राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग में प्रसिद्ध विद्वान और आध्यात्मिक विचारक, डॉ. चंद्र भानु सत्पथी द्वारा 'मानव अधिकार' विषय पर व्‍याख्‍यान।



राष्‍ट्रीय मानव अधिकार आयोग में प्रसिद्ध विद्वान और आध्यात्मिक विचारक, डॉ. चंद्र भानु सत्पथी द्वारा 'मानव अधिकार' विषय पर व्‍याख्‍यान।

लोकतंत्र के मूर्त रूप को किसी समाज में सबसे लंबे समय तक लोगों के लिए खुशी के रूप में वर्णित किया जा सकता है: डॉ चंद्र भानु सत्पथी।

मानव अधिकारों को अलग करके नहीं, बल्कि इस ब्रह्मांड में जो कुछ विद्यमान है उससे जोड़कर समझा जा सकता है: डॉ. चंद्र भानु सत्पथी

प्रसिद्ध विद्वान, आध्यात्मिक विचारक, लेखक और मानवतावादी डॉ. चंद्र भानु सत्पथी ने आज नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में 'मानव अधिकार' पर व्याख्यान दिया। इस अवसर पर एनएचआरसी के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति श्री अरुण मिश्रा, सदस्य, डॉ. ज्ञानेश्वर एम मुले और श्री राजीव जैन, महासचिव, श्री भरत लाल, वरिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित थे।

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उपमाओं और प्रश्नों के माध्यम से, डॉ. सत्पथी ने मानव अधिकारों की समग्र समझ पर गहराई से प्रकाश डाला। उनका मानना है कि लोकतंत्र का मूर्त रूप किसी समाज में सबसे लंबे समय तक लोगों के लिए खुशी के रूप में वर्णित किया जा सकता है। ज्ञान के रूप में झूठी राय आवश्यक रूप से जीवन का सार सामने नहीं लाती अपितु नई जटिलताएँ उत्‍पन्‍न करती है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि इंटरनेट ने कई अच्छे काम किए हैं लेकिन इसका उपयोग एवं अभिगम सावधानी से करना होगा, कहीं ऐसा न हो कि यह मानव अधिकारों के उल्लंघन का कारण बन जाए।

उन्होंने कहा कि मानव अधिकारों को अलग करके नहीं, बल्कि इस ब्रह्मांड में जो कुछ विद्यमान है उससे जोड़कर समझा जा सकता है; इसे सहानुभूति से समझा जाना चाहिए न केवल संवेदना से। उन्होंने कहा कि पूर्णता का विचार काम नहीं करता क्योंकि जीवन लगातार विकसित हो रहा है और मानव अधिकार की अवधारणा नई नहीं है बल्कि मानव जाति के जन्म के बाद से ही अस्तित्व में है। इसे तर्क करके बेहतर ढंग से समझा जा सकता है कि क्या यह मानवीय अधिकार है या मानव अधिकार, क्या मानव अधिकार संवेदना या सहानुभूति की मांग करते हैं और क्या इनकी उत्पत्ति मानव के रूप में हमारे कर्तव्यों या अधिकारों में है।

डॉ. सत्पथी ने कहा कि लोगों के अधिकारों के उल्लंघन के मूल कारण को समझे बिना, एक बार मदद करने से उनके भोजन, पीने के पानी, आजीविका, गरिमा के साथ जीवन आदि के अधिकारों से संबंधित समस्या का समाधान नहीं हो सकता। मानव अधिकार उल्लंघन के पीडि़त व्यक्ति को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वह व्यक्ति फिर से अपने अस्तित्व की अनिश्चितताओं के जाल में न फंसे।

शिक्षा और आजीविका के अवसरों सहित अन्य माध्यमों से समग्र स्थिति में सुधार के लिए व्यवहार्य समाधान प्रदान करना आवश्यक है।

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इससे पहले, डॉ. सत्पथी का स्वागत करते हुए, एनएचआरसी के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने कहा कि उनकी पुस्तकों और ब्रह्मांडीय ऊर्जा और मानव अधिकारों के साथ इसके संबंध की गहरी अंतर्दृष्टि ने दुनिया भर में कई लोगों को जीवन और धर्म की अवधारणा को समझने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्यान के बाद प्रश्नों और उत्तरों का एक संक्षिप्त सत्र हुआ। इसका समापन एनएचआरसी के महासचिव श्री भरत लाल के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ।