राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत ने 'नाता प्रथा' जिसके तहत राजस्थान के कुछ हिस्सों तथा इससे सटे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं गुजरात के आस-पास के इलाकों में कुछ समुदायों की लड़कियों को शादी के नाम पर बेचा जाता है, पर गंभीर रुख अपनाया



प्रेस विज्ञप्ति

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

नई दिल्ली, 6 जून, 2024

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत ने 'नाता प्रथा' जिसके तहत राजस्थान के कुछ हिस्सों तथा इससे सटे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं गुजरात के आस-पास के इलाकों में कुछ समुदायों की लड़कियों को शादी के नाम पर बेचा जाता है, पर गंभीर रुख अपनाया

एनएचआरसी ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं गुजरात राज्यों से आठ सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने “नाता प्रथा” के रूप में फैली सामाजिक बुराई जिसके तहत कुछ समुदायों में लड़कियों को राजस्थान के कुछ हिस्सों तथा इससे सटे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं गुजरात के आस-पास के इलाकों में बिना किसी कानूनी वैधता के या तो स्टांप पेपर पर या शादी के नाम पर बेचा जाता है, को गंभीरता से लिया है। महिलाओं और नाबालिग लड़कियों पर 'नाता प्रथा' के अनैतिक और दुराचारी परिणामों को देखते हुए, आयोग ने इसके उन्मूलन और इसे रोकने पर जोर दिया, तदनुसार केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय और राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं गुजरात राज्यों को नोटिस जारी किए गए हैं। उन्हें आठ सप्ताह के भीतर इस संबंध में किए गए या प्रस्तावित उपायों पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।

आयोग ने ये निर्देश 15 जुलाई, 2020 को एक नाबालिग लड़की के पिता द्वारा की गयी शिकायत में हस्तक्षेप करने के दौरान दिए, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि राजस्थान के सलामगढ़, जिला प्रतापगढ़ में उसकी बेटी का अपहरण कर लिया गया था और इस घटना के बाद लड़की का शव राज्य के दानपुर, जिला बांसवाड़ा में मिला था। आयोग ने अपने अन्वेषण प्रभाग के माध्यम से घटनास्थल पर जाकर मामले की जांच की। जांच में पता चला कि लड़की के पिता ने ही 11 जुलाई, 2019 को गांव वालों की मौजूदगी में ‘नाता प्रथा’ के अंतर्गत परिवार वालों की सहमति से एक खरीद सौदे के तहत अपनी बेटी को 2.5 लाख रुपये में एक व्यक्ति को शादी के लिए बेच दिया था। दूल्हे द्वारा 60,000 रुपये का भुगतान किया जा चुका था और शेष राशि 10 जनवरी, 2020 तक चुकानी थी।

लेकिन, जब वह निर्धारित समय के भीतर बाकी रकम नहीं चुका पाया तो पिता अपनी बेटी को वापस ले आया और 32 हजार रुपये में दूसरे व्यक्ति से उसका सौदा कर दिया। लड़की ने इस पर आपत्ति जताई और अपने पहले पति के साथ रहने के लिए गागरवा चली गयी। उसने बांसवाड़ा के एसपी के समक्ष अपने पिता के खिलाफ शिकायत भी की, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पिता शराबी है और पैसे कमाने के लिए उसकी मर्जी के खिलाफ कई लड़कों से उसका सौदा करने की कोशिश कर चुका है साथ ही पिता ने उसे जान से मारने की धमकी भी दी है। पुलिस ने उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की और 16 जून 2020 को उसने जहर खाकर आत्महत्या कर ली।

एनएचआरसी द्वारा की गई जांच से पता चला कि पिता ने अपने खिलाफ पुलिस में दर्ज शिकायत पर किसी भी कार्रवाई से बचने के लिए आयोग में बेटी के अपहरण और हत्या का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। अन्वेषण प्रभाग ने लड़की के पिता के खिलाफ उसकी नाबालिग बेटी को बेचने के आरोप में कानूनी कार्रवाई करने और लड़की की शिकायत पर पुलिसकर्मियों द्वारा कोई कार्रवाई न करने के लिए दानपुर के पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने का सुझाव दिया। घटना स्थल पर जाकर जांच करने वाली एनएचआरसी की अन्वेषण टीम ने यह भी सुझाव दिया कि राज्य सरकार को ‘नाता प्रथा’ की सामाजिक बुराई को रोकने के लिए एक कानून बनाना चाहिए।

इसके बाद 23 जनवरी, 2020 को आयोग ने राजस्थान में लड़कियों को बेचे जाने के मामले की विस्तृत जांच करने हेतु अपने विशेष प्रतिवेदक को नियुक्त किया। उन्होंने इस सामाजिक बुराई को बहुआयामी रणनीति के माध्यम से दूर करने की तत्काल आवश्यकता पर भी जोर दिया, क्योंकि इस प्रकार की घटना मूलभूत मानव अधिकारों का उल्लंघन है। आयोग ने इस संबंध में उपाय सुझाने के लिए मामले को अनुसंधान प्रभाग को भी भेजा।

अनुसंधान विंग ने मामले का अवलोकन किया और निष्कर्ष दिया कि ‘नाता प्रथा’ वेश्यावृत्ति के आधुनिक रूपों के समान है। विभिन्न उपायों के साथ, इसने सुझाव दिया कि कानून बनाने के अलावा, महिलाओं को ‘नाता प्रथा’ के लिए मजबूर करने वाले व्यक्तियों पर मानव दुर्व्यापार से संबंधित कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए और इस खतरे को रोकने के लिए पाक्सो अधिनियम के सम्बंधित प्रावधान के तहत नाबालिग लड़कियों को बेचने के संदर्भ में मुकदमा चलाया जाना चाहिए। इसने लड़कियों और महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए जागरूकता पैदा करने और शिक्षा और रोजगार प्रदान करने के अलावा ‘नाता प्रथा’ के मामलों को दर्ज करने के लिए गाँव स्तर पर एक बोर्ड या समूह बनाने का भी सुझाव दिया।

आयोग ने 18 मार्च, 2024 को केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय के साथ ये जानकारी साझा की, उनका भी यही मत था कि ‘नाता प्रथा’ महिलाओं के लिए अपमानजनक है और इसे समाप्त करने की आवश्यकता है।