और विभिन्न कानूनों के बारे में जागरूकता की कमी शामिल है।

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दूसरे सत्र में चर्चा की शुरुआत करते हुए, अध्यक्ष, डॉ. ज्ञानेश्वर एम. मुले, सदस्य, एनएचआरसी ने पूर्वोत्तर राज्यों की ग्राम परिषदों द्वारा जीते गए पंचायती राज पुरस्कारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए पूर्वोत्तर राज्यों में स्थानीय स्वशासन के माध्यम से कार्यान्वित की जा रही विभिन्न योजनाओं का उल्लेख किया।

नागालैंड राज्य मानव अधिकार आयोग के माननीय अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री सोंगखुपचुंग सेर्टो ने अपनी चर्चा में पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासी निकायों के महत्व पर जोर दिया। इस सत्र के दौरान, कई अन्य वक्ताओं; जिनमें डॉ. जी नरेंद्र कुमार, महानिदेशक, एनआईआरडी एंड पीआर, हैदराबाद, डॉ. आर. मुरुगेसन, निदेशक, एनआईआरडी एंड पीआर, पूर्वोत्तर क्षेत्रीय केंद्र सहित डॉ. टी. विजयकुमार, एसोसिएट प्रोफेसर, एनआईआरडी एंड पीआर, पूर्वोत्तर क्षेत्रीय केंद्र शामिल थे, ने पूर्वोत्तर राज्यों की कुछ सर्वोत्तम प्रथाओं का उल्लेख किया, जैसे कि नारी अदालत, असम में एक वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र; असम में मिनी पीएचसी में प्रसूति वार्ड; मणिपुर में ग्राम पंचायतों के माध्यम से जल एटीएम का निर्माण; नागालैंड में आत्मनिर्भरता शासन के लिए ग्राम विकास बोर्डों का निर्माण आदि। उन्होंने ग्राम सभाओं के माध्यम से विकास के लिए स्थानीय वित्त को मजबूत करने पर भी जोर दिया। ग्राम पंचायतें महिलाओं और बाल सुरक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने और महिलाओं और बच्चों पर केंद्रित विकास को प्राथमिकता देने वाला वातावरण बनाने में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।

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