एशिया प्रशांत के राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों (एनएचआरआई) का दो दिवसीय सम्मेलन मानव अधिकारों पर 'दिल्ली घोषणा' के साथ संपन्न
प्रेस विज्ञप्ति
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत
22 सितम्बर 2023
एशिया प्रशांत के राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों (एनएचआरआई) का दो दिवसीय सम्मेलन मानव अधिकारों पर 'दिल्ली घोषणा' के साथ संपन्न
एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने दिल्ली घोषणा पर आम सहमति बनाई, जिसका सभी एनएचआरआई और अन्य प्रतिनिधियों ने स्वागत किया
सम्मेलन में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर), एनएचआरआई के लिए पेरिस सिद्धांत और मानव अधिकार संरक्षकों (एचआरडी) पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा के महत्व की पुन: पुष्टि की गई
सामूहिक कार्रवाई में जलवायु परिवर्तन और मानव अधिकारों में सामंजस्य बिठाने पर जोर दिया गया
चर्चा के माध्यम से बेहतर भविष्य का वादा किया गया जिसके लिए एनएचआरआई को निर्धारित लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए लगातार काम करना होगा: न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा, अध्यक्ष, एनएचआरसी
एशिया पेसिफिक के राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों (एनएचआरआई) का दो दिवसीय सम्मेलन दिल्ली घोषणापत्र को अपनाने के साथ संपन्न हुआ। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने एशिया प्रशांत देशों के अपने समकक्षों के साथ मिलकर दिल्ली घोषणा पर आम सहमति बनाई, जिसे सभी प्रतिनिधियों ने सराहा और स्वीकार किया। इस घोषणा द्वारा मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) की 75वीं वर्षगांठ, एनएचआरआई की स्थिति से संबंधित पेरिस सिद्धांतों की 30वीं वर्षगांठ और मानव अधिकार संरक्षकों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा की 25वीं वर्षगांठ के महत्वपूर्ण जश्न मनाया गया। घोषणा ने मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण में इन अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के स्थायी महत्व की पुष्टि की। इसमें वैश्विक मानव अधिकारों पर विचार-विमर्श के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में उनके मूल्य और मानव अधिकार-केंद्रित नीतियों और कानून के निर्माण में सरकारों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ जुड़ने के लिए दुनिया भर में एनएचआरआई की स्थापना में उनकी भूमिका पर जोर दिया।
घोषणापत्र में उभरते मानव अधिकार मुद्दों और चुनौतियों, विशेष रूप से सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, व्यवसाय, स्वास्थ्य देखभाल, जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में, प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं और सीमाओं के पार होने वाले अपराधों का उल्लेख किया गया। इसने मानव अधिकार पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया; और वैश्विक व्यापार प्रथाओं और मानव अधिकारों पर जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली नई चुनौतियों का समाधान करने के लिए यूडीएचआर को एक वैश्विक मानक के रूप में पुनर्जीवित करने का आह्वान किया। एशिया पेसिफिक एनएचआरआई ने जलवायु परिवर्तन के मानव अधिकार पर प्रभावों को कम करने, अपनाने और जवाब देने में सरकारों और समुदायों को सलाह देने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।दो दिवसीय सम्मेलन 20 सितंबर, 2023 को भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु द्वारा औपचारिक उद्घाटन के साथ शुरू हुआ। अपने संबोधन में, राष्ट्रपति ने एशिया प्रशांत क्षेत्र के भीतर भारत और अन्य देशों द्वारा साझा किए गए गहरे सभ्यतागत मूल्यों को रेखांकित किया, मानव अधिकारों के संरक्षक के रूप में उनकी ऐतिहासिक भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने मानव अधिकारों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय मामलों पर आम सहमति बनाने में सहयोग करने के लिए इन देशों की क्षमता पर भी प्रकाश डाला।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत के पास लोकतांत्रिक मूल्यों और व्यक्तिगत अधिकारों का अभ्यास करने और उन्हें संजोने का ऐतिहासिक अनुभव है। गणतंत्र की अवधारणा आधुनिक प्रतीत हो सकती है लेकिन लगभग 2,800 साल पहले भारत में वैशाली में दुनिया की पहली जन प्रतिनिधि सरकार थी। इसी प्रकार, पश्चिमी दुनिया के मैग्ना कार्टा के माध्यम से समान मानव अधिकारों की अवधारणा से परिचित होने से बहुत पहले, दक्षिणी भारत के एक श्रद्धेय संत और दार्शनिक बसवन्ना ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता की अवधारणा को बढ़ावा दिया था। उन्होंने लोगों की एक सभा बनाई जिसे "अनुभव मंतपा" कहा जाता था जहां किसी भी वर्ग और जेंडर के लोग भाग लेते थे और अपने सामूहिक भाग्य का निर्धारण करते थे।
उद्घाटन समारोह के दौरान, अपने मुख्य भाषण में, एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा कि एशिया पेसिफिक के एनएचआरआई को यह देखना होगा कि वे प्रतिबद्धता से कार्रवाई की ओर बढ़ते हुए वैश्विक प्रयासों को कैसे मजबूत कर सकते हैं। हमें जलवायु परिवर्तन, बाल तस्करी, बाल यौन शोषण सामग्री (सीसैम ) और साइबरस्पेस में अन्य अपराधों के साथ-साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में नवीनतम विकास के क्षेत्रों में मानव अधिकार संरक्षण के लिए उभरती चुनौतियों के लिए एक संयुक्त रणनीति की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हमें आतंकवाद, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और युद्ध के पीड़ितों के मानव अधिकारों और जीवन, आजीविका, विश्व अर्थव्यवस्था और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर उनके प्रभाव की रक्षा करनी होगी।समय आ गया है कि हम खुद को 'भगवान बुद्ध' और 'भगवान महावीर' द्वारा प्रचारित अहिंसा का स्मरण कराएं । एनएचआरआई के कार्य और जनादेश का उल्लेख करते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि हम सभी आवश्यकता-आधारित वितरणात्मक न्याय के लिए काम कर रहे हैं ताकि कोई भी व्यक्ति सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों और व्यक्तिगत मान्यताओं के कारण अधिकारों से वंचित न रहे। वैश्विक स्तर पर कुछ हाथों में धन का संकेंद्रण अन्याय की भावना को जन्म दे रहा है।वैश्वीकरण के लाभों में समाज के हाशिये पर पड़े और अन्य वंचित वर्गों को शामिल करने की सख्त आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में शामिल श्रमिकों को मानवीय कामकाजी परिस्थितियां प्रदान की जाएं। अनुचित व्यापार प्रथाएँ भी मानव अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। उपभोक्ताओं से अवास्तविक मूल्य उत्पादन को रोकने के लिए मूल्य निर्धारण को उत्पादन लागत के साथ सह-संबंधित होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि व्यावसायिक घरानों को कचरे के प्रसंस्करण और अपने परिसर से मलबा हटाने के लिए उत्तरदायी होना चाहिए। 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद का खतरनाक मलबा हटाने में अभी भी देरी की जा रही है । देरी के कारण भूजल और मिट्टी प्रदूषित हो रही है। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए कड़े सुरक्षा उपाय और दायित्व आवश्यक हैं। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि राज्यों को बौद्धिक संपदा अधिकार का सम्मान करते हुए जनहित में आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं में अधिकार आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। स्वास्थ्य के अधिकार की रक्षा के लिए नियामक निकायों का हस्तक्षेप, विशेष रूप से जीवन संरक्षकड्रग्स, दवाओं, टीकों और चिकित्सा उपकरणों के मूल्य निर्धारण में आवश्यक है, जो जीवन के अधिकार का हिस्सा है। उन्होंने महिलाओं और एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के लिए लैंगिक न्याय सुनिश्चित करने की भी जोरदार समर्थन किया, जिसके बिना समानता का अधिकार हासिल नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार, समानता के अधिकार को विशेष रूप से सक्षम लोगों के लिए लागू किया जाना चाहिए। उनके मामले में "उचित अवसर" प्रदान करने की अवधारणा की उदारतापूर्वक व्याख्या की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि एनएचआरसी, भारत ने हाल ही में बीमा प्रदाताओं से बिना किसी भेदभाव के उन्हें कवरेज प्रदान करने का आग्रह किया है।
उद्घाटन समारोह में, जिसमें 1,300 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया, एनएचआरआईएस के एशिया प्रशांत फोरम के अध्यक्ष श्री डू-ह्वान सोंग और ग्लोबल एलायंस ऑफ ह्यूमन राइट्स इंट्यूशन्स की सचिव सुश्री अमीना बौयाच ने भी बात की। उन्होंने इस सम्मेलन को इतने बड़े पैमाने पर आयोजित करने के लिए एनएचआरसी इंडिया की सराहना की। अपने स्वागत भाषण में, एनएचआरसी के महासचिव भरत लाल ने सम्मेलन और तीन सत्रों क) एशिया और प्रशांत क्षेत्र में मानव अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के 30 वर्ष; ख) मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) और सभी के लिए स्वतंत्रता, समानता और न्याय के वादे को आगे बढ़ाना; और ग) मानव अधिकारों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का जवाब देने और उसे कम करने में एनएचआरआई की भूमिका पर विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि 1.43 अरब लोगों की एक महान सभ्यता और विविधतापूर्ण देश भारत में लोकतंत्र की गहरी जड़ें हैं। समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व का विचार हम सभी में समाहित है। जीवन के सभी रूपों के प्रति सहानुभूति और करुणा, जीवन का एक तरीका है। अपने संबोधन में उन्होंने याद दिलाया कि 75 साल पहले जब मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा का मसौदा तैयार किया जा रहा था, तो वह भारत की हंसा मेहता ही थीं, जिन्होंने 'लैंगिक समानता' की शुरुआत की थी। इसी तरह, लक्ष्मी मेनन एक अन्य भारतीय थीं, जिन्होंने घोषणा में 'गैर-भेदभाव' का प्रस्ताव दिया। उन्होंने कहा कि इस तरह की विचार प्रक्रिया सच्चे भारतीय लोकाचार को दर्शाती है। उद्घाटन समारोह के बाद एजीएम में एशिया पैसिफिक फोरम से जुड़े आम मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई और सभी मुद्दों पर आम सहमति बनी। 21 सितंबर को, एशिया प्रशांत के एनएचआरआई के द्विवार्षिक सम्मेलन में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर एक उप-विषय के साथ राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों और पेरिस सिद्धांतों के 30 साल, यूडीएचआर की 75 वीं वर्षगांठ पर तीन विषयगत सत्रों में चर्चा हुई।
राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थाओं और पेरिस सिद्धांतों के 30 वर्षों पर पहले सत्र में चर्चा की शुरुआत करते हुए, एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा ने अपने मुख्य भाषण में, किफायती दरों पर तकनीकी हस्तांतरण को प्राथमिकता देने, क्षमता निर्माण और जलवायु परिवर्तन पर रणनीतिक अंतर्दृष्टि के प्रसार के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि ये उपाय यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि विकासशील देश समान उत्सर्जन मानकों का पालन करें। उन्होंने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) और पेरिस सिद्धांतों के प्रावधानों के अनुरूप, एनएचआरसी के 30 साल के अस्तित्व के दौरान इसके संचालन और विविध हस्तक्षेपों के बारे में भी चर्चा की। पैनलिस्ट के रूप में यूडीएचआर की 75वीं वर्षगांठ पर दूसरे सत्र में चर्चा की शुरुआत करते हुए एनएचआरसी सदस्य डॉ. डी. एम. मुले ने कहा कि यूडीएचआर मानव अधिकारों के लिए फीनिक्स की तरह उभरा और उन्होंने नई चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त रणनीतियों का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के पहले छह लक्ष्यों को प्राप्त करने से मानव जीवन और गरिमा की रक्षा के लिए बुनियादी आवश्यकताएं सुनिश्चित होंगी। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर तीसरे सत्र में, पैनलिस्ट के रूप में एनएचआरसी सदस्य श्री राजीव जैन ने कहा कि जीवन का अधिकार सभी अधिकारों को समाहित करता है और इसलिए इसे प्राथमिकता देने की आवश्यकता है क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन से प्रभावित है। एनएचआरआई को जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर जनता को शिक्षित करने के अलावा नागरिक समाज संगठनों और नीति निर्माताओं के बीच एक सेतु के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत करना होगा। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र की महानिदेशक, पैनलिस्ट सुश्री सुनीता नारायण ने इस बात पर जोर दिया कि विकासशील देशों के लिए जलवायु के साथ न्याय के बिना जलवायु समझौता पूरा नहीं होगा। समापन सत्र को संबोधित करते हुए, एनएचआरसी अध्यक्ष, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने मानव अधिकारों पर 'दिल्ली घोषणा' पर आम सहमति बनाने वाले विचार-विमर्श पर संतोष व्यक्त किया, जो एक अतिमहत्वपूर्ण दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि हम अपने संयुक्त प्रयासों तथा एपीएफ और नागरिक समाज संगठनों के बीच बातचीत सहित सम्मेलन में आदान-प्रदान किए गए महान विचारों के माध्यम से मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए बेहतर ढंग से सुसज्जित महसूस करते हैं। उन्होंने कहा कि एनएचआरआई लगातार बढ़ती चुनौतियों और तकनीकी युग के नए रूपों के मद्देनजर मानव अधिकारों की पहुंच और दायरे का विस्तार कर रहे हैं। वैश्वीकरण, पर्यावरण क्षरण और साइबर स्पेस के कारण होने वाली समस्याएं ख़तरा पैदा करती हैं। चर्चाओं से बेहतर कल का वादा सामने आया जिसके लिए एनएचआरआई को निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लगातार काम करना होगा। विभिन्न सत्रों के दौरान, फिजी, जॉर्डन, मंगोलिया, ऑस्ट्रेलिया, मोरक्को, फिलीपींस के मानव अधिकार संस्थानों के अध्यक्षों और आयुक्तों के अलावा एपीएफ अध्यक्ष, श्री डू-ह्वान सोंग, ग्लोबल अलायंस ऑफ ह्यूमन राइट्स इंट्यूशन्स की सचिव सुश्री अमीना बौयाच, श्री व्लादलेन स्टेफ़ानोव, प्रमुख, राष्ट्रीय संस्थान, क्षेत्रीय तंत्र और नागरिक समाज अनुभाग, संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार उच्चायुक्त कार्यालय, श्री वोल्कर तुर्क, संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार उच्चायोग, श्री रोरी मुंगोवेन, प्रमुख एशिया प्रशांत अनुभाग, मानव अधिकार उच्चायुक्त का कार्यालय, डॉ. इयान फ्राई, जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक, जैसे अन्य प्रमुख वक्ताओं ने भी अपनी बात कही।
सम्मेलन में बोलने वाले प्रमुख नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और मानव अधिकार संरक्षकों में श्री सुहास चकमा, निदेशक, अधिकार और जोखिम विश्लेषण समूह, भारत, डॉ. सकुंतला कादिरगामार कार्यकारी निदेशक, कानून और सोसायटी ट्रस्ट, श्रीलंका, श्री सैयद अकबरुद्दीन, पूर्व राजनयिक और कौटिल्य स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी, हैदराबाद, भारत के डीन, डॉ. कुंदन आर्यल अध्यक्ष, अनौपचारिक क्षेत्र सेवा केंद्र, नेपाल शामिल थे। सम्मेलन में 20 से अधिक वक्ताओं ने भाषण दिया जिसमें एशिया प्रशांत देशों के एनएचआरआई के अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों, एशिया पेसिफिक फोरम और गनहरी के अधिकारियों और एसएचआरसी के अध्यक्षों, कानूनी और न्यायिक बिरादरी के सदस्यों, भारत सरकार के साथ-साथ राज्यों के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों, नागरिक समाज, मानव अधिकार संरक्षकों, शिक्षाविदों, छात्रों, शोधकर्ताओं आदि ने भाग लिया।