राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने कर्नाटक के तुमाकुरु जिले के बिसाडीहल्ली इलाके में नई प्रसूता और मासिक धर्म वाली महिलाओं को दूरस्थ और अलग-थलग झोपड़ियों में भेजने से सम्बंधित मीडिया रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लिया
प्रेस विज्ञप्ति
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग
नई दिल्ली, 5 जून, 2024
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने कर्नाटक के तुमाकुरु जिले के बिसाडीहल्ली इलाके में नई प्रसूता और मासिक धर्म वाली महिलाओं को दूरस्थ और अलग-थलग झोपड़ियों में भेजने से सम्बंधित मीडिया रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लिया
एनएचआरसी ने कर्नाटक सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट मांगी है
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने एक मीडिया रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान लिया है, रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक के तुमाकुरु जिले के बिसाडीहल्ली इलाके में नई प्रसूता और मासिक धर्म वाली महिलाओं के लिए चली आ रही परंपरा के अनुसार सिजेरियन ऑपरेशन कराने वाली 19 वर्षीय महिला को एक दूरस्थ और अलग झोपड़ी में भेज दिया गया था। झोपड़ी में न तो बिस्तर था और न ही प्रसाधन ।
कथित तौर पर, यह प्रथा कई राज्यों के ग्रामीण इलाकों और कर्नाटक में कडू गोल्ला समुदाय के लोगों के बीच आज भी प्रचलित है। इस प्रवास के दौरान, महिलाओं और नवजात शिशुओं को न केवल प्रकृति की अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है, बल्कि अस्वच्छ परिस्थितियों और इन झोपड़ियों में घुसने वाले गली के कुत्तों, बिच्छुओं और सांपों से होने वाले गंभीर खतरों का भी सामना करना पड़ता है।
आयोग ने पाया है कि समाचार रिपोर्ट की सामग्री, यदि सत्य है, तो यह निर्दोष महिलाओं और छोटे शिशुओं के मानव अधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मुद्दा है। तदनुसार, आयोग ने कर्नाटक सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। रिपोर्ट में उन स्थानों का डेटा शामिल होना चाहिए जिन राज्यों में ऐसी बुरी प्रथाएं अभी भी प्रचलित हैं तथा इस समस्या से निपटने के लिए सरकारी प्राधिकारियों द्वारा उठाए गए/उठाए जाने वाले कदमों का विवरण भी शामिल होना चाहिए।
नोटिस जारी करते हुए आयोग ने यह भी उल्लेख किया कि वर्ष 2013 में उसे महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में अनुसूचित जनजाति की महिलाओं से संबंधित इसी तरह की शिकायत मिली थी। इस सम्बन्ध में महाराष्ट्र सरकार ने एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें बताया गया था कि वह ‘गाओकोर/कुर्मा’ की इस अमानवीय प्रथा को खत्म करने के लिए पूरी निष्ठा से प्रयास कर रही है।
27 मई, 2024 को प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, युवा पीढ़ी इस प्रथा को ख़त्म करना चाहती हैं, जबकि बुजुर्ग इसका समर्थन कर रहे हैं, और तर्क दे रहे हैं कि झोपड़ियों में महिलाओं और शिशुओं को उनके अपने घरों की तुलना में कहीं बेहतर स्थिति मिलती है। हालांकि सरकारी एजेंसियां नियमित रूप से गांव में निरीक्षण करती हैं, लेकिन वे इस प्रथा को खत्म करने में सफल नहीं हो पाई हैं।