राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा व्यवसाय और मानव अधिकार विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन



प्रेस विज्ञप्ति

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग

23 सितंबर 2023

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा व्यवसाय और मानव अधिकार विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

मानव अधिकार, जलवायु परिवर्तन और व्यवसाय में सामंजस्य - सतत विकास की कुंजी

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत ने 20-21 सितंबर को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में एशिया प्रशांत के राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों के दो दिवसीय सम्मेलन की मेजबानी की, जिसका उद्घाटन भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु द्वारा किया गया। उद्घाटन समारोह में माननीय अध्यक्ष न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा द्वारा बीज भाषण प्रस्तुत किया गया।

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एशिया प्रशांत सम्मेलन के साथ- साथ, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत द्वारा 'व्यवसाय और मानव अधिकार ' विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी भी आयोजित की गयी। व्यापार और मानव अधिकार पर संगोष्ठी दो महत्वपूर्ण विषयों i.) 'जलवायु परिवर्तन, मानव अधिकार और व्यापार में सामंजस्य' और ii.) 'व्यापार और उद्योग में मानव अधिकारों को आगे बढ़ाना', पर केंद्रित थी। एनएचआरसी अध्यक्ष, न्यायमूर्ति मिश्रा ने व्यापार और उद्योग में श्रमिकों के मानव अधिकारों से संबंधित मुद्दों के समाधान को उच्च प्राथमिकता दी। जलवायु परिवर्तन का मानव अधिकारों और व्यापार की स्थिरता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। एनएचआरसी सभी हितधारकों को एक साथ लाने और सामूहिक रूप से काम करने के लिए काम कर रहा है।

व्यवसाय और मानव अधिकार पर सेमिनार में मानव अधिकारों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और उसके बाद कॉर्पोरेट जिम्मेदारी के विकसित होते परिदृश्य और इन मुद्दों के समाधान के लिए व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर विचार- विमर्श किया गया। सेमिनार में अंतर-पीढ़ीगत समानता और सतत विकास के महत्व का हवाला देते हुए व्यवसाय विकास के महत्व के साथ-साथ व्यवसाय संचालन में मानव अधिकारों की सुरक्षा पर जोर दिया गया। इस बात पर विचार-विमर्श किया गया कि जहां जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में मानव अधिकारों को साकार करने के लिए जटिल चुनौतियां पेश करता है, वहीं एनएचआरआई को व्यवसाय संचालन में मानव अधिकारों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। इन विषयों को संबोधित करते हुए, सेमिनार का उद्देश्य संवाद, सहयोग और व्यावहारिक समाधानों के विकास को बढ़ावा देना है जो व्यावसायिक सफलता और अनिश्चितता के युग में मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन को बढ़ावा देते हैं।

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एनएचआरसी के महासचिव, श्री भरत लाल ने कहा कि व्यवसाय और संबंधित गतिविधियाँ लोगों को सीधे प्रभावित करती हैं, जिसका सीधा असर मानव अधिकारों पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि व्यापार और मानव अधिकार के मुद्दे और जलवायु परिवर्तन के साथ उनके आंतरिक संबंध में सामंजस्य बिठाया जाए। यह सुझाव देने के अलावा कि दुनिया में अब महिलाओं के नेतृत्व में विकास होना चाहिए, उन्होंने यह भी कहा कि कौशल उन्नयन, शिक्षा, स्वास्थ्य और कार्यबल के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने जलवायु परिवर्तन से मानव अधिकारों के पूर्ण उपभोग पर पड़ने वाले प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि व्यवसाय को मानव अधिकारों के संवर्धन एवं संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मानव अधिकारों, जलवायु मुद्दों और व्यापार के बारे में एक साथ सोचना ही जीत की रणनीति है। इससे पहले, स्वागत भाषण में, एनएचआरसी के संयुक्त सचिव, श्री डी.के. निम ने बाल श्रम, जबरन श्रम, असुरक्षित कार्य स्थिति, कार्य समयसीमा का उल्लंघन, पर्यावरण प्रभाव के कारण मानव अधिकारों का उल्लंघन, आपूर्ति श्रृंखला के मुद्दे, मानव दुर्व्यापार, आपूर्तिकर्ता शोषण, भेदभाव और असमानता के मुद्दे, समुदाय और भूमि अधिकार, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी, जहां व्यावसायिक गतिविधियों के संदर्भ में मानव अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है, जैसे विषयों पर विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांतों के तहत सम्मान, सुरक्षा और उपचार के संयुक्त राष्ट्र ढांचे का पालन करते हुए व्यापार और उद्योगों में मानव अधिकारों के उल्लंघन को रोकने और कम करने के लिए सतर्कता, पारदर्शिता, जवाबदेही और मानव अधिकार संबंधी उचित परिश्रम आवश्यक है।

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पहले सत्र के दौरान विचार प्रस्तुत करते हुए अध्यक्ष प्रोफेसर के विजयराघवन, भारत सरकार के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ने कहा कि वैश्वीकरण और आर्थिक गतिविधियों के विस्तार से चिह्नित युग में, काम करने के लिए व्यापार और मानव अधिकार का मुद्दा एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभरा है। पैनल ने तेजी से बढ़ती ऊर्जा खपत, वनों की कटाई और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में औद्योगिक प्रक्रियाओं के योगदान जैसे मुद्दों पर चर्चा की। व्यवसायों की मानव अधिकारों का सम्मान करने की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है, जैसा कि व्यवसाय और मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांतों में उल्लिखित है। ये सिद्धांत कंपनियों से मानव अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने या उसमें योगदान देने से बचने और ऐसे प्रभाव पड़ने पर उनका समाधान करने का आह्वान करते हैं।

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सुश्री गौरी कुमार पूर्व सचिव (समन्वय एवं लोक शिकायत तथा श्रम एवं रोजगार) ने अपनी टिप्पणी में इस बात पर जोर दिया कि हम 'एक पृथ्वी, एक परिवार हैं और एक भविष्य साझा करते हैं'। यही कारण है कि साझा लक्ष्यों की दिशा में सामूहिक रूप से काम करने से जुड़े सहयोग और सहयोगात्मक प्रयासों में वृद्धि आज की आवश्यकता है।

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साथ ही उन्होंने कहा कि दूरदर्शी और प्रबुद्ध व्यवसायों को मानव अधिकारों के संवर्धन एवं संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और आपसी दीर्घकालिक स्व-हित में सरकार के साथ सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए करना चाहिए और क्रॉस डोमेन इंटर-ऑपरेबिलिटी को अपनाना चाहिए जो तालमेल को सक्षम बनाता है। इसलिए, सरकार के सहयोग से ऐसी चुनौतियों के समाधान के लिए व्यवसायों को अधिक भागीदारी निभानी चाहिए। साथ ही, व्यवसायों को आर्थिक हितों को आगे बढ़ाते हुए अधिकारों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए। पहले सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में उन्होंने सुझाव दिया कि श्रमिकों के मानव अधिकारों पर विशेष ध्यान दिया जाए और उचित उद्यम का पालन किया जाए। पहले सत्र में अन्य पैनलिस्टों में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव (जलवायु परिवर्तन) श्री नीरज साह, वर्ल्ड बेंचमार्किंग अलायंस के श्री नमित अग्रवाल, सीआईआई के कार्यकारी निदेशक श्री शिखर जैन और डेनिश इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन राइट्स से सुश्री तूलिका बंसल शामिल थे।।

दूसरे सत्र में, अध्यक्ष, श्री राजीव कुमार, पूर्व उपाध्यक्ष, नीति आयोग ने सत्र के विषय पर विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि हमारे जैसे विविधतापूर्ण समाज में, सुसंगतता ही चुनौतियों से पार पाने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। उन्होंने कहा कि सभी के लिए सुरक्षित और रहने योग्य वातावरण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। पैनल ने इस मुद्दे पर चर्चा की कि इस चुनौतीपूर्ण समय में व्यापार और मानव अधिकारों के बारे में बात करना क्यों महत्वपूर्ण है। पैनल ने इस बात पर भी चर्चा की कि व्यवसाय उन नीतियों और प्रथाओं की वकालत कैसे कर सकते हैं जो व्यापक स्तर पर मानव अधिकारों को बढ़ावा देते हैं, जैसे निष्पक्ष व्यापार का समर्थन करना, भ्रष्टाचार विरोधी उपायों की वकालत करना और सामुदायिक विकास पहल में भाग लेना। इसलिए, कंपनियां व्यापक दुनिया में सकारात्मक बदलाव के लिए उत्प्रेरक बन सकती हैं।

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दूसरे सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में सुश्री आरती आहूजा, सचिव श्रम एवं रोजगार, भारत सरकार ने कहा कि 3डी - डिजिटलीकरण, डीकार्बोनाइजेशन और जनसांख्यिकी पर ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने उल्लेख किया कि वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में अच्छे काम पर विशेष ध्यान देने के साथ श्रम अधिकारों की रक्षा की जाती है, जिससे यह व्यापार का अभिन्न अंग बन जाता है, जैसे निष्पक्ष श्रम प्रथाएं, कोई बाल श्रम नहीं, कोई जबरन श्रम नहीं, साथी के साथ सामाजिक संवाद, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य मानकों को पूरा करना, बीमा, उन बीमारियों का मानचित्रण करना जिनमें उद्योग मौजूद हैं और नैतिकता का विनियमन।

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दूसरे विषय पर संक्षिप्त चर्चा करते हुए एनएचआरसी सदस्य श्री राजीव जैन ने कहा कि एनएचआरसी व्यवसाय में मानव अधिकार के मुद्दे के प्रति प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि व्यावसायिक स्वास्थ्य और बीमारियों तथा श्रमिकों के लिए सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मानव अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकारों और व्यापार जगत के बीच तालमेल होना चाहिए।

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दूसरे सत्र में अन्य पैनलिस्टों में सुश्री विद्या टिक्कू, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, आदित्य बिड़ला समूह, श्री गौरव वत्स, निदेशक, फिक्की और सुश्री नुसरत खान, यूएनडीपी, भारत की प्रतिनिधि शामिल थीं। दोनों सत्रों में दिनभर चले विचार-विमर्श के बाद सेमिनार से आये मुख्य सुझाव इस प्रकार हैं :

i.) विनियमन और कानूनी ढांचा: सरकारों को ऐसे कानून और नियम बनाने और लागू करने चाहिए जो व्यवसायों को मानव अधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं और जिम्मेदार व्यावसायिक आचरण के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करते हैं;

ii.) कॉर्पोरेट संस्कृति में मानव अधिकारों का सम्मान: कंपनियों के लिए अपनी कॉर्पोरेट संस्कृति, मूल्यों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में मानव अधिकारों के सम्मान को एकीकृत करना आवश्यक है;

iii.) आपूर्ति श्रृंखला की जिम्मेदारी: व्यवसायों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी आपूर्ति श्रृंखला मानव अधिकार मानकों का पालन करती है, और उन्हें स्थितियों और प्रथाओं में सुधार के लिए आपूर्तिकर्ताओं के साथ सहयोग करना चाहिए;

iv.) सतत व्यावसायिक प्रथाओं को अपनाना: व्यवसायों को अपनी मुख्य रणनीतियों और संचालन में स्थिरता को एकीकृत करना चाहिए, अपने कार्बन पदचिह्न को कम करने, संसाधनों के संरक्षण और नकारात्मक मानव अधिकार प्रभावों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए;

v.) पारदर्शिता और रिपोर्टिंग: बढ़ी हुई पारदर्शिता और रिपोर्टिंग तंत्र महत्वपूर्ण हैं। कंपनियों को अपनी मानव अधिकार नीतियों, कार्यों और प्रभावों के बारे में जानकारी का खुलासा करना चाहिए, जिससे हितधारकों को उनके प्रदर्शन का आकलन करने की अनुमति मिल सके;

vi.) सहयोगात्मक पहल: उत्तरदायी व्यावसायिक आचरण को बढ़ावा देने के लिए व्यापार और मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांतों जैसे बहु-हितधारक पहलों का समर्थन करें और उनमें भाग लें।

vii.) मानव अधिकार संबंधी उचित परिश्रम लागू करें: व्यवसायों को अपने संचालन और आपूर्ति श्रृंखलाओं में संभावित प्रतिकूल मानव अधिकार प्रभावों की पहचान करने, रोकने और संबोधित करने के लिए संपूर्ण मानव अधिकार संबंधी परिश्रम करना चाहिए;

viii.) समाज के साथ सहयोग: यह महत्वपूर्ण है कि नागरिक समाज एक भागीदार के रूप में काम करे और व्यवसाय में मानव अधिकारों की सुरक्षा में योगदान दे।

सेमिनार में 450 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें सरकारों के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों और उनके पैरास्टैटल संगठनों, वैधानिक संगठनों, राज्य मानव अधिकारआयोगों, व्यावसायिक संगठनों, पीएसयू, गैर सरकारी संगठनों, सीएसओ, मानव अधिकार संरक्षकों , जलवायु वैज्ञानिकों और दूतावास एवं संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां के प्रतिनिधि शामिल थे। इसे लाइव-स्ट्रीम किया गया और सेमिनार में बड़ी संख्या में प्रतिभागियों ने ऑनलाइन भाग लिया। प्रतिभागियों ने मानव अधिकार, व्यापार और जलवायु परिवर्तन जैसे तीनों पहलुओं, जो समय की मांग है, को एक साथ लाने के लिए एनएचआरसी की सराहना की।